बड़े अरमानों से बच्चियों के बेहतर भविष्य का सपना लेकर कस्तूरबा गांधी विद्यालय में नामांकन कराने वाले लोगों से लेकर उनके शिक्षक तक परेशान हैं। बच्चियों को पानी के लिए कम से कम एक किलोमीटर दूर तक जाना पड़ रहा है, लेकिन तंत्र मौन है। लिखित शिकायत की भी अधिकारियों ने अनदेखी कर दी। फोन पर और सामने जाकर बताया भी गया, लेकिन शिकायतें अनसुनी कर दी गईं। लापुंग प्रखंड के कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय की यह तस्वीर बच्चियों की परेशानी खुद बयां कर रही है। पढ़ाई तो बुरी तरह प्रभावित है ही।
स्कूल में 253 छात्राएं पढ़ती हैं। पानी की किल्लत के कारण चार बजे सुबह से ही ये पानी की तलाश में जुट जाती हैं। बाउंड्री फांदकर करीब एक किलोमीटर दूर से चापानल व कुंआ से पानी लाना इनकी मजबूरी है। पानी भरकर तीस किलो वजनी बाल्टी लाने में इन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ती है। स्नान करना तो इनके लिए और बड़ी परेशानी है। दूर कृषि फार्म के निकट जाना और खुले में गंदे पानी से नहाना इनकी दिनचर्या है।
लापुंग प्रखंड कार्यालय स्थित प्रखंड संसाधन केंद्र व खेल विभाग के छात्रावास में चल रहे कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय के चापाकल इतने बदतर हैं कि चार से पांच बाल्टी पानी निकलने के बाद काम करना बंद कर देते हैं। दो चापानल खराब हैं, वहीं नए चापाकल से पानी निकलता ही नहीं है।
हमारी सुननेवाला कोई नहीं
विद्यालय की आठवीं की छात्रा पूजा कुमारी, सातवीं की सुनीता कुमारी, अंगनी परधिया, प्रियंका कुमारी, नौवीं कक्षा की चांदमनी बारला, अनिता भेगरा, हेरानी होरो, दसवीं कक्षा की चांदमनी कुमारी, सुनीता कुमारी, अंगनी कुमारी समेत अन्य छात्राओं ने आक्रोशित होकर कहा कि हमारी बातों को सुनने वाला कोई नहीं है। स्थानीय विधायक व सांसद भी हम लोगों की इस समस्या से अनजान बने हुए हैं।
विद्यालय की शिक्षिका प्रतिभा कुमारी व वार्डेन ज्योति बाला के मुताबिक, कई बार टैंकर से पानी की सुविधा उपलब्ध कराने की मांग की है, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ।
डीएससी के पास दिया आवेदन
हमने पानी की समस्या को दूर करने के लिए डीएससी के पास आवेदन दिया है। विभाग और चापाकल लगाएगा। टैंकर की व्यवस्था की गई थी, लेकिन कुछ लोगों ने रोक दिया।