लखनऊ । पचास लाख का कृत्रिम दिल मात्र दो लाख में। जी हां, इस सपने को साकार करने की कोशिश में दिनरात जुटे हैं डॉक्टर। कोशिश रंग लाई तो आने वाले चार-पांच सालों में देश में बना कृत्रिम हार्ट उपलब्ध होगा।
यह जानकारी चेन्नई स्थित फोर्टिस मलर हॉस्पिटल के डॉ. केआर बालाकृष्णन ने दी। डॉ.बालाकृष्णन ने वेन्ट्रीकुलर असिस्ट डिवाइस के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि डिवाइस की कीमत 50 लाख रुपये के करीब है। अभी इसे विदेशों से आयात किया जाता है, लेकिन बहुत जल्द हमारे देश में भी इसका निर्माण शुरू हो सकेगा। उनका अनुमान है कि तब पचास लाख के कृत्रिम दिल मात्र दो लाख में उपलब्ध हो सकेगा। दरअसल ऐसे मरीज जिनका हार्ट खराब होने के कारण जीवन छह माह से ज्यादा का नहीं होता उनके लिए वेंट्रीकुलरअसिस्ट डिवाइस एक वरदान है। इसके जरिए दस या इससे अधिक वर्ष तक मरीज जी सकता है। इसमें बस एक दिक्कत यह है कि एक केबल के जरिए बैटरी को चार्ज करना पड़ता है। बैटरी 96 घंटों तक काम करती है और एक बैटरी चार वर्ष तक चलती है।
एक समस्या यह भी है कि बैटरी चार्ज करने के लिए लगे केबल में इंफेक्शन होने का खतरा रहता है। ऐसी टेक्नॉलाजी पर काम हो रहा है जिसमें वायरलेस तकनीक पर आधारित डिवाइस लगाई जाए, जिससे केबल का झंझट ही न रहे। डॉ.कृष्णन बताते हैं कि भविष्य में ऐसे चार्जिंग सेंटर होंगे, जिसमें कॉफी पीते हुए बैटरी चार्ज की जा सकेगी।
पेस मेकर के कारण दिल को करंट मिलता है, जिससे दिल धड़कता है। इसी धड़कन के कारण शरीर में ब्लड पंप होता है। यदि धड़कन किसी कारण अनियमित हो जाए या कोई अवरोध आ जाए तो ऐसे में डॉक्टरों द्वारा कृत्रिम पेस मेकर लगाया जाता है। इससे हार्ट को इलेक्ट्रिक इंपल्स मिलती है। निश्चित अंतराल पर करंट मिलने से धड़कन सामान्य हो जाती है और रक्त का प्रवाह सामान्य हो जाता है। कृत्रिम हार्ट इससे एक सीढ़ी आगे की बात है। जब हार्ट द्वारा पंपिंग रुक जाती है यानी विकार आ जाता है तब कृत्रिम हार्ट को जिसे वेंट्रीकुलर असिस्ट डिवाइस कहते हैं हार्ट में फिट कर दी जाती है। मुख्य धमनी को इससे जोड़ दिया जाता है। यह बिल्कुल दिल के समान शरीर में खून पंप करने का काम करता है।
आसान नहीं प्रत्यारोपण
हार्ट ट्रांसप्लांट की डगर आसान नहीं है। ऐसा नहीं है कि तकनीक सटीक नहीं है लेकिन जागरूकता की कमी के चलते दिल दान करने के लिए कोई तैयार नहीं होता। यही नहीं इसके लिए बहुत सारी टीमों को एक साथ काम करना पड़ता है। डोनर और रिसीवर दोनों एक स्थान पर हों। मैचिंग हो जाए और प्रत्यारोपण के लिए पूरी टीम उपलब्ध हो। यही नहीं, ब्रेन डेथ के चार घंटे के भीतर दिल को प्रत्यारोपित करना जरूरी है। प्रत्यारोपण उसी व्यक्ति का हो सकता है, जिसका जीवन मात्र 6 माह का बचा हो। यह जानकारी मेजर जनरल डॉ.मनोज लूथरा ने दी। उन्होंने बताया कि अब तक दुनिया में 80 हजार प्रत्यारोपण किए जा चुके हैं। हालांकि भारत में साल में 2-3 प्रत्यारोपण ही हो पाते हैं। प्रत्यारोपण में तो केवल 2 लाख रुपये तक का खर्च आता है जो कि इलाज के लिए अस्पताल में एक या दो बार भर्ती होने पर आने वाले खर्च से सस्ता पड़ता है। हालांकि इसके बाद मरीज की दवाओं पर प्रत्येक वर्ष 1.5 लाख रुपये तक व्यय होते हैं।