उस काले दिन की कहानी से खौल जाएगा आपका खून

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नई दिल्ली। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन आज जलियांवाला बाग गए। उनसे माफी मांगने की मांग की जा रही है। जलियांवाला बाग हत्याकांड आज भी लोगों को झकझोर देता है। इतिहास के पन्नों में सिमटा वह काला दिन आज भी भारतीयों को अंग्रेजों की क्रूरता की याद दिलाता है। गुलामी का दंश झेलने के बजाए हमारे शहीद गोलियों का शिकार बनना स्वीकार किए। चलिए उस काले दिन की एक झलक हम आपको बताते हैं।

13 अप्रैल 1919 को बैसाखी का दिन था। बैसाखी वैसे तो पूरे भारत का एक प्रमुख त्योहार है लेकिन पंजाब और हरियाणा के किसान रबी की फसल काट लेने के बाद नए साल की खुशियां मनाते हैं। उनकी खुशियों पर अंग्रेजों की ऐसी नजर लगी कि जलियांवाला बाग बेगुनाहों के कत्लेआम से लाल हो गया।

बैसाखी के दिन 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में रौलेट एक्ट के खिलाफ एक सभा रखी गई, जिसमें कुछ नेता भाषण देने वाले थे। शहर में क‌र्फ्यू लगा हुआ था, इसमें सैंकड़ों लोग ऐसे भी थे, जो बैसाखी के मौके पर परिवार के साथ मेला देखने और शहर घूमने आए थे और सभा की खबर सुन कर वहां जा पहुंचे थे। जब नेता बाग में पड़ी रोड़ियों के ढेर पर खड़े हो कर भाषण दे रहे थे तभी ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर 90 ब्रिटिश सैनिकों को लेकर वहां पहुंच गया। उन सब के हाथों में भरी हुई राइफलें थीं। नेताओं ने सैनिकों को देखा, तो उन्होंने वहां मौजूद लोगों से शांत बैठे रहने के लिए कहा।

डायर के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज ने गोलियां चला कर निहत्थे, शांत बूढ़ों, महिलाओं और बच्चों समेत सैकड़ों लोगों को मार डाला था और हजारों लोगों को घायल कर दिया था।

10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाई गईं। जलियांवाला बाग उस समय मकानों के पीछे पड़ा एक खाली मैदान था। वहां तक जाने या बाहर निकलने के लिए केवल एक संकरा रास्ता था और चारों ओर मकान थे। भागने का कोई रास्ता नहीं था। कुछ लोग जान बचाने के लिए मैदान में मौजूद एकमात्र कुएं में कूद गए, पर देखते ही देखते वह कुआं भी लाशों से पट गया। बाद को उस कुएं से 120 लाशें निकाली गईं। शहर में क‌र्फ्यू लगा था जिससे घायलों को इलाज के लिए भी कहीं ले जाया नहीं जा सका। लोगों ने तड़प-तड़प कर वहीं दम तोड़ दिया। इस जघन्य हत्याकांड से पूरी दुनिया स्तब्ध थी।

अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था। अनाधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए।

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