अवमानना की चपेट में आ सकते हैं इटली के राजदूत

DanieleMancini 2013-3-14नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में शपथपत्र दाखिल कर इटली के राजदूत डैनियल मैनसिनी ने भारत की अदालत का क्षेत्राधिकार स्वीकार कर लिया है और इसलिए सुप्रीम कोर्ट आदेश की अवहेलना पर उन्हें अवमानना नोटिस जारी कर सकता है। ज्यादातर कानूनविदों का ऐसा ही मानना है। हालांकि कुछ लोग इस मत से सहमत नहीं हैं।

उधर, इटली के नाविकों की सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने इटली सरकार के रवैये पर आश्चर्य और क्षोभ प्रकट करते हुए स्वयं को मामले से अलग करने का ऐलान कर दिया है। इटली सरकार द्वारा भारतीय नाविकों की हत्या के आरोपी अपने दो नौसैनिकों को वापस भारत भेजने से इन्कार करने के बाद भारत सरकार और कोर्ट के पास क्या कानूनी उपाय बचते हैं उस पर दिल्ली हाई कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश आरएस सोढ़ी कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर नाविकों को वापस भेजने का भरोसा दिलाने वाले इटली के राजदूत पर कार्यवाही हो सकती है।

इटली के राजदूत ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर स्वयं ही यहां की अदालत का क्षेत्राधिकार स्वीकार किया है। राजदूत को भारतीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों कानून के तहत पकड़ सकते हैं क्योंकि उन्होंने स्वयं को भारतीय कानून में समर्पित किया है। अब सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह कोर्ट का आदेश लागू कराए। अगर कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर नाविकों को वापस लौटाने की जिम्मेदारी लेने के बावजूद वे इटली के नाविकों को वापस भारत नहीं लाते तो अदालत उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाही कर सकती है और सरकार उन्हें देश छोड़ने से रोक सकती है। कुछ ऐसा ही मत जानेमाने वकील मुकुल रोहतगी का भी है। उनका कहना है कि इटली के राजदूत के मामले में कूटनीतिक विशेषाधिकार लागू नहीं होंगे क्योंकि ये सरकार के बीच की बात नहीं है बल्कि कोर्ट के बीच की बात है। सुप्रीम कोर्ट राजदूत को अवमानना नोटिस जारी कर सकता है। कोर्ट उन्हें आदेश के पालन का मौका दे और अगर मौका देने के बावजूद आदेश का पालन नहीं होता तो कोर्ट उनके खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही भी कर सकता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के वकील डीके गर्ग इससे सहमत नहीं है। उनका कहना है कि दूतावास या राजदूत किसी भी अदालत के प्रति जवाबदेह नहीं है। कोर्ट इटली के राजदूत के खिलाफ कार्यवायी नहीं कर सकता। उन्हें कोर्ट में नहीं घसीटा जा सकता। गर्ग जस्टिस कृष्णा अय्यर के एक फैसले का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि उस फैसले में कहा गया था कि अगर कोई पानी का जहाज भारतीय झंडे के साथ जा रहा है तो उसे भारत का द्वीप माना जाएगा यानि कि वह संप्रभु देश का हिस्सा होगा। इसी तरह राजदूत और दूतावास को छूट प्राप्त होती है उस पर कार्यवाही नहीं हो सकती। इतना ही नहीं वे राज महेन्द्रा कर्मचारी संघ के मामले में दिये गये सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी उदाहरण देते हैं जिसमें कोर्ट ने भूलवश नेपाल सरकार को नोटिस जारी कर दिया था और बाद में कोर्ट ने अपना नोटिस जारी करने का आदेश वापस लिया था।

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