गुजरात दंगों के लिए दोषी करार दिये गये माया कोडनानी, बाबू बजरंगी सहित सभी दस अभियुक्तों को फांसी मांगे जाने की गुजरात सरकार की पहल पर शिवसेना ने गहरी आपत्ति व्यक्त करते हुए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को चेताया है कि अगर ऐसा किया जाता है तो हिन्दुत्व की आग उठेगी और उसका दावानल भड़गेगा। गुजरात सरकार की इस पहल पर चेतावनी देते हुए शिवसेना ने कहा है कि गुजरात को हिन्दुत्व की प्रयोगशाला कहा जाता है, इसमें सेकुलरिज्म का जहर नहीं घुलना चाहिए।
शनिवार को प्रकाशित सामना के संपादकीय में शिवसेना ने मोदी सरकार की उस पहल का घोर विरोध किया है जिसमें यह बात सामने आयी है कि एसआईटी द्वारा नरोडा पाटिया के सभी दोषी करार दिये गये दस अभियुक्तों के लिए फांसी मागेगी जिसे लंबे इंतजार के बाद गुजरात सरकार के कानून विभाग ने अपनी मंजूरी दे दी है। इस मंजूरी पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए मुखपत्र लिखता है कि “अफजल गुरू के लिए यहां के मुसलमान दुआ मांगते हैं तो फिर माया कोडनानी और बाबू बजरंगी के लिए फांसी का आग्रह क्यों?” मुखपत्र आगे लिखता है कि नरेन्द्र मोदी से हमारी विनती है कि इस मामले में हस्तक्षेप करें और स्थिति को स्पष्ट करें।
28 फरवरी 2002 को नरोडा पाटिया में हुई हिंसा में 98 लोग मारे गये थे। तहलका के एक स्टिंग आपरेशन में बाबू बजरंगी ने यह स्वीकार किया था कि उस हत्याकांड में वह शामिल था जिसके बाद अदालत ने बाबू सहित सभी नौ दोषियों को अलग अलग धाराओं में सजा सुनाई थी। इसमें मोदी सरकार की मंत्री रहीं माया कोडनानी भी शामिल हैं जिन्हें अदालत ने 28 साल के आजीवन कारावास की सजा सुनाई है।
अपने संपादकीय में शिवसेना का मुखपत्र सामना लिखता है कि “बजरंगी, कोडनानी को अदालत ने पहले ही कठोर सजा दी है, ऐसे में उन लोगों के लिए फांसी की सजा मांगकर मोदी सरकार दुनिया को क्या दिखाना चाहती है?” संपादकीय में शिवसेना की नाराजगी जताते हुए साफ कहा गया है कि “कोडनानी और बजरंगी के लिए फांसी कोई पाकिस्तान के सत्ताधीशों ने नहीं मांगी है. इमाम बुखारी जैसे लोगों ने भी नहीं की है बल्कि ये ऐसे लोग हैं जो अफजल गुरू की फांसी रुकवाना चाहते थे।”
हाल में ही जब नीतीश कुमार के कारण एनडीए में पीएम पद को लेकर चर्चा गर्म हुई थी तब भी शिवसेना ने संपादकीय लिखकर आडवाणी की तारीफ की थी और कहा था कि एनडीए को पीएम उम्मीदवारी पर अपना रुख साफ करना चाहिए। उस संपादकीय में मोदी का गुणगान तो किया गया था लेकिन उनके पीएम पद की दावेदारी का समर्थन नहीं किया गया था।