लखनऊ [जागरण ब्यूरो]। आंकड़ों के लिहाज से विधानसभा में मंगलवार को पेश होने वाला बजट उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा बजट होगा। बीते वर्ष साल दो लाख करोड़ रुपये का बजट था, इस बार यह सीमा भी पार कर जाने की बात कही जा रही है।
गैर जरूरी खर्च कम करने और आय बढ़ाने के दावे पर कोई सरकार खरी नहीं उतरती, ऐसा अखिलेश सरकार के साथ भी हुआ है। इसी के चलते घाटा बढ़ा है। महंगाई से परेशान लोगों के लिए अगर यह खबर थोड़ा तसल्ली देने वाली हो सकती है कि सरकार कोई नया कर नहीं लगाने जा रही है लेकिन उससे कहीं ज्यादा उन्हें इस बात से निराशा होगी कि महंगाई कम करने को कर घटाने की भी कोई कोशिश नहीं हुई है। खैर इन बातों के इतर जो सबसे खास बात कही जा रही है, वह यह कि अखिलेश सरकार के बजट से लोकसभा चुनाव की आहट महसूस की जा सकती है। वैसे तो सरकार के गठन के बाद से ही अखिलेश सरकार ‘लक्ष्य-2014’ को लेकर चल रही है लेकिन अब जब सपा यह मान रही है कि लोकसभा चुनाव वक्त से पहले इसी साल हो सकते हैं तो बजट पर चुनावी छाया होने से कतई इंकार नहीं किया जा सकता। माना जा रहा है कि अखिलेश सरकार के बजट से लोकसभा चुनाव की आहट साफ-साफ सुनाई पड़ेगी।
ऐसे में सीएम अखिलेश यादव का बजट में वह सारे नुस्खे आजमाना तय माना जा रहा है, जो उनकी पार्टी के लिए दिल्ली का ‘रास्ता’ तैयार हो सके। चुनावी घोषणा पत्र के अनुरूप पिछले बजट में उनका जो लोकलुभावन एजेंडा था, उसको वह और विस्तार देंगे। पिछले बजट में ऐसी योजनाओं के लिए जितना धन आवंटित किया गया था, उसे बढ़ाया जा सकता है। समाज के सभी वर्ग को खुश करने की कोशिश तो होगी ही लेकिन बजट के जरिए वोट बैंक के नजरिए से नौजवान, किसान तथा मुसलमान को खास तवज्जो दी जा सकती है क्योंकि यह वही समीकरण था, जिसने विधानसभा के आम चुनाव में समाजवादी पार्टी को ‘रिकार्ड’ बहुमत मिला था, समाजवादी पार्टी उसी प्रदर्शन को दोहराने को बेताब है। खुद मुलायम सिंह यादव कार्यकर्ताओं के बीच कई बार दोहरा चुके हैं कि लोकसभा चुनाव में विधानसभा जैसी जीत दर्ज करना नाक का सवाल है।