लखनऊ। सत्ता में आने पर ज्यादा बिजली देने का वादा करने वाली सपा सरकार पहले 11 माह में तो प्रदेशवासियों को पिछले वर्ष के बराबर भी बिजली नहीं दे सकी है। क्षेत्र विशेष को छोड़कर राज्य में चाहे उद्योग हों या बुंदेलखंड या फिर ग्रामीण इलाके, सभी की बिजली आपूर्ति घटी ही है।
पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष बुंदेलखंड में औसतन 2.02 घंटे ज्यादा बिजली कटौती हुई है। इसी तरह ग्रामीण क्षेत्र व तहसील स्तरीय कस्बों में 1.39 घंटे, जिला मुख्यालयों को 1.20 घंटे, महानगरों को एक घंटे, विशेष श्रेणी के नगरों में 31 मिनट तथा उद्योगों को 30 मिनट कम बिजली आपूर्ति हुई है। यद्यपि अखिलेश सरकार बनने के बाद से सपाई गढ़ कहे जाने वाले मैनपुरी, कन्नौज व इटावा जिले के शहर व गांवों को जहां 24 घंटे बिजली दी जा रही है वहीं रामपुर व संभल शहर भी बिजली कटौती से पूरी तरह मुक्त हैं। कांग्रेसी गढ़ रायबरेली व अमेठी जिला मुख्यालय को भी 24 घंटे बिजली दी जा रही है। उक्त के अलावा मंत्रियों व प्रभावशाली नेताओं के सौ से अधिक क्षेत्रों में भी आठ घंटे तक अतिरिक्त बिजली दी जा रही है।
आम प्रदेशवासियों को अब बिजली भले ही कम मिल रही है लेकिन उनके बिजली के खर्चे में इजाफा जरूर हो गया है। बिजली का दाम बढ़ाने के साथ ही इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी में इजाफा करके कारोबारियों व उद्यमियों को सरकार ने दोहरा झटका दिया है। फिलहाल घरेलू उपभोक्ताओं पर इलेक्ट्रिसिटी ड्यूटी का ही बोझ डाला गया है लेकिन उनकी बिजली के दाम बढ़ाने की कवायद भी तेजी से चल रही है। आपूर्ति लागत से कम बिजली के दाम होने व बिजली चोरी पर प्रभावी अंकुश न लगने से बिजली कंपनियों के बढ़ते घाटे से निपटने के लिए अब वित्तीय पुनर्गठन योजना (एफआरपी) के तहत प्रति वर्ष औसतन दस फीसदी बिजली के दाम बढ़ाए जाने का प्रस्ताव भी है।
प्रदेश में औसतन 8-10 फीसदी की दर से बिजली की प्रतिबंधित मांग (तय शेड्यूल के मुताबिक) में इजाफा तो हो रहा है लेकिन उसके मुताबिक उपलब्धता पर ध्यान न देने का नतीजा है कि सूबे में बिजली की मांग व उपलब्धता का अंतर घट नहीं रहा है। पिछले वित्तीय वर्ष से बिजली की उपलब्धता तो औसतन 11.4 मिलियन यूनिट (एमयू) ही बढ़ी है जबकि प्रतिबंधित मांग में औसतन 17.1 यूनिट का इजाफा हुआ है। बिजली की औसत उपलब्धता 199.9 एमयू से बढ़कर अब 211.3 एमयू पहुंच गई है। प्रतिबंधित मांग 199.7 एमयू से 216.8 एमयू तथा अप्रतिबंधित मांग 224.9 से बढ़कर 253.2 एमयू हो चुकी है। ऐसे में प्रदेशवासियों को आपात कटौती से अब कहीं अधिक जूझना पड़ रहा है।
मुख्यमंत्री ने पहले बजट में बिजली के लिए भी पर्याप्त धनराशि की व्यवस्था करने का दावा भले ही किया था लेकिन बिजली घरों से बिजली का उत्पादन बढ़ाने के लिए जितनी धनराशि रखी गई थी उसमें से 352.52 करोड़ रुपये अब तक जारी ही नहीं हो सके हैं। इसमें से 230.10 करोड़ रुपये 500-500 मेगावाट की हरदुआगंज, पारीछा व अनपरा डी बिजली परियोजना के लिए बजट में रखे गए थे लेकिन परियोजना लागत के पुनरीक्षित न होने से वित्त विभाग ने उक्त धनराशि ही फ्रीज कर दी है। पनकी, ओबरा सी, अनपरा ई, हरदुआगंज, पारीछा, घाटमपुर, मेजा आदि परियोजनाओं तथा बिजली परियोजनाओं के प्रदूषण नियंत्रण व कंप्यूटरीकरण के लिए बजट में रखे गए 122.42 करोड़ रुपये भी विभिन्न कारणों से अब सरेंडर किए जा रहे हैं।
बजट में चार हजार करोड़ रुपये से बिजली के पारेषण के कार्य प्रस्तावित किए गए थे लेकिन स्थिति यह है कि अभी जमीन जुटाने से लेकर टेंडर की प्रक्रिया ही चल रही है। बिजली आपूर्ति सुधारने के लिए 250 विद्युत उपकेंद्रों का निर्माण रखा गया था लेकिन अभी 30 ही बने हैं। 14 जिलों में कृषि क्षेत्र को विद्युत आपूर्ति के लिए स्वतंत्र फीडर की योजना के मद्देनजर बजट में 1500 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई थी लेकिन अब तक 13 जिलों में काम नहीं शुरू हो सका है। 3453 करोड़ की राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना, 1831 करोड़ की आरएपीडीआरपी व लोहिया समग्र ग्राम विकास योजना के तहत 120 करोड़ रुपये से विद्युतीकरण के कार्य भी अभी तेजी से नहीं शुरू हो सके हैं।