नई दिल्ली। मैडम, मेरी बहू मुझे बहुत सताती है, मुझे मारती-पीटती है, घंटों बाथरूम में बंद कर देती है। उम्र के अंतिम पड़ाव में यह दिन देखने को मिल रहा है। मेरे लिए इससे बड़ी बदनसीबी क्या होगी। अब तो जिंदगी भी बोझ हो गई है। ऐसा लगता है सभी मेरी मौत का इंतजार कर रहे हैं। यह दर्द है एक बुजुर्ग महिला का जो दिल्ली महिला आयोग की सदस्यों के सामने अपना दर्द बयान कर रही है। दर्द की यह दास्तां सुन सभी की आंखें नम हो जाती हैं। काउंसलिंग में आने वाली ऐसी वृद्ध महिलाओं की तादाद काफी अधिक है। एक महीने में ऐसे करीब 50 मामले आयोग में आते हैं।
60 से 80 साल की उम्र की इन महिलाओं की मजबूरी यह है कि पति की मौत के बाद यह पूरी तरह बेटे या बेटी पर आश्रित हो चुकी हैं। सब कुछ उनका होते हुए भी वह कुछ नहीं कर पातीं। दिल्ली के पटेल नगर में रहने वाली 82 वर्षीय सावित्री गांधी जब अपने बेटे, बहू व पोते के अत्याचारों को बर्दाश्त न कर सकीं तो भाग कर अपनी बेटी के घर आ गई। नाती की मदद से उन्होंने महिला आयोग में गुहार लगाई। 70 वर्षीय नत्थी देवी मजदूरी करती हैं। वेस्ट पटेल नगर में उनका घर है, लेकिन घर के बजाय मंदिर की सीढि़यों पर रात बिताती हैं और लोगों से मांग कर पेट भरती हैं। क्योंकि बेटे व बहू ने उन्हें घर में रखना तो दूर उनकी इतनी पिटाई की कि उनकी सुनने की ताकत चली गई।
संपत्ति को लेकर होने वाले इन ज्यादातर विवादों में वृद्ध महिलाएं अपनी संतान के हाथों प्रताड़ित की जा रही हैं। घर, जायदाद व संपत्ति को हासिल करने के लिए बेटे व बहू मां के जीवन के अंतिम पड़ाव को नारकीय बना रहे हैं। दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष बरखा सिंह बताती हैं कि वृद्ध महिलाओं की काउंसलिंग के दौरान उनकी समस्याएं सुनकर दुख होता है। उनकी सुरक्षा के लिए पुलिस की मदद के अलावा हम उनकी पूरी मदद करने की कोशिश करते हैं। आयोग की सदस्य रूपिंद्र कौर बताती हैं कि बुजुर्ग महिलाओं से जुड़े ऐसे मामलों में ज्यादातर संपत्ति का विवाद होता है। जिसके तहत पूरे दिल्ली एनसीआर के मामले आते हैं। इनमें हर वर्ग की महिलाएं शामिल हैं। बेटे व बहू की सताई हुई वृद्ध महिलाओं में मजदूर से लेकर व्यवसायिक घरानों, सभी तरह की महिलाएं शामिल हैं।
देश भर में वृद्धों के लिए काम करने वाली संस्था ‘हेल्प एज इंडिया’ द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार दिल्ली के बुजुर्गो की हालत बेहद चिंताजनक है। मानसिक व शारीरिक यातनाओं के अलावा यह बुजुर्ग अपने ही परिजनों की उपेक्षा भी झेल रहे हैं।