नई दिल्ली । दिल्ली में लैंड पूलिंग पॉलिसी के बाद फ्लैट सस्ते होंगे। आने वाले दिनों में दिल्ली के पांच जोन में लगभग 15 लाख फ्लैट बनेंगे। इतनी तादात में फ्लैट बाजार में आने पर कीमतों पर काफी असर पड़ेगा। जानकारों का कहना है कि मध्यम वर्ग के लिए राजधानी दिल्ली में आशियाना बसाने का सपना सच होगा।
मास्टर प्लान 2021 का ड्राफ्ट तैयार करने वाला डीडीए के तत्कालीन प्लानिंग कमिश्नर एके जैन बताते हैं कि मास्टर प्लान में वर्ष 2021 की अनुमानित आबादी के लिए पांच नए नगर बनाने का प्रावधान किया गया था, इनके लिए लगभग 65795 हेक्टेयर जमीन चिन्हित की गई। इसमें 11 हजार हेक्टेयर हरित क्षेत्र, 10 हजार हेक्टेयर जमीन अनाधिकृत कालोनियों के लिए, 20 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र, लैंड फिल साइट, इलेक्ट्रिक सब स्टेशन, राजमार्ग के लिए छोड़ी गई है, शेष लगभग 24 हजार हेक्टेयर जमीन को शहरी विकास के लिए रखा गया है, इसमें कमर्शियल, इंडस्ट्रियल, सरकारी कार्यालयों के अलावा लगभग 5000 हेक्टेयर जमीन पर आवासीय इकाइयां बसाई जाएंगी।
जैन बताते हैं कि एक हेक्टेयर जमीन पर लगभग 300 आवासीय इकाइयां बनाई जा सकती हैं, यानी लगभग 15 लाख फ्लैट इन पांचों उप नगरों में आने वाले सालों में बनेंगे।
रियल एस्टेट पर पूंजी लगाने वाले लोगों को सलाह देने वाली कंपनी केरेटस रियल्टी लिमिटेड के रमेश मेनन का कहना है कि दिल्ली में फ्लैटों की सप्लाई न होने के कारण लोग एनसीआर के शहरों में जा रहे थे, लेकिन एक बार दिल्ली में काम शुरू होने के बाद यह सिलसिला रुकेगा, साथ ही बड़ी तादात में फ्लैट आने के कारण दिल्ली में भी कम कीमत पर फ्लैट मिलने लगेंगे। मध्य वर्ग के लिए ये फ्लैट पूरी तरह माकूल साबित होंगे। मेनन का अनुमान है कि 4000 से 5000 रुपये प्रति वर्ग फुट की दर से यहां आसानी से फ्लैट खरीदे जा सकेंगे।
नई नीति से बसेगी एक और नई दिल्ली
नई दिल्ली [राज्य ब्यूरो]। राजधानी में रहने वाले मध्यम वर्ग के लोगों को अब खूबसूरत, लेकिन सस्ते फ्लैट की तलाश में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के शहरों में नहीं भटकना होगा। आने वाले दिनों में यह सपना दिल्ली में ही पूरा हो जाएगा। दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा तैयार की गई नई लैंड पूलिंग नीति के लागू होने के बाद यह सपना हकीकत में बदल जाएगा।
क्या है लैंड पूलिंग नीति –
भूमि अधिग्रहण से अलग है यह नीति। दिल्ली में अभी भूमि अधिग्रहण नीति अपनाई जाती है। डीडीए किसानों की भूमि का अधिग्रहण करता है और इसके एवज में उन्हें निर्धारित धनराशि दी जाती है, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। अब किसान एक रियल एस्टेट कंपनी बना सकते हैं या किसी रियल एस्टेट कंपनी को अपनी जमीन बेच सकते हैं। इस कंपनी के पास कम से कम तीन हेक्टेयर जमीन होनी चाहिए।
यह कंपनी जमीन के एक निर्धारित हिस्से का विकास करके वहां फ्लैट बना कर बेचेगी, जबकि दूसरा हिस्सा डीडीए को सौंप देगी, जहां डीडीए सामुदायिक सुविधाएं उपलब्ध कराएगा, इसमें सड़क, सीवर, अस्पताल, पुलिस स्टेशन, पार्क आदि शामिल होंगे। डीडीए के एक अधिकारी कहते हैं कि चूंकि इसमें किसानों और डीडीए के बीच पैसों का लेनदेन नहीं होगा, इसलिए यह नीति लागू होने के बाद फ्लैट जल्दी जल्दी बनेंगे और विकास तेजी से होगा, क्योंकि अधिग्रहण के मुआवजे को लेकर किसानों और डीडीए के बीच तनातनी चलती रहती है और इससे विकास प्रभावित होता है।
बड़े बिल्डरों को मिलेगा ज्यादा फायदा
इस नीति में बड़ी कंपनियों को ज्यादा लाभ मिलेगा, क्योंकि जिस कंपनी के पास 20 हेक्टेयर से अधिक जमीन होगी, उसे डीडीए को सामुदायिक विकास के लिए 40 फीसद जमीन देनी होगी, जबकि यह कंपनी 60 फीसद हिस्से पर फ्लैट बना कर बेच सकती है, जबकि जिस कंपनी के पास तीन हेक्टेयर से 20 हेक्टेयर जमीन होगी, उसे डीडीए को 60 फीसद जमीन देनी होगी और वह शेष 40 फीसद हिस्से पर वह कॉलोनी बना कर बेच सकेगी।
जमीन का हक नहीं तो मुफ्त में जमीन दो
नई दिल्ली [राज्य ब्यूरो]। सूबे की शीला दीक्षित सरकार केंद्र सरकार से गुहार लगाएगी कि यदि उसे दिल्ली की जमीन का मालिकाना हक नहीं दिया जा सकता, तो कम से कम जनहित के कार्यो के लिए मुफ्त में जमीन हासिल करने का अधिकार तो दे ही दिया जाए। सरकार की दलील यह है कि उसे अस्पताल, शैक्षणिक संस्थान सहित बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिए भी दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को जमीन के बदले अरबों रुपये चुकाने पड़ते हैं।
विश्वस्त सूत्रों ने बताया कि सरकार का शहरी विकास विभाग मंगलवार को होने वाली दिल्ली मंत्रिमंडल की बैठक में एक प्रस्ताव पेश कर रहा है। इसमें केंद्र से जनहित के कार्यो की खातिर मुफ्त में जमीन उपलब्ध कराए जाने की मांग की गई है। प्रस्ताव में कहा गया है कि केंद्र यदि डीडीए से दिल्ली सरकार को मुफ्त में जमीन नहीं दिलवा सकता, तो कम से कम सस्ती दरों पर ही जमीन हासिल करने का अधिकार मुहैया करा दे।
असल में सरकार के इस प्रस्ताव में उसकी पीड़ा भी झलक रही है। यहां पर चुनी हुई सरकार है, विधानसभा है, कानून बनाने का हक है लेकिन यहां की जमीन और यहां की पुलिस पर उसका कोई अधिकार नहीं है। यहां की पुलिस सीधे गृह मंत्रालय के अधीन है, तो जमीन डीडीए के पास है, जो केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय के अधीन है। इस हालत में सरकार को किसी भी विकास कार्य के लिए डीडीए से जमीन मांगनी पड़ती है और इसे मिलने में कई बार वर्षो का समय लग जाता है। जमीन मिलने पर उसे इसके बदले मोटी रकम भी चुकानी पड़ती है। शहरी विकास विभाग के प्रस्ताव में कहा गया है कि देश के तमाम राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में भी जमीन वहां के स्थानीय प्रशासन के पास है लेकिन दिल्ली इसका अपवाद है। इसलिए यह वक्त का तकाजा है कि उसे अन्य राज्यों के बराबर दर्जा दिया जाए। केंद्र के पास पर्याप्त अधिकार है कि वह डीडीए से दिल्ली को मुफ्त में अथवा बहुत ही कम दर पर जमीन उपलब्ध कराने का प्रावधान कर दे।