नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यौन दुर्व्यवहार की पीड़िताओं को एक अलग तरह के इलाज की जरूरत होती है। राज्य सरकारों के लिए यह अनिवार्य है कि वे दिशा-निर्देश जारी करें कि उनसे किस तरह का व्यवहार किया जाए। यह राज्य प्रशासन और खासकर पुलिस महानिदेशक व गृह विभाग की जिम्मेदारी है कि वे ऐसे मामलों में मार्ग दर्शन और निर्देश जारी करें कि इस तरह के मामलों में किस तरह से काम किया जाए।
न्यायमूर्ति बीएस चौहान और एफएमआइ कलिफुल्ला की पीठ ने हाल के एक फैसले में कहा है कि यौन दुराचार की पीड़िता को न केवल समाज से दूसरे तरह के व्यवहार की जरूरत होती है बल्कि राज्य प्रशासन से भी ऐसी ही अपेक्षा की जाती है। जांच अधिकारी हर हाल में यह सुनिश्चित करें कि रेप पीड़िता के साथ महिला पुलिसकर्मी बर्ताव में सावधानी बरते। जांच जितनी जल्द हो सके पूरी की जानी चाहिए जिससे आरोपी को अपराध प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा- 167 के तहत तकनीकी जटिलताओं की वजह से जमानत नहीं मिल सके। अंतिम रिपोर्ट भी सीआरपीसी की धारा 173 के तहत जितनी जल्द हो सके पेश की जानी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने यह निर्देश मध्य प्रदेश सरकार को जारी किया था और वहां के हाई कोर्ट द्वारा वर्ष 2011 में चार नवंबर को जारी आदेश को बरकरार रखा था। हाई कोर्ट ने उस फैसले में निचली अदालत के फैसले को बदल दिया था। निचली अदालत ने रेप करने वाले नाबालिग दिलीप को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि पीड़िता की सहमति से उसने यौन संबंध बनाया था। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि रेप पीड़िता की जांच महिला डॉक्टर को करनी चाहिए। साथ ही पीड़िता को मनोरोग चिकित्सक उपलब्ध कराया जाना चाहिए।