लाडो ना आना इस देश

na ana is desh lado 2013-3-4नई दिल्ली। नन्ही चिरैया अंगना में फिर आना रे.। ये पंक्तियां सभी को भावुक कर देती हैं। लेकिन, आकंड़े बताते हैं कि ज्यादातर लोग बेटी नहीं जन्मना चाहते। देश के ज्यादातर हिस्सों में लड़कियों की संख्या में कमी आ रही है।

दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा की स्थिति तो बेहद सोचनीय है। कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए 17 साल पहले लागू किया गया भ्रूण परीक्षण कानून कैसे प्रभावी हो, इस पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट फैसला देने वाला है। गिरते लिंगानुपात को रोकने के लिए देश में 1996 से भ्रूण परीक्षण कानून लागू है, लेकिन तब से लेकर आज तक इस कानून के तहत कुल 874 मुकदमे दर्ज हुए और सजा मात्र 82 मामलों में हुई। कानून का उल्लंघन कर कन्या भ्रूण परीक्षण करने वाले नर्सिग होम की आज तक कुल 1353 मशीनें जब्त की गई हैं।

ये आंकड़े केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हैं। उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और महाराष्ट्र ने अलग से भी ताजा हलफनामे दाखिल किए हैं जो इन राज्यों में कानून लागू करने की खराब स्थिति दर्शाते हैं। बीती फरवरी में दाखिल दिल्ली के हलफनामे के मुताबिक भ्रूण परीक्षण कानून के तहत राज्य में 47 मुकदमे दाखिल हुए जिनमें कुछ 2002 से लंबित हैं और सजा किसी में नहीं हुई। जबकि, राजधानी में लड़कियों की संख्या लगातार घट रही है। राजस्थान में 359 अल्ट्रासाउंड मशीनें जब्त हुईं। अदालत में 493 शिकायतें दर्ज की गईं और नौ मामलों में सजा सुनाई गई। उत्तर प्रदेश सरकार ने 2002 से 2013 तक के आंकड़े दिए हैं जिसके मुताबिक पिछले 11 सालों में सूबे में मात्र 57 कोर्ट केस रजिस्टर हुए। इनमें से सिर्फ आठ मामले अदालत में निपट पाए, लेकिन सजा इनमें से किसी मामले में नहीं हुई। उत्तर प्रदेश में लिंगानुपात लगातार घट रहा है। 1991 में सूबे में जहां प्रति हजार बालक पर 927 बालिकाएं थीं, जो 2011 में घटकर 899 रह गईं। हरियाणा में दर्ज 86 मुकदमों में 30 लोगों को सजा सुनाई गई। हरियाणा में लिंगानुपात की स्थिति बेहद खराब है। सूबे के 21 जिलों में यह 800 के आसपास है जबकि कुरुक्षेत्र में 793 और रेवाड़ी में 788 है।

इस मामले में गैर सरकारी संगठन वालंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ पंजाब ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर भ्रूण लिंग परीक्षण रोक कानून को प्रभावी ढंग से लागू करने की मांग की है। याचिकाकर्ता ने इस संबंध में सरकार से लेकर निचली अदालतों तक को निर्देश दिए जाने की मांग की है।

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