होशियार! मांगी सूचना तो जा सकती है जान

if-ask-information-you-may-kill-in-biharपटना। हेमंत कुमार की गलती (या साहस) यही थी कि उन्होंने उत्तर बिहार ग्रामीण बैंक में वर्षो से जमे अफसर-कर्मियों के संबंध में सूचना मांग ली। दर्जनों का तबादला हो गया। उन्होंने यह भी सूचना मांगी कि इस ग्रामीण बैंक में बहाली में नियमों का कितना पालन हुआ? सौ से अधिक कर्मियों की नौकरी खतरे में पड़ गई। लेकिन, कुमार को इसका खमियाजा यह भुगतना पड़ा कि पुलिस ने दिसंबर में उन्हें रस्सी लगा सारे शहर में परेड कराया।

उनके सूचना मांगने से प्रभावित एक महिला बैंक कर्मी द्वारा उत्पीड़न का झूठा मुकदमा कर दिए जाने पर उनकी यह दुर्गति हुई। कोर्ट में पेश किए गए तो पुलिस को मुंह की खानी पड़ी। मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने इस बात पर नाराजगी जताई कि महिला के बयान में ऐसी कोई बात नहीं है, जिसके आधार पर उनके खिलाफ दफा 376 के तहत मुकदमा दर्ज हो। थाना प्रभारी ने कोर्ट में लिखित माफी मांगी।

सूचना के अधिकार अधिनियम (आरटीआइएक्ट) के तहत सूचना मांगने पर प्रताड़ित किए जाने वाले मुजफ्फरपुर के हेमंत कुमार अकेले नहीं हैं। राज्य सूचना आयोग के रिकार्ड के मुताबिक प्रदेश में मार्च 2012 से लेकर 2 अप्रैल, 2013 तक आरटीआइ एक्टिविस्ट पर हमले या प्रताड़ित किए जाने के 204 मामले दर्ज हो चुके हैं। पिछले तीन सालों में पांच आरटीआइ कार्यकर्ताओं की हत्या भी हो चुकी है। यहां पारदर्शिता के लिए बने आरटीआइ एक्ट का इस्तेमाल करना खतरे को मोल लेने जैसा हो गया है।

मोतिहारी के राजेंद्र प्रसाद सिंह को तो रंगदारी के झूठे मुकदमे में तीन माह जेल में रहना पड़ा। उन्होंने मोतिहारी के संग्रामपुर में आरा मिल मालिकों द्वारा पेड़ों की अवैध कटाई का मामला उठाया था। वन अधिकारी ने कार्रवाई करते हुए कई मिलों को बंद भी कराया। लेकिन पुलिस की मदद से आरा मिल मालिकों ने उन्हें झूठे मुकदमे में फंसा दिया। वायु सेना के से रिटायर हुए कमलेश्वरी मेहता ने लखीसराय के सूर्यगढ़ा में आरटीआइ के जरिए बीज घोटाला उजागर किया तो उनपर अनुसूचित जाति उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज करा दिया गया। वे पिछले तीन माह से फरार हैं। प्रताड़ना की यह फेहरिस्त फिलहाल बहुत लंबी हो चुकी है। सबसे ताजा मामला राम कुमार ठाकुर ही हत्या का है। उन्होंने अपनी जान पर खतरे की मुजफ्फरपुर प्रशासन को लिखित सूचना भी थी। परंतु कोई कार्रवाई नहीं हुई। उन्हें जान से हाथ धोना पड़ा।

जिनकी हुई हत्याएं :

1. शशिधर मिश्रा – 12 फरवरी, 2010 – फुलवरिया, बेगूसराय

-स्क्रैप माफिया और पुलिस के बीच गठजोड़ को उजागर कर रहे थे।

2. रामविलास सिंह – 8 दिसंबर, 2011- बभनगामा, लखीसराय

-किसानों को मिलने वाली अनुदान राशि में घोटाले का पर्दाफाश कर रहे थे।

3. डा. मुरलीधर जायसवाल- 4 मार्च, 2012, हवेलीखड़गपुर, मुंगेर

-पंचायत समिति में चल रही लूट-खसोट को सामने लाने में लगे थे।

4. राहुल कुमार- 10 मार्च, 2012- त्रिसयान जगदीप, मोतीपुर, मुजफ्फरपुर

5 भू-माफिया द्वारा माता-पिता की हत्या के संबंध में हुई कार्रवाई की जानकारी मांगी थी।

5. राम कुमार ठाकुर- 23 मार्च, 2013- रतनौली, मनिहारी, मुजफ्फरपुर

-इंदिरा आवास और मनरेगा में लूट को उजागर करने में लगे थे।

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