नई दिल्ली। चंदन तस्कर वीरप्पन के भाई और उसके तीन साथियों की फांसी पर फिलहाल सुप्रीम कोर्ट अपनी रोक जारी रखेगी। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट के अगले आदेश तक फांसी पर रोक जारी रहेगी और छह हफ्ते बाद इस मामले पर फिर सुनवाई की होगी।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने वीरप्पन के भाई और तीन साथियों की फांसी पर रोक लगा दी थी। वीरप्पन 2004 में पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था।
सूत्रों ने बताया कि कोर्ट ने इस लिए वीरप्पन के साथियों की फांसी पर लगी रोक को जारी रखा है क्योंकि कोर्ट के पास देवेंदर पाल सिंह भुल्लर की फांसी का मामला भी रुका हुआ पड़ा है। जब तक उस मामले पर कोई फैसला नहीं हो जाता है तब तक वीरप्पन के साथियों की फांसी पर सुनवाई टाल दी जाएगी। वरना एक साथ दोनों मामलों की सुनवाई होने से विवाद खड़ा हो सकता है।
दोनों का ही मामला देरी के आधार पर रुका हुआ था। वीरप्पन के साथियों ने भी देरी को आधार बनाकर फांसी पर दया याचिका दायर की थी और भुल्लर का मामला भी देरी के आधार पर ही रुका हुआ है।
गौरतलब है कि कर्नाटक की टाडा अदालत द्वारा सुनाई गई उम्रकैद की सजा को पलटते हुए 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने वीरप्पन के बड़े भाई ज्ञानप्रकाश के अलावा उसके साथियों साइमन, बिलवेंद्र और मीसकर मदैया को 1993 में 22 पुलिस कर्मियों को बारूदी सुरंग से उड़ा देने के जुर्म में फांसी की सजा सुनाई थी। गत 13 फरवरी को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने चारों की दया याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद से चारों पर मौत का फंदा झूल रहा है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दया याचिका निपटाने में देरी को आधार बनाते हुए सजा उम्रकैद में तब्दील करने का अनुरोध किया गया है।
मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने वीरप्पन के साथियों की ओर से दाखिल वकील समिक नारायण की याचिका पर बुधवार को सुनवाई की मंजूरी देते हुए तब तक फांसी की सजा पर रोक लगा दी है। इससे पहले अभियुक्तों की ओर से पेश वकील कोलिन गोंसाल्विस ने दोषियों को फांसी दिए जाने का विरोध करते हुए कहा कि उनकी दया याचिका निपटाने में अनुचित देरी हुई है। इसलिए फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया जाना चाहिए।
कोलिन ने देवेंदर पाल सिंह भुल्लर के मामले का हवाला देते हुए कहा कि उसकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित है। उस मामले में दया याचिका निपटाने में हुई देरी ही आधार है। दूसरी ओर से पेश अटार्नी जनरल जीई वाहनवती ने तकनीकी मुद्दा उठाते हुए याचिका पर सुनवाई का विरोध किया। उन्होंने कहा कि मामले पर सुनवाई नहीं हो सकती, क्योंकि याचिका की प्रति न तो केंद्र सरकार को दी गई है और न ही कर्नाटक सरकार को। अपराध की जघन्यता देखी जानी चाहिए। 22 पुलिस वालों की हत्या हुई थी। यह एक परंपरा बन गई है कि लोग दया याचिका खारिज होने के बाद फांसी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले आते हैं। कोर्ट ने कहा कि उनके पास दो विकल्प हैं। या तो वे इस याचिका को भी पहले से लंबित मामले के साथ संलग्न कर दें, या फिर अलग से सुनवाई करें।