यूपी बजट: आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक

Uttarpradesh 2013-2-19लखनऊ। प्रदेश में सत्तारूढ़ होते ही समाजवादी पार्टी ने सूबे के आर्थिक विकास के लिए नई औद्योगिक नीति बनाने की मंशा जाहिर की थी। पिछले बजट में इसकी घोषणा हुई और अवस्थापना एवं औद्योगिक निवेश नीति 2012 बनकर तैयार भी हो गई। औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने सार्वजनिक निजी सहभागिता (पीपीपी) के आधार पर अवस्थापना सुविधाओं के विकास को भी अपनी प्राथमिकता बताया। सूबे के औद्योगिक धरातल पर इन नीतियों के असर और पीपीपी के आधार पर अवस्थापना सुविधाओं की पड़ताल कर रहे हैं राजीव दीक्षित।

औद्योगिक क्षेत्र में निजी निवेश को प्रोत्साहित करने और अनुकूल वातावरण सृजित करने के लिए मुख्यमंत्री ने पिछले बजट भाषण में अवस्थापना विकास को सरकार की मुख्य प्राथमिकताओं में शामिल बताया था। अवस्थापना विकास के लिए सरकार भले ही सार्वजनिक निजी सहभागिता (पीपीपी) का मंत्र जाप रही हो लेकिन जमीन पर इसका असर कम ही दिखायी पड़ा है। बजट भाषण में आगरा से लखनऊ तक प्रस्तावित आठ लेन वाले ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे और गाजियाबाद मे चार लेन वाली नार्दन पेरिफेरल रोड के निर्माण को पीपीपी के तहत सरकार की प्राथमिकताओं के तौर पर चिन्हित किया गया था, लेकिन दोनों ही परियोजनाओं में अभी सिर्फ कन्सल्टेंट का चयन हो सका है। 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) में साढ़े आठ प्रतिशत की सालाना विकास दर हासिल करने के लिए राज्य सरकार को योजना की अवधि में कुल 16,70,000 करोड़ रुपये की दरकार होगी। इसमें से 11,84,000 करोड़ रुपये निजी क्षेत्र से हासिल करने की मंशा जताई गई है। 12वीं योजना में सरकार ने अवस्थापना सेक्टर में पीपीपी के जरिये 2,03,868 करोड़ रुपये का निजी निवेश जुटाने का लक्ष्य तय किया है, जिसमें से 20,856 करोड़ रुपये चालू वित्तीय वर्ष में जुटाने का इरादा जताया गया है। इस लक्ष्य का बड़ा हिस्सा ऊर्जा सेक्टर में प्रस्तावित है जो खुद संकट से जूझ रहा है। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद पिछले साल 14 अप्रैल को अखिलेश यादव जब दिल्ली में प्रधानमंत्री से मिले तो उन्होंने सूबे की बिजली परियोजनाओं के लिए कोयले की किल्लत का जिक्र किया था। आठ महीने बाद बीती 27 दिसंबर को जब वह राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में प्रधानमंत्री से मुखातिब हुए तो उन्हें फिर कहना पड़ा कि निजी क्षेत्र की सात बिजली परियोजनाओं के लिए कोयला आवंटन नहीं हो सका है।

सरकार वित्तीय वर्ष 2013-14 के बजट में ‘जीरो बेस्ड बजटिंग’ अपनाए अर्थात चालू योजनाओं की समीक्षा कर नुकसान में चल रहीं परियोजनाओं को बंद कर उनका पैसा रचनात्मक स्कीमों में लगाये। नये बजट में पूर्व में घोषित नीतियों को गति प्रदान करने की बात की जाए।

-एसबी अग्रवाल, महासचिव, एसोचैम यूपी

वैट की दरें अन्य राज्यों के बराबर की जाएं ताकि प्रदेश के उद्योग प्रतिस्पर्धी बन सकें। उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार अवस्थापना सुविधाओं में ज्यादा निवेश करे। अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों और टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन के लिए बजट प्रावधान बढ़ाया जाए।

-अनिल गुप्ता, पूर्व अध्यक्ष, इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन

प्रदेश का नया बजट विकासोन्मुखी हो। अवस्थापना सुविधाओं और ऊर्जा क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान दिया जाए। लोहा और इस्पात पर लागू प्रवेश कर हटाया जाए। एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी (एपीएमसी) एक्ट लागू किया जाए।

-आलोक सक्सेना, चेयरमैन, यूपी स्टेट काउंसिल, सीआइआइ

राज्य में वैट का ढांचा अन्य प्रदेश के समतुल्य बनाया जाए। नए उद्योगों के लिए इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी कम की जाए। केंद्र से मिलने वाली सब्सिडी का समय से समुचित इस्तेमाल करने का प्रावधान बने।

-एलके झुनझुनवाला, को-चेयरमैन, यूपी कमेटी, पीएचडी चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री

ममता बनर्जी के इन्कार के बाद अखिलेश सरकार ने जिस उत्साह से आगरा में पार्टनरशिप समिट के आयोजन का कैच लपका था, उससे उम्मीद जगी थी कि उत्तर प्रदेश निवेश के क्षेत्र में बड़ा विकेट हासिल करेगा, लेकिन समिट के बाद महसूस हुआ कि यह तो नो बॉल निकली।’

एक प्रमुख औद्योगिक संगठन के पदाधिकारी की यह बेबाक टिप्पणी बताती है कि देश में उद्यमियों के सर्वाधिक प्रतिष्ठित मंच पर जोर-शोर से नीतियों की डुगडुगी पीटने के बावजूद नया निजाम उद्यमियों को सूबे में बड़े पैमाने पर निवेश के लिए लुभाने में नाकाम रहा।

सत्ता संभालने के बाद पिछले साल अपने पहले बजट भाषण में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रदेश में उद्योगों के त्वरित विकास और पूंजी निवेश को आकर्षित करने के लिए नई औद्योगिक नीति 2012 तैयार कर उसे प्रभावी तरीके से कार्यान्वित करने की घोषणा की थी। बजट घोषणा के क्रम में पिछले साल चार सितंबर को कैबिनेट ने अवस्थापना एवं औद्योगिक निवेश नीति 2012 को मंजूरी दे दी थी। मुख्य सचिव जावेद उस्मानी ने विभागों को निर्देश दिया था कि वे नई औद्योगिक नीति से संबंधित शासनादेश हर हाल में 25 अक्टूबर 2012 तक जारी कर दें। मुख्य सचिव के निर्देश के बावजूद नई औद्योगिक नीति में लोहा और इस्पात पर प्रवेश कर को पांच प्रतिशत से घटाकर एक फीसद करने और मंडी शुल्क से छूट संबंधी शासनादेश आज तक जारी नहीं हो सके हैं।

एसोचैम यूपी के महासचिव एसबी अग्रवाल कहते हैं कि पार्टनरशिप समिट उप्र में निवेश आकर्षित करने का बड़ा मौका था, लेकिन राज्य सरकार इसे ठीक से इसलिए नहीं भुना पायी क्योंकि जिन नीतियों की घोषणा की गई, उन्हें समय से धरातल पर उतारा नहीं जा सका। इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष तथा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम दर्जे के उद्योगों के लिए बनी प्रधानमंत्री की टास्क फोर्स के सदस्य रहे अनिल गुप्ता कहते हैं कि औद्योगिक एवं अवस्थापना सेक्टर के अलावा अखिलेश सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण, आइटी, सौर ऊर्जा, चीनी व पोल्ट्री क्षेत्र से संबंधित नीतियां भले ही घोषित कर दी हों, लेकिन उद्यमियों के लिए जमीनी हालात नहीं बदले हैं। उन्हें पहले की तरह ही सरकारी विभागों की लालफीताशाही का शिकार होना पड़ रहा है। आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि चालू वित्तीय वर्ष की तीन तिमाही बीतने पर सूबे में औद्योगिक निवेश बढ़ने की बजाए घटा है। अप्रैल से दिसंबर 2013 तक सूबे में कुल औद्योगिक निवेश महज 5789.87 करोड़ रुपये रहा जबकि वित्तीय वर्ष 2011-12 में यह 25052.42 करोड़ रुपये था।

पीएचडी चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की यूपी कमेटी के को-चेयरमैन एलके झुनझुनवाला कहते हैं कि प्रदेश में वैट और प्रवेश कर की अत्यधिक ऊंची दरों की वजह से स्थानीय उद्यमी के उत्पाद बाजार में प्रतिस्पर्धा से बाहर हो जाते हैं। सरकार इस पर कोई सुनवाई नहीं कर रही है। यदि उद्योग को बढ़ावा देना है तो सरकार को नीतियों के साथ अपनी नीयत में भी सकारात्मक बदलाव लाना होगा।

सूबे में औद्योगिक गतिविधियां कम होने के कारण बैंकों में जमा प्रदेशवासियों की बचत विकसित राज्यों का रुख कर रही है। यही वजह है कि उप्र में बैंकों का ऋण जमा अनुपात बेहद कम है जिस पर हाल ही में लखनऊ आए आरबीआइ के गवर्नर डी.सुब्बाराव भी चिंता जता चुके हैं। बैंक ग्राहकों से डिपाजिट जमा कराते हैं। इस धनराशि से वे ऋण लेने वालों को कर्ज देते हैं। डिपाजिट के आधार पर बैंक ऋण के रूप में परिसम्पत्तियां सृजित करते हैं। किसी बैंक द्वारा दिया गया कुल ऋण और उसके कुल डिपाजिट का अनुपात ही ‘ऋण जमा अनुपात’ कहलाता है। राष्ट्रीय स्तर पर बैंकों का ऋण-जमा अनुपात जहां 78 प्रतिशत है, वहीं उप्र में यह महज 47 प्रतिशत है। वरिष्ठ अर्थशास्त्री और गिरि विकास अध्ययन संस्थान के निदेशक प्रो.एके सिंह के मुताबिक ‘सूबे में ऋण-जमा अनुपात का यह स्तर प्रदेश में औद्योगीकरण की कमी का सूचक है। औद्योगिक गतिविधियां कम होने की वजह से प्रदेश में ऋण की मांग कम है। सूबे में लोग बचत कर रहे हैं जो बैंकों में जमा भी हो रही है लेकिन उसका बड़ा हिस्सा देश के विकसित राज्यों को हस्तांतरित हो रहा है। बैंक अपनी पूंजी (जमा) को बेकार पड़े रखने की बजाय उसे ऐसे राज्यों को हस्तांतरित कर देते हैं जहां कर्ज की मांग ज्यादा है।’

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