नई दिल्ली। बहुचर्चित भूमि अधिग्रहण विधेयक के संसद से पारित होने पर एक बार फिर ग्रहण लग गया है। विधेयक के मसौदे पर बुधवार को संसद परिसर में होने वाली बैठक टाल दी गई। इससे विधेयक के लंबित होने के आसार बढ़ गए हैं, जबकि संसद के शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन सरकार ने भरोसा दिलाया था कि भूमि अधिग्रहण विधेयक को बजट सत्र में पहले विधेयक के रूप में पेश किया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
जानकारों के मुताबिक, भूमि अधिग्रहण विधेयक के कुछ सख्त प्रावधानों से कारपोरेट क्षेत्र संतुष्ट नहीं है। विधेयक के खिलाफ उनकी लॉबिंग के चलते विधेयक को लगातार टाला जा रहा है। दरअसल भूमि अधिग्रहण विधेयक के मसौदे को लेकर जहां किसान संगठन नाराज हैं, वहीं औद्योगिक संगठन भी इससे सहमत नहीं हैं। उन्हें लग रहा है कि जमीनों के दाम बढ़ जाने से परियोजनाओं की लागत बहुत बढ़ सकती है। संसद की स्थायी समिति की सिफारिशों के आधार पर तैयार विधेयक के मसौदे पर आम सहमति बनाने के लिए पिछले सप्ताह सर्वदलीय बैठक बुलाई गई थी, लेकिन बैठक बिना किसी गंभीर चर्चा के समाप्त हो गई।
बैठक में सभी दलों के नेता विधेयक के मसौदे का अध्ययन कर चर्चा करना चाहते थे। इसी के मद्देनजर अगली बैठक 20 मार्च को तय कर दी गई। लेकिन बुधवार को बैठक नहीं हो सकी। माना जा रहा है कि विधेयक अब संसद के मध्यावकाश के बाद ही पेश हो सकेगा। ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश का कहना है कि राजनीतिक मोर्चो पर सरकार उलझी हुई है। इस कारण प्रस्तावित बैठक स्थगित करनी पड़ी। तमिल मुद्दे पर सरकार से द्रमुक का समर्थन वापस लेने और बेनी प्रसाद वर्मा और मुलायम सिंह यादव के बीच छिड़ी राजनीतिक बयानबाजी की जंग से सरकार की सांसत बढ़ गई है। राज्य सभा में आम बजट अभी पारित नहीं हो सका है, जिसे पारित कराना सरकार की प्राथमिकता है। इसी वजह से सर्वदलीय बैठक नहीं हो सकी है।