संघ भी हुआ नरेंद्र मोदी का मुरीद

rss-chanted-namo-nmao-tooनई दिल्ली। विचारधारा को तरजीह देते रहे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ [आरएसएस] को भी अब करिश्माई चेहरे की जरूरत महसूस होने लगी है। अटल बिहारी वाजपेयी ने भाजपा को सत्ता तक पहुंचाया था। इस बार संघ का मन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर टिक गया है। लोकसभा चुनाव में भले ही मोदी को औपचारिक तौर पर भाजपा प्रधानमंत्री के तौर पर पेश न करे, लेकिन उसका चेहरा नरेंद्र मोदी और उनका मॉडल होगा। संघ ने भी इस पर अपनी सहमति दे दी है। कर्नाटक चुनाव के बाद सोशल मीडिया के जरिये अभियान की शुरुआत हो सकती है, जिसमें नजर हर पांच साल में जुड़ रहे लगभग ढाई करोड़ नए वोटरों पर होगी।

पिछले तीन-चार चुनावों में भाजपा का वोट प्रतिशत गिरा है। संघ परिवार का थिंकटैंक इसका प्रमुख कारण शहरी दक्षिणपंथी मिजाज के लोगों की पार्टी के प्रति उदासीनता मानता है। संघ का मानना है कि कुछ वोट छिटका भी है, लेकिन अपने उदासीन समर्थकों को अगर संघ परिवार जागृत कर सके तो साथ छोड़ रहा वर्ग भी वापस आएगा। इसीलिए कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद पूरा संघ परिवार आक्रामक तरीके से हिंदुत्व की जमीन पर विकसित भारत के सपने को सियासी माहौल की आबोहवा में शामिल करने की कोशिश में जुटेगा। इसके लिए संघ परिवार अपना चेहरा और रणनीति दोनों ही बदलने जा रहा है।

गुजरात के जरिये भगवा विकास का जो मॉडल नरेंद्र मोदी ने खड़ा किया है, उसके प्रति पूरे देश के मध्यवर्ग और युवाओं में एक खास किस्म का सम्मोहन संघ के नीति निर्धारकों को महसूस हो रहा है। भाजपा समर्थक मतदाताओं को घर से निकालने की अपनी अद्वितीय क्षमता का प्रदर्शन मोदी गुजरात में कर भी चुके हैं। बिना संघ परिवार के खुले समर्थन के भी मोदी पूरे देश में अपना एक तिलस्म रचने में कामयाब रहे हैं।

भले ही गठबंधन राजनीति में फिलहाल मोदी के पास वाजपेयी जैसी स्वीकार्यता नहीं है। लेकिन संघ का भी मानना है कि जनता के बीच लोकप्रियता के मामले में फिलहाल मोदी के अलावा भाजपा में कोई और विकल्प नहीं है। लिहाजा, जदयू या अन्य सहयोगियों के विरोध के बावजूद एकजुट होकर मोदी के पीछे पूरी भाजपा और संघ परिवार को खड़ा दिखना पड़ेगा। संघ के एक पदाधिकारी का कहना है कि मोदी के बाबत एक बड़ी बात यह है कि जनता में उनके लिए जिज्ञासा है। खासकर युवा वर्ग उनके तर्को को सुन रहा है।

इसीलिए, संघ अब मोदी पर खुलकर दांव लगाने को तैयार है। कारण है कि हर लोकसभा चुनाव में दो से ढाई करोड़ नए मतदाता वोट डाल रहे हैं। इनमें बड़ी संख्या युवाओं की भी है। इस पूरी कवायद मे सोशल मीडिया बड़ा हथियार होगा। देश के सामने विकास का एजेंडा रखना मोदी ने खुद ही शुरू कर दिया है। संघ शाखाओं के जरिये मोहल्लों और गांवों तक इसी मॉडल का प्रचार करने में पूरा संघ परिवार एकजुटता से लगेगा।

मतदाता बढ़े, भाजपा के घटे :

पिछले 15 वर्षो के चुनावी इतिहास में भाजपा फिलहाल अपने निम्नतम स्तर पर है। 1998-99 के लोकसभा चुनाव में वाजपेयी के चेहरे के साथ पार्टी के पास 25 फीसद वोट था। वह भी तब जबकि भाजपा कांग्रेस के मुकाबले तकरीबन सौ कम सीटों पर उतरी थी। 2004 में वोट प्रतिशत घटकर 22 फीसद पहुंचा तो 2009 में 18.80 तक गिर गया। एक तरफ जहां लगातार मतदाताओं की संख्या बढ़ रही है वहीं इन चुनावों में भाजपा को मिलने वाले वोट भी कम होते गए। 1998 के मुकाबले 2009 में छह करोड़ ज्यादा मतदाताओं ने वोट डाले थे। लेकिन इसी बीच भाजपा के वोटरों की संख्या में लगभग डेढ़ करोड़ की कमी हो गई। आखिरी चुनाव में भाजपा 433 सीटों पर उतरी थी, जबकि कांग्रेस 440 सीटों पर। लेकिन वोट फीसद में जहां 10 अंक का अंतर था वहीं मतों की संख्या में भी कांग्रेस चार करोड़ आगे थी।

मोदी के पक्ष में वसुंधरा भी

नई दिल्ली। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनाने की वकालत करने वालों की सूची लंबी होती जा रही है। अब वरिष्ठ भाजपा नेता वसुंधरा राजे सिंधिया ने दावा किया है कि वह सिर्फ गुजरात में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में लोकप्रिय हैं। एक मीडिया समूह के कार्यक्रम में उन्होंने कहा, ‘कुछ तो है, जो मोदी सही कर रहे हैं, जिसकी लोग प्रशंसा कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी जनता की नब्ज पहचानते हैं।’

जब वसुंधरा से पूछा गया कि भाजपा उनके सहित शीर्ष पद के लिए किसी महिला के बजाय मोदी को प्राथमिकता क्यों दे रही है, तो उन्होंने कहा कि उनके पास बतौर मुख्यमंत्री 15 साल का अनुभव है, जबकि वह सिर्फ पांच साल ही सीएम रही हैं। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि वह मोदी को राज्य विधानसभा चुनाव के दौरान प्रचार के लिए आमंत्रित करेंगी। जब उनसे पूछा गया कि एक बार फिर देश की बागडोर महिला के हाथ में होने पर क्या होगा, तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की खिंचाई करते हुए उन्होंने पूछा, ‘क्या आपको लगता है कि एक पुरुष इस देश को चला रहा है।’

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