अमृतसर। गांव के ही एक साधु ने मुझे नशे की लत लगा दी थी। नशे ने मेरा मानसिक संतुलन बिगाड़ दिया। मैं घर से भाग गया। कई शहरों में दर-बदर भटकता रहा। पाकिस्तान कब चला गया, कोई होश नहीं है। बीस साल जीवन के मैं खो चुका हूं। घर लौटते हुए मुझे खुशी हो रही है। इतने साल बीत जाने पर भी मेरे भाई ने मुझे स्वीकार कर लिया है। इतना कहते ही पाकिस्तान की कोट लखपत जेल से 14 अगस्त, 2007 को 19 कैदियों के साथ रिहा होकर आए उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले की ग्राम पंचायत घटकना के गांव चऊधनपुर के रामकुमार की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े।
मंगलवार को सरकारी अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर के कमरे में अपने भाई से मिलने के बाद रामकुमार के चेहरे पर नई मुस्कान थी। परिजनों को बीस साल के बाद मिल रहे राम ने जब अपने भाई शिव कुमार को देखा तो वह काफी देर तक उसे देखता रहा। कुर्सी से उठा। दूर बैठे भाई के पांव छूकर जोर से चिल्लाया हां ये मेरा भाई है। यह विकलांग है। इतना कह कर रामकुमार ने अपने भाई के हाथों को स्पर्श करना शुरू कर दिया। कभी वह भाई के पांव पकड़ता तो कभी उसके द्वारा पहनी हुई धोती को देख कर पूछता कि मां- बापू कहां हैं? शिवकुमार ने जब बताया कि दोनों का स्वर्गवास हो चुका है तो वह स्तब्ध रह गया। इसके बाद विद्यासागर सरकारी मनोरोग अस्पताल के डायरेक्टर डॉ. बीएल गोयल ने दस्तावेजों की औपचारिकता पूरी कर रामकुमार को भाई शिवकुमार, भतीजे सतीश कुमार व सन्मुख को सौंप दिया।
शिवकुमार ने बताया कि बचपन में रामकुमार साधु प्रवृत्ति का था। जब वह घर से लापता हुआ तो तब उसकी आयु 25 वर्ष थी। मजदूरी कर पेट पालने वाले शिवकुमार ने बताया कि उसका भाई अब काम करने की स्थिति में नहीं है, लेकिन वह उसे किसी तरह की तकलीफ नहीं होने देगा। उसने बताया कि भइया को ढूंढने के लिए पूरे परिवार ने हरदोई, लखनऊ, फर्रुखाबाद की गलियों की खाक छानी लेकिन कोई पता नहीं चला। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि वह कभी भाई को मिल पाएंगे। भाई को कैसे पहचाना, इस पर शिवकुमार ने बताया कि बचपन में उसके दाएं हाथ की एक अंगुली कट गई थी। इसी आधार पर ही उसे पहचाना।
दूसरी तरफ, रामकुमार का इलाज करने वाले डॉ. गोयल ने बताया कि 2007 में जब वह पाकिस्तान से रिहा होकर यहां आया था तो उसको कोई सुध-बुध नहीं थी। इलाज के बाद उसके बताए गए पते के आधार पर उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव से पत्र व्यवहार किया गया। एक हफ्ते पहले शिवकुमार के घर पर पत्र पहुंचा, जिसके बाद परिवार राम को लेने यहां आया। देर शाम परिवार के सदस्य रामकुमार के साथ अपने गांव रवाना हो गए।
घर में खुशियां
28 मार्च को होली खेली जा चुकी है लेकिन अब एक बार फिर सांडी थाना क्षेत्र के ग्राम चौधकपुर के एक परिवार में रंग-गुलाल उड़ाने की तैयारी चल रही। आखिरकार 28 साल पहले जिस भाई रामकुमार को शिवकुमार ने मृत मान लिया था, उसके सकुशल होने की खबर जो मिली। रामकुमार 20 वर्ष पाकिस्तान की जेल में बंद रहने के बाद बुधवार को अपनों के बीच पहुंच रहा।
चाचा को देखने के लिए व्याकुल हैं भतीजी और बहुएं
रामकुमार जब लापता हुआ था तो न राखी थी और न शिल्पी, बबलू और सतीश बहुत छोटे थे। अब पुत्रों की शादी हो चुकी है। राखी व शिल्पी ने देखा ही नहीं। शिल्पी कहती है कि उसने तो चाचा की कहानी सुनी थी। कहानी कभी सच होगी यह उसने सोचा तक नहीं था। घूंघट के अंदर से बहुएं भी रामकुमार के आने की प्रतीक्षा कर रही हैं।
समाज ही नहीं प्रशासन भी मान चुका था मृत
परिवारीजन ने बताया कि उनके पिता अमर कुमार के नाम चार बीघा खेत थे। पिता की मौत के बाद दोनों भाइयों के नाम दो-दो बीघा खेत विरासत में आ गया था। रामकुमार जब लापता हो गया और उसे मृत मान लिया गया। उसके हिस्से की जमीन शिवकुमार के नाम आ गई।