जेपी आंदोलन से कितना अलग है अन्ना का आंदोलन

अन्ना हजारे का अनशन खत्म हो गया। टीम अन्ना ने राजनीतिक विकल्प देने का वायदा कर 16 महीने चले जन आंदोलन को समाप्त करने की घोषणा कर दी। टीम अन्ना के इस आंदोलन की तुलना 1975 में जयप्रकाश नारायण द्वारा इमरजेंसी के खिलाफ चलाए गए आंदोलन से की जा रही है। खुद टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल देश के मौजूदा हालात को इमरजेंसी जैसा बता रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो मौजूदा आंदोलन 1975 के बाद देश का सबसे बड़ा जनउभार था। ‘टाइम’ पत्रिका ने इस आंदोलन को ‘2011 की टॉप 10 न्यूज स्टोरीज’ में से एक बताया।

16 अगस्‍त, 2011 को अन्‍ना हजारे द्वारा शुरु किये गए अनशन को अगस्त क्रांति का नाम भी दिया गया। अन्ना का अनशन 12 दिनों तक लगातार चला था। यह अनशन तब टूटा, जब संसद के दोंनों सदनों ने अन्ना की मांगों का समर्थन किया और उनसे अनशन तोड़ने की अपील की। लेकिन यही सरकार टीम अन्‍ना के मौजूदा अनशन के प्रति संवेदनहीन बनी रही।

जनलोकपाल के मुद्दे पर अंततः टीम अन्‍ना राजनीतिक दल बनाने जा रही है। जयप्रकाश नारायण ने भी इमरजेंसी के विरोध में जनता पार्टी का गठन किया था, लेकिन इंदिरा गांधी को सत्‍ता से उखाड़ने के महज तीन साल के अंदर ही यह पार्टी बिखर गई और सत्‍ता से बाहर चली गई।

अन्ना हजारे व उनकी टीम को लेकर भी यही आशंका जताई जा रही है। माना जा रहा है कि राजनीति में कदम रखते ही टीम अन्ना का डूबना तय है। खैर, भविष्य जो भी हो यहां हम 1975 के आपातकाल विरोधी आंदोलन और टीम अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की कुछ खास बातों से रूबरू करा रहे हैं-

हाईटेक है अन्‍ना का आंदोलन,इमरजेंसी में मीडिया पर भी बैन
21वीं सदी में भारतीय लोकतंत्र का यह पहला जनांदोलन है, जिसे देश के कई हिस्‍सों से समर्थन मिला। आंदोलन में आधुनिक युग के सभी हाईटेक संसाधनों का इस्तेमाल हो रहा है। भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों को जागरूक करने के लिए टीम अन्ना की खुद की वेबसाइट www.indiaagainstcorruption.org है।

सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर भी टीम अन्ना ने समर्थन की जबर्दस्त मुहिम चला रखी है। इनका फेसबुक पेज indiaagainstcorruption अब तक 6,30,665 लोगों द्वारा पसंद किया जा चुका है। ट्वीटर पर मौजूद इनके एकाउंट के 2,16,410 फॉलोअर्स है। इन्होंने अपने आंदोलन के प्रचार-प्रसार के लिए एसएमएस कैंपेन का भी इस्तेमाल किया।

वहीं इमरजेंसी के दौरान सरकार विरोधी खबरों और लिटरेचर पर पूरी तरह प्रतिबंध था। हालात ये थे कि इमरजेंसी के विरोध में बनी अमृत नाहटा की फिल्म ‘किस्सा कुर्सी का’ के सभी प्रिंट सरकार ने जला दिए थे। इस फिल्म में शबाना आजमी ने गूंगी जनता का प्रतीकात्‍मक चरित्र निभाया था।

यहां सभी हैं समाजसेवी, वहां थे राजनीतिज्ञ
भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का नेतृत्व कर रही टीम अन्ना के अधिकांश सदस्य समाजसेवी हैं। इनमें से कई एनजीओ भी चलाते हैं और उन्हें समाजसेवा से जुड़े महत्वपूर्ण पुरस्कार भी मिल चुके हैं। मसलन टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य अरविंद केजरीवाल को रेमन मैगसेसे पुरस्कार और आईआईएम गोल्ड मेडल मिल चुका है। टीम की सदस्य किरण बेदी खुद भी एनजीओ चलाती हैं और रेमन मैगसेसे अवार्ड से सम्मानित हो चुकी हैं। स्वयं अन्ना हजारे को 1992 में भारत सरकार समाज सेवा के लिए पद्मभूषण से सम्मानित कर चुकी है।

वहीं 1975 की इमरजेंसी के विरोध में उतरने वाले सभी सदस्य खांटी राजनीतिज्ञ थे। पुराने सोशलिस्ट और इंदिरा गांधी के धुर विरोधी जयप्रकाश्‍ा नारायण ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया था। इस आंदोलन से निकले अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्‍ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडिज, शरद यादव, रामकृष्ण हेगडे़‌ आदि बाद में भारतीय राजनीति की धुरी बने।

यहां भ्रष्टाचार है मुद्दा, वहां था चुनाव में धांधली
टीम अन्‍ना मौजूदा सरकार के घोटालों और भष्टाचार का विरोध कर रही है। टीम ने इस मुहिम की शुरुआत 29 अक्‍टूबर, 2010 को एक प्रेस कांफ्रेंस से की थी। तब टीम ने कॉमनवेल्‍थ गेम्स में भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाया था। संगठन ने बाद में हाउसिंग लोन स्कैम, आदर्श हाउसिंग स्कैम, 2 जी स्कैम और राडिया टेप स्कैंडल को जोरशोर से उठाया। अंततः इस टीम ने अन्ना हजारे के नेतृत्व में 5 अप्रैल 2011 से जनलोकपाल कानून के पक्ष में आमरण अनशन की शुरूआत की। इसके बाद से यह आंदोलन पिछले डेढ़ सालों से जारी है।

जेपी का आंदोलन इमरजेंसी के विरोध में था। इसकी शुरुआत तब हुई जब 25 जून, 1975 को इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। यह सब हुआ इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले से जिसमें इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली करने का दोषी पाया गया और उन पर छह वर्षों तक कोई भी पद संभालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। लेकिन इंदिरा गांधी ने इस फैसले को मानने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई।

आपातकाल लागू होते ही आंतरिक सुरक्षा कानून (मीसा) के तहत राजनीतिक विरोधियों की गिरफ्तारी की गई। इनमें जयप्रकाश नारायण, जॉर्ज फर्नांडिज और अटल बिहारी वाजपेयी भी शामिल थे। आपातकाल लागू करने के लगभग दो साल बाद विरोध की लहर तेज होती देख प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर चुनाव कराने की सिफारिश कर दी। चुनाव में कांग्रेस की बुरी तरह हार हुई। खुद इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव हार गईं। जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।

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