हरिद्वार। गंगातट पर बसी धर्मनगरी हरिद्वार में संत समाज के गेरुवे व अवधूती वैभव के बीच जब सादगी भरे अंदाज में हिंदुत्ववादी नेता और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पहुंचे, तो हर किसी की जुबान पर एक ही सवाल था कि आखिर संतों के इस जमावड़े में अकेले मोदी ही क्यों?
हर-एक जुबां से निकले इस यक्षप्रश्न का योगगुरु बाबा रामदेव समेत अन्य कई संतों ने भी अपने-अपने अंदाज में जवाब देने की कोशिश की। राजनीतिक पंडितों और विश्लेषकों की मानें, तो प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में प्रोजेक्ट किए जा रहे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और पिछले करीब दो साल से केंद्र सरकार के निशाने पर रहे बाबा रामदेव के बीच शुरू हुई इस जुगलबंदी के पीछे दोनों के निहितार्थ भी जुड़े हुए हैं।
2014 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने हिंदुत्ववादी छवि वाले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को परोक्ष रूप से ही सही प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में प्रोजेक्ट करना शुरू कर दिया है। हालांकि भाजपा हाईकमान के इस रुख से नाराज एनडीए के घटक दल जनता दल यू की राह कुछ अलग दिशा में बढ़ती दिख रही है।
ऐसे में मोदी के सामने प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में खुद को सबसे उपयुक्त साबित करने की चुनौती है। मोदी ने अपने इस अभियान को अंजाम तक पहुंचाने के लिए संतों का आशीर्वाद हासिल करने की ओर कदम बढ़ाया। साथ ही, इसके लिए भारत स्वाभिमान की सांगठनिक ताकत से परिपूर्ण योगगुरु बाबा रामदेव के मंच पर अवतरित होना बेहतर समझा।
वहीं, कुछ अरसे पहले तक अपना राजनीतिक दल खड़ा करने का इरादा पाले योगगुरु रामदेव भी अचानक रणनीति में बदलाव कर मोदी के करीब आ खड़े हुए हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ मुहिम के बाद योग गुरु बाबा रामदेव जिस तरह केंद्र सरकार के निशाने पर आए। साथ ही, पिछले डेढ़ साल में जिस तेजी से उन पर सीबीआइ जांच व अन्य तरीकों से शिकंजा कसने की कोशिशें हुई हैं, उसे देखते हुए मोदी के साथ सियासी साझेदारी करना योगगुरु के लिए वक्त की जरूरत भी कहा जा सकता है।
शायद यही वजह हैं कि कुंभनगरी हरिद्वार में योगगुरु रामदेव व गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच शुरू हुई जुगलबंदी निकट भविष्य में नए राजनीतिक समीकरणों की ओर इशारा कर रही है।