तुझे जिबह करने की खुशी और मुझे मरने का शौक है

childhood of bhagat singhनई दिल्ली। तुझे जिबह करने की खुशी और मुझे मरने का शौक है, है मेरी मर्जी वही जो मेरे सैयाद की है। आजादी के दीवानों का यह जज्बा आज भी हमे झकझोर देता है। 23 मार्च 1931 को मात्र 23 साल की उम्र में ही देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल गए। देशवासियों के दिलों में वे आज भी जिन्दा हैं। उनकी ख्वाहिश और देशप्रेम को महसूस करने के लिए हम आपको महान देशभक्त भगत सिंह की एक बचपन की कहानी बताते हैं। कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिखने लगते हैं।

एक बार कि बात है कि भगत सिंह के हाथ बचपन में खेलते-खेलते अपने चाचाजी की बंदूक लग गई। बस बचपना में कहें या उत्सुक्ता में, उन्होंने अपने चाचाजी से पूछा कि आखिर इससे क्या होता है? उनके चाचा जी ने बताया कि वे इससे अंग्रेजी हुकूमत को दूर भगाएंगे। बस फिर क्या था वह छोटा सा बच्चा दौड़कर अपने खेत में चला गया। पीछे पीछे दौड़ते हुए चाचा जी भी गए देखा कि बच्चा गढ्ढ़ा खोद रहा है। खोदने के बाद बंदूक को डालने लगा। चाचा जी से रहा नहीं गया पूछा कि ये क्या कर रहे हो? बड़ा ही मासूम लेकिन दृढ़ निश्चय झलका जब उस बच्चे ने कहा कि वे बंदूक की फसल उगा रहे हैं ताकि अंग्रेजों को भगाने में क्रांतिकारियों के काम आ सके।

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