नई दिल्ली। पाकिस्तानी जेल में सरबजीत सिंह पर हुए हमले के बाद एक बार फिर वहां भारतीय कैदियों की सुरक्षा का मसला खड़ा हो गया है। हाल ही में लाहौर की उसी जेल में चमेल सिंह की भी रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हुई थी, जिसमें सरबजीत सिंह कैद हैं। पूर्व में भी कई भारतीय कैदियों ने वहां की जेलों में खुद के साथ हुए अत्याचारों की दास्तां बयां कर चुके हैं:
कैदी:
– विभिन्न रिपोर्टो के अनुसार पाकिस्तान की जेलों में 474 भारतीय कैदी हैं (नवंबर 2010 तक)। इनमें से 218 सिविल कैदी हैं। 74 लापता रक्षा सैनिक हैं। इन लापता सैनिकों में से 54 ऐसे भी हैं जो 1971 के युद्ध के बाद से ही लापता हैं। एक-दूसरे देशों में बंद मछुआरे कैदियों को समय-समय पर छोड़ते रहने से इनकी संख्या घटती बढ़ती रहती है।
-पाकिस्तान केवल 63 भारतीय सिविल कैदियों की बात स्वीकारता है, किसी भी रक्षा सैनिक की उपस्थिति को खारिज करता है।
कार्रवाई:
-सरकार पाकिस्तान के साथ सभी स्तरों की बातचीत में अपने कैदियों की रिहाई के मसले को लगातार उठाती रही है।
-2010-11 में विदेश सचिव स्तर की बातचीत में इस मसले को उठाया गया। उस अवधि में विदेश मंत्रियों की बातचीत में भी दोनों देशों में बंद कैदियों पर चर्चा की गई।
कमेटी:
-जून 2010 में जब गृह मंत्री पाकिस्तान गए तो उसके बाद मानवीय आधार पर मछुआरों समेत सजा पूरी कर चुके कैदियों की रिहाई सुनिश्चित कराने के लिए भारत- पाकिस्तान न्यायिक कमेटी का गठन किया गया।
-रिटायर्ड जजों की इस कमेटी ने जनवरी, 2012 में अपनी पांचवीं मीटिंग में सुझाव दिए कि ऐसा तंत्र विकसित किया जाना चाहिए जिसमें महिलाएं, किशोर, अपंग, वृद्ध कैदियों के लिए मानवीय आधार पर विचार किया जा सके। इसके साथ ही, गंभीर
रूप से बीमार और मानसिक रूप से अस्वस्थ कैदियों को जेल के बजाय अस्पताल में रखना चाहिए।
-पिछले साल सरकारी प्रयासों के चलते 218 भारतीय मछुआरों और 17 सिविल कैदियों को पाकिस्तानी सरकार ने छोड़ा था।