नई दिल्ली । पिछले लंबे समय से बाधित संसद में फिलहाल एक दिन के लिए सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच समझौता हो गया है। मंगलवार को मुख्य विपक्ष भाजपा जरूरी वित्तीय विधेयकों के आड़े नहीं आएगी, लेकिन उससे पहले जनता के कठघरे में सरकार को खड़ा करने का मौका भी नहीं चूकेगी। नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज इन विधेयकों पर साथ देने से पहले ही बयान देकर यह स्पष्ट कर देंगी कि दूसरे विधेयकों को यह राहत नहीं मिलेगी। माना जा रहा है कि अन्य विधेयकों पर भाजपा सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए सदन का बहिष्कार करेगी।
सोमवार को फिर से कोयला घोटाला और 2जी के मुद्दे पर दोनों सदनों की कार्यवाही ठप रही। संसदीय कामकाज को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष में भले ही आरोप प्रत्यारोप का दौर चलता रहा हो। खुद सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह अपने अहम वित्त विधेयक को लेकर भी पूरी तरह सतर्क नहीं थी। गौरतलब है कि पहले वित्त विधेयक मई के दूसरे सप्ताह में पारित करवाने की योजना थी। जो भी हो समय रहते इसे सुधार लिया गया। रविवार को सरकार की ओर से सुषमा स्वराज को बताया गया कि लोकसभा में 30 अप्रैल को वित्त विधेयक पारित कराया जाएगा। सरकार के मंत्री ने विपक्ष से समर्थन भी मांगा। सोमवार को लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार के कक्ष में सर्वदलीय बैठक में सुषमा ने यह आश्वासन दे दिया कि मुख्य विपक्ष वित्त विधेयक, रेल विधेयक, विनियोग विधेयक और विभिन्न मंत्रालयों की अनुदान मांगों के आड़े नहीं आएगा लेकिन यह भी संकेत दे दिया कि दूसरे विधेयकों के लिए यह राहत नहीं होगी। पार्टी प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि भाजपा सकारात्मक विपक्ष है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सरकारी रवैये का विरोध जारी रहेगा लेकिन वित्त विधेयक के आड़े आकर संवैधानिक संकट उत्पन्न नहीं होने दिया जाएगा। संविधान के अनुसार बजट पेश होने के 75 दिनों के अंदर वित्त और रेल विधेयकों को पूरी तरह पारित कराना होता है। लोकसभा से पारित होने के बाद इन्हें राज्यसभा भेजा जाता है और उसके बाद राष्ट्रपति की मंजूरी ली जाती है।
विधेयक से पहले सुषमा विपक्ष का मत रखेंगी तो जनता तक यह संदेश पहुंचाने की कोशिश होगी कि कोयला और 2जी घोटाले को लेकर विपक्ष का रुख जनता के ही पक्ष में है। प्रधानमंत्री, कानून मंत्री और सरकार के लिए यहीं से संकेत होगा कि वित्त विधेयक पारित होने के बाद उसे फिर से विपक्ष के तीखे रुख से ही रूबरू होना पड़ेगा। ऐसे में इस आशंका को नहीं नकारा जा सकता है कि सरकार के दूसरे महत्वाकांक्षी विधेयकों के लिए राह बहुत मुश्किल होगी, जबकि वित्तीय सुधार से जुड़े विवादित विधेयकों की राह तो लगभग बंद ही है। बजट सत्र 10 मई को समाप्त होना है।
कानून मंत्री पर फैसला मंगलवार को :
कोयला घोटाले की सीबीआइ जांच में कानून मंत्री अश्विनी कुमार के हस्तक्षेप से बुरी तरह फंसी सरकार बचाव की रणनीति बनाने में जुट गई है। अश्विनी कुमार का भविष्य अब सुप्रीम कोर्ट के रुख पर निर्भर करेगा। सीबीआइ जांच की स्टेटस रिपोर्ट कानून मंत्री के साथ कोयला मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय [पीएमओ] के एक-एक अफसर से साझा किए जाने के खुलासे के बाद खुद प्रधानमंत्री भी सक्रिय हो गए हैं। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई है। इससे पहले अटॉर्नी जनरल की प्रधानमंत्री से मुलाकात को सरकार की आगे की तैयारियों के रूप में देखा जा रहा है।
सूत्रों के मुताबिक सीबीआइ की स्टेटस रिपोर्ट पीएमओ और कानून मंत्री से साझा करने के मामले में विपक्ष की तरफ से दोनों के इस्तीफे की मांग के बावजूद सरकार अपने रुख से पीछे नहीं हटना चाहती। सरकार कानून मंत्री के पीछे खड़ी है, फिर भी उसे सुप्रीम कोर्ट से परेशानी बढ़ाने वाली किसी टिप्पणी का डर सता रहा है। सरकार की परेशानी इसलिए और बढ़ गई है, क्योंकि माना जा रहा है कि सीबीआइ ने साझा की गई प्रगति रपट के साथ अपनी मूल जांच रपट भी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है। इससे यह स्पष्ट हो जाएगा कि जांच रपट में क्या बदलाव कराए गए?
खुद कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि यदि सुप्रीम कोर्ट ने कुछ ऐसी टिप्पणी कर दी, जिससे कानून मंत्री कठघरे में खड़े होते हों तो वह उन पर फिर से विचार कर सकती है। बताते हैं कि रविवार को प्रधानमंत्री और अटॉर्नी जनरल की मुलाकात सरकार के बचाव की रणनीति का ही हिस्सा है। कांग्रेस ने सोमवार को भी कानून मंत्री का यह कहकर बचाव किया कि विपक्ष को संसद चलने देनी चाहिए और कानून मंत्री को अपना पक्ष रखने का मौका मिलना चाहिए। यह पूछे जाने पर कि क्या कांग्रेस मानती है कि कानून मंत्री ने इस मामले में कुछ भी गलत नहीं किया है? कांग्रेस प्रवक्ता संदीप दीक्षित ने कहा, मैं यह नहीं कह रहा कि उन्होंने कुछ गलत या सही नहीं किया है। उन्होंने वही किया होगा जो ठीक समझा। वह बहुत योग्य हैं। वही इसका उत्तर भी दे सकते हैं। उन्हें स्पष्टीकरण देने का मौका मिलना चाहिए। क्या कांग्रेस कानून मंत्री को क्लीन चिट दे रही है? इस सवाल पर दीक्षित ने कहा, मैं किसी को क्लीन चिट देने वाला कौन होता हूं? लेकिन, हमारे पास उनके ऊपर संदेह करने की कोई वजह नहीं है कि उन्होंने जो भी किया वह गैरकानूनी, गलत या असंवैधानिक है।