श्रीनगर। पुलिस पब्लिक स्कूल बेमिना में बुधवार को हुआ आतंकी हमले की जिम्मेदारी बेशक हिजबुल मुजाहिदीन ने ली हो, लेकिन इसकी साजिश लश्कर संस्थापक हाफिज सईद के पुत्र अबु तल्हा और दामाद वलीद ने रची थी। उन्होंने सिर्फ इसी हमले की तैयारी नहीं की है,बल्कि राज्य के विभिन्न हिस्सों से लेकर देश के कई मेट्रो शहर भी उनके निशाने पर हैं।
सुरक्षाबलों पर घात लगाकर हमला करना, भीड़भरे इलाकों में विस्फोट, अल्पसंख्यकों की हत्या, पुलिसकर्मियों व पंचायत प्रतिनिधियों या उनके परिजनों को निशाना बनाना, किसी महत्वपूर्ण प्रतिष्ठान या सैन्य शीविर में आतंकी हमला और लोगों को बंधक बनाना, लश्कर व आईएसआई की इस नई साजिश का हिस्सा हैं।
हालांकि कोई भी अधिकारी आतंकियों की इस साजिश के बारे में खुलकर बोलने को तैयार नहीं है। लेकिन संबधित सूत्रों के अनुसार, तल्हा और वलीद की गत 15 फरवरी को गुलाम कश्मीर की राजधानी मुजफ्फराबाद के पास एक स्थान विशेष पर आईएसआई के अधिकारियों और कश्मीर में सक्रिय आतंकी संगठनों के सरगनाओं के साथ एक बैठक हुई थी। इसी बैठक में कश्मीर में अफजल गुरु को फांसी के बाद पैदा हुए हालात में सनसनीखेज आतंकी वारदातों को अंजाम देने का मंसूबा बुना गया था।
इस बैठक में अल-उमर मुजाहिदीन का चीफ कमांडर मुश्ताक अहमद जरगर उर्फ मुश्ताक लटरम भी शामिल था, जिसने गत फरवरी माह के दौरान कश्मीर में सुरक्षाबलों पर हमलों में तेजी लाने की धमकी दी थी। संबधित सूत्रों ने बताया कि 15 फरवरी को गुलाम कश्मीर में हुई बैठक में आतंकी कमांडरों ने तय किया था कि अगर मौजूदा हालात में कश्मीर और उसके साथ ही भारत के अन्य बड़े शहरों में किसी बड़ी वारदात को अंजाम दिया जाएगा तो उसे प्रचार खूब मिलेगा। इससे न सिर्फ कश्मीर में सक्रिय आतंकियों के घटते मनोबल को फिर से बढ़ाया जा सकता है बल्कि कश्मीर मुद्दे को फिर से एक बडे़ विवाद के तौर पर अंतरराष्ट्रीय जगत में उछाला जा सकता है।
हाफिज सईद के पुत्र अबु तल्हा और दामाद वलीद की मौजूदगी में हुई इस बैठक में सुरक्षाबलों पर ज्यादा से ज्यादा हमले करने, सुरक्षाबलों के शीविरों व सरकारी प्रतिष्ठानों पर हमले के अलावा कश्मीर में अल्पसंख्यकों की हत्याओं का खाका तैयार करते हुए जम्मू कश्मीर से बाहर दिल्ली, मुंबई, गुजरात, कोलकाता, बेंगलूर, आंध्र प्रदेश व यूपी के कई शहरों में भी हमलों करने की साजिश बनाई गई थी।
इस साजिश को अमल में लाने के लिए पहले से ही जम्मू कश्मीर व देश के अन्य हिस्सों में सक्रिय आतंकी कैडर की मदद लेने का फैसला हुआ था। इसके अलावा यह भी तय किया गया था कि अगर किसी एक संगठन के लिए इस साजिश को अमली जामा पहनाना संभव न हो तो वह अन्य आतंकी संगठनों के कैडर की मदद ले सकता है। इसके अलावा जरूरत पड़ने पर वह अपनी कार्रवाई का जिम्मा खुद न लेकर किसी दूसरे संगठन को लेने दे। इससे न सिर्फ कार्यवाही करने वाले संगठन पर दवाब से बचा जा सकेगा और अगर सिर्फ जिम्मेदारी लेने वाले संगठन का कोई सदस्य पकड़ा जाएगा तो उसके छूटने की संभावना ज्यादा होगी।
इससे पहले, घटते कैडर और सुरक्षा बलों के बढ़ते दबाव से हताश आतंकियों ने बुधवार पूर्वाह्न श्रीनगर के बाहरी इलाके में बसे बेमिना के पुलिस पब्लिक स्कूल मैदान में क्रिकेट खेलने के बहाने दाखिल होकर हमला किया। क्रिकेट किट में छिपाकर लाए गए हथियारों से किए हमले में सीआरपीएफ के पांच जवान मारे गए जबकि 15 जवान और तीन स्थानीय नागरिक घायल हुए हैं। घायल 10 जवानों की दशा चिंताजनक बनी हुई है। सुरक्षा बलों की जवाबी कार्रवाई में दोनों हमलावर आतंकी भी मारे गए। घटना की जिम्मेदारी हिजबुल मुजाहिदीन ने ली है। केंद्रीय गृह सचिव आरके सिंह ने मारे गए दोनों आतंकियों के पाकिस्तानी होने का शक जाहिर किया है।
करीब तीन साल बाद जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के हृदयस्थल लाल चौक से महज सात किलोमीटर की दूरी पर हुए आतंकी हमले के लिए जिस स्कूल का मैदान चुना गया, उसमें बुधवार को छुंट्टी थी। इसके चलते मैदान में क्रिकेट खेलने और उन्हें देखने आए लोगों की संख्या बहुत कम थी। जिस जगह हमला हुआ है, उसके पास ही सीआरपीएफ [केंद्रीय आरक्षित पुलिस बल] का शिविर भी है। अभी यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि आतंकियों के निशाने पर मैदान में आए लोग थे या सीआरपीएफ का शिविर।
स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर स्कूल की छुंट्टी न होती, तो बड़ी संख्या में बच्चे हमले का शिकार होते। क्रिकेट खेलने के बहाने मैदान में दाखिल हुए आतंकियों ने खिलाड़ियों की आड़ में बैग से हथियार निकाले और खेल देख रहे सीआरपीएफ के जवानों और अन्य लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। पता चला है कि इस दौरान आतंकियों ने कई ग्रेनेड भी फेंके।
अचानक हुई फायरिंग व ग्रेनेड धमाकों से मैदान में अफरातफरी मच गई। गोलियों की आवाज सुनकर सीआरपीएफ के जवान और पुलिसकर्मी मौके पर पहुंच गए। फंसे निहत्थे लोगों को मैदान से निकालने के बाद सुरक्षा बलों ने आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की और कुछ ही मिनटों में दोनों हमलावरों को मार गिराया। डीआइजी श्रीनगर-बडगाम रेंज अफादुल मुजतबा ने बताया कि आतंकी क्रिकेट किट लेकर मैदान में आए थे। इसलिए वहां मौजूद सीआरपीएफ के जवानों को उन पर संदेह नहीं हुआ। घटना के बाद समूची वादी की सुरक्षा बढ़ा दी गई है।
मुठभेड़ के बाद बेमिना में हिंसा और पथराव
बेमिना में मुठभेड समाप्त होने के बाद पुलिस व अर्धसैनिक बलों को स्थानीय लोगों के रोष का भी सामना करना पड़ा। बड़ी संख्या में स्थानीय लोग आतंकियों के हक मे नारेबाजी करते हुए वहां जमा होने लगे और उन्होंने सुरक्षाकर्मियों पर पथराव भी किया। इस पर उन्हें खदेड़ने के लिए सुरक्षाकर्मियों को लाठियों के साथ तथाकथित तौर पर हवाई फायरिंग का भी सहारा लेना पड़ा। अलबत्ता, पुलिस ने जल्द ही स्थिति पर काबू पा लिया।
हमले के बाद वादी में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी
पुलिस पब्लिक स्कूल के मैदान में हुए हमले के बाद प्रशासन ने पूरे कश्मीर में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है। इसके साथ ही मुठभेड़ स्थल के साथ सटी अल फारूक कालौनी में संदिग्ध तत्वों की धरपकड़ के लिए तलाशी अभियान भी चलाया गया है। इसके अलावा शहर में सक्रिय अलगाववादी तत्वों के समर्थक मोटरबाईकर्स की भी तलाश की जा रही है।
मुख्यमंत्री ने की निंदा
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने बेमिना में हुए आत्मघाति हमले की निंदा करते हुए कहा कि यह कश्मीर का माहौल बिगाड़ने की साजिश है। उन्होंने राच्य विधानसभा को इस हमले की जानकारी देते हुए बताया कि इसमें सीआरपीएफ के पांच जवान शहीद व पांच अन्य घायल हुए हैं। तीन नागरिक भी इस हमले में घायल हुए हैं। दोनों आत्मघाती आतंकी भी जवाबी कार्रवाई में मारे गए हैं।
उन्होंने कहा कि इस हमले के बाद एक बार फिर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है ताकि आतंकियों को दोबारा इस तरह कोई मौका नहीं मिल सके। हम रियासत में हर हाल में सुरक्षा व्यवस्था और अमन कायम रखने को संकल्पबद्ध हैं।
आतंकियों ने बदली रणनीति
पुलिस पब्लिक स्कूल में आज हुए आत्मघाति हमले ने एक बार फिर आतंकियों की बदली रणनीति और उनके नापाक मंसूबों का ही संकेत किया है, ताकि आम लोगों के बीच अपनी दहशत को कायम करते हुए उन्हें सुरक्षाबलों के खिलाफ किया जा सके।
हालांकि आतंकियों ने करीब 12 साल पहले भी एक हमले को अंजाम देने के लिए क्रिकेट किट का इस्तेमाल किया था,लेकिन तब उनका मकसद सिर्फ हथियारों को सुरक्षित घटनास्थल तक पहुंचाना था। वर्ष 2000 में आतंकियों ने जम्मू में श्री अमरनाथ यात्रियों पर हमले के लिए जिन हथियारों को इस्तेमाल किया था, वह क्रिकेट किट में ही लाए गए थे। लेकिन आज उन्होंने क्रिकेट किट और यूनीफार्म का इस्तेमाल, हथियार बचाने के लिए नहीं बल्कि अपने लिए स्थानीय कैडर, पत्थरबाजों की संख्या बढ़ाना और यह जतलाना कि आतंकवाद अभी समाप्त नहीं हुआ है, के लिए किया है।
आतंकरोधी अभियानों में हिस्सा लेने वाले पुलिस अधिकारियों के अनुसार, वर्ष 2010 के बाद जिस तरह से स्थानीय युवकों और सुरक्षाबलों के बीच संवाद बड़ा है,उससे आतंकी व अलगाववादी पूरी तरह हताश हो चुके हैं। अगर अफजल गुरु को फांसी के बाद पैदा हुए हालात को नजर अंदाज किया जाए तो बीते दो सालों के दौरान किसी भी जगह स्थानीय युवक पत्थरबाजी के लिए वर्ष 2010 की तरह जमा नहीं हुए हैं।
स्थानीय लोगों और युवकों को अलगाववादियों व आतंकयिों के दुष्प्रचार की समझ आ चुकी है। इसलिए अब वह उनके आह्वान पर पथराव में हिस्सा लेने के बजाय, जब कभी कश्मीर में हड़ताल होती है या कर्फ्यू लगता है तो अधिकांश इलाकों में स्थानीय युवक अपने घर के बाहर गलियों या निकटवर्ती मैदानों में क्रिकेट खेलते हैं। इस साल भी गुरु की मौत के बाद अलगाववादियों द्वारा आयोजित हड़तालों के दौरान ज्यादातर युवकों ने पत्थर फेंकने के बजाय क्रिकेट ही खेलना उचित समझा है। पुलिस व अर्धसैनिकबल भी ऐसे लड़कों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते, क्योंकि कोई भी नहीं चाहता कि अपनी दुनिया में मस्त बच्चों को तंग किया जाए।
आतंकियों ने इसका ही फायदा उठाया। उन्हें मालूम था कि क्रिकेट खेलने की आड़ में वह किसी भी जगह सुरक्षाबलों के करीब पहुंच सकते हैं। उनके इस तरह दो मकसद हल होते हैं। अगर उनकी फायरिंग के जवाब में सुरक्षाबलों की फायरिंग में किसी आम युवक की मौत हो जाती तो पूरा कश्मीर फिर सुरक्षाबलों के खिलाफ सडकों पर आ जाता। आतंकियों व अलगाववादियों को मौका मिलता कि एक मासूम को क्रिकेट खेलते हुए सुरक्षाकर्मियों ने मार गिराया। दूसरा, यही कि अब अगर कहीं बंद के दौरान लड़के क्रिकेट खेल रहे होंगे तो सुरक्षाबल उनसे पूछताछ करेंगे, उन्हें मना करेंगे। इससे युवाओं में गुस्सा भड़केगा और वह फिर सुरक्षाबलों के खिलाफ हो पत्थर भी फेंकेंगे, किसी आतंकी संगठन के साथ भी जुड़ेंगे। इसलिए उन्होंने क्रिकेट का मैदान, क्रिकेट किट और क्रिकेट खिलाड़ी की यूनीफार्म चुनी है।
घाटी में आतंक का खूनी खेल
12 मार्च, 2013 : जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में आतंकियों ने दो पुलिस वालों की गोली मार कर हत्या की थी।
जनवरी, 2010 : श्रीनगर के लाल चौक में सीआरपीएफ कैंप पर हुए आत्मघाती हमले में तीन आतंकी और पांच अन्य लोग मारे गए।
8 अप्रैल, 2004 : चुनावी रैली के दौरान आतंकी हमले में आठ लोग मारे गए, 20 घायल हुए। घायलों में तत्कालीन राज्य वित्त मंत्री मुजफ्फर हुसैन बेग और पर्यटन मंत्री गुलाम हसन मीर भी थे।
3 मार्च, 2004 : जम्मू के जिला कारावास में हुए आतंकी हमले में चार पुलिस कर्मियों समेत सात लोग मारे गए।
22 जुलाई, 2003 : जम्मू के निकट अखनूर स्थित आर्मी कैंप में हुए आतंकी हमले में एक ब्रिगेडियर समेत सात जवान मारे गए।
27 अप्रैल, 2003 : श्रीनगर में आत्मघाती दल द्वारा रेडियो कश्मीर नाम से मशहूर रेडियो स्टेशन पर हमले में दो सुरक्षाकर्मी समेत आठ लोग मारे गए।
24 नवंबर, 2002 : जम्मू के रघुनाथ मंदिर में हुए आतंकी हमले में 12 लोग मारे गए और 50 घायल हुए।
14 मई, 2002 : जम्मू के सैन्य आवास कालूचक पर आतंकी हमले में सैन्यकर्मियों के कई परिजनों समेत तकरीबन 30 लोग मारे गए।
3 मार्च, 2001 : जम्मू में हुए आतंकी हमले में 17 लोग मारे गए और पुलिस के छह जवान जख्मी हुए।
1 अक्टूबर, 2001 : श्रीनगर स्थित जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर हुए आत्मघाती आतंकी हमले में 29 नागरिक और तीन आतंकी मारे गए।
आतंकी हमले में हताहत जवानों की सूची
1. कांस्टेबल ओम प्रकाश निवासी सिहोर, मध्य प्रदेश।
2. कांस्टेबल पेरुमल निवासी मधुरा, तमिलनाडु।
3. कांस्टेबल सुभाष सौरव निवासी रांची, झारखंड।
4. कांस्टेबल सतीसा निवासी मंदिया, कर्नाटक।
5. एएसआइ एबी सिंह निवासी उज्जैन, मध्य प्रदेश।
घायल जवान:
1. सब इंस्पेक्टर अशोक कुमार निवासी जम्मू।
2. कांस्टेबल अतरादा निवासी कोल्हापुर, महाराष्ट्र।
3. गोस्वामी योगेश निवासी महीसा, गुजरात।
4. कांस्टेबल भरत निवासी बिहाड, गुजरात।
5. जीवन किशोर निवासी सिंहभूम, झारखंड।