नई दिल्ली [माला दीक्षित]। कागज पर सारे कानून मजबूत दिखते हैं, लेकिन पुलिस के पास जाने के बाद भी उनकी मजबूती कायम रहे, इसका इंतजाम भी एंटी रेप बिल में किया गया है। पहली बार महिलाओं के प्रति अपराध में पुलिस की जवाबदेही तय हुई है। अगर कोई पुलिसकर्मी छेड़खानी या रेप की शिकायत मिलने पर एफआइआर (प्राथमिकी) दर्ज नहीं करता है तो उसे छह महीने से लेकर दो साल तक के कठोर कारावास की सजा हो सकती है, इतना ही नहीं उस पर मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी की भी जरूरत नहीं होगी।
कानून के नुकीले दांतों को भोथरा करने की तमाम कोशिशों के बाद मंगलवार को लोकसभा से पारित हुआ क्रिमिनल अमेंडमेंट बिल 2013 कुछ कड़े प्रावधान ले ही आया है। इसमें महिलाओं के प्रति अपराध में कड़ी सजा तय की गई है, लेकिन सजा तभी मिल सकती है जब पुलिस एफआइआर दर्ज करे। ज्यादातर मामलों में एफआइआर दर्ज न किए जाने का आरोप लगता है। ऐसा न हो इसके लिए आइपीसी में धारा 166ए जोड़ी गई है, जिसकी उपधारा (सी) कहती है कि अगर कोई पुलिस अधिकारी जानबूझकर किसी कानूनी निर्देश या प्रक्रिया का उल्लंघन करता है या पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर कोई जांच नियमित करता है या फिर वह एसिड हमला, छेड़खानी, मानव तस्करी और रेप आदि में एफआइआर दर्ज करने में नाकाम रहता है तो उसे छह महीने से लेकर दो साल तक का कठोर कारावास व जुर्माने की सजा हो सकती है।
पुलिस को जवाबदेह बनाने के इस कानून को पूर्व मुख्य लोक अभियोजक केडी भारद्वाज क्रांतिकारी परिवर्तन मानते हैं। वह कहते हैं कि पुलिस को जवाबदेह बनाने से अपराध रुकेंगे।
जस्टिस वर्मा कमेटी के सदस्य पूर्व सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम भी इस प्रावधान से खुश हैं, लेकिन घूरने व पीछा करने के अपराध को जमानती करना उन्हें ठीक नहीं लगता। उनका कहना है कि अपराध यहीं से शुरू होता है। वह महिलाओं को सशक्त व सुरक्षित बनाने के लिए महिला अधिकार बिल की भी बात कहते हैं।
महिलाओं को सुरक्षित बनाने के साथ-साथ सख्त कानून के दुरुपयोग की आशंकाओं पर भी बहस तेज है, लेकिन भारद्वाज का कहना है कि किसी की गिरफ्तारी पुलिस का विवेकाधिकार (सीआरपीसी धारा 41) है, इसलिए गिरफ्तारियां बढ़ जाएंगी, कहना गलत है। कानून के दुरुपयोग से भी नहीं डरना चाहिए क्योंकि धारा 211 झूठी शिकायतकर्ता पर कार्रवाई का प्रावधान करती है। छेड़खानी व रेप का मुकदमा सिर्फ महिला अधिकारी द्वारा दर्ज करने की शर्त व्यावहारिक नहीं हैं क्योंकि थानों में हर समय महिला अधिकारी की उपस्थिति शायद अभी संभव नहीं है। वहीं, सुब्रमण्यम का कहना है कि महिला अफसर की मौजूदगी सुनिश्चित करना कठिन नहीं है।
पुलिस को घेरता प्रस्तावित कानून आइपीसी धारा 166ए :