कानपुर। अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में ग्वालटोली किले के नवाब जंग बहादर ने भी अहम भूमिका निभायी। उन्होंने ग्वालटोली से बिठूर तक एक सुरंग बनाई थी। इसमें अन्य वीरों के साथ वे अंग्रेजों को भगाने की योजना बनाते थे। अंग्रेजों को जब इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने वार्ता के बहाने नवाब को ब्रिटेन बुलाया और यहां उनकी जमीन पर कब्जा कर किला जला दिया।
वर्ष 1803 में अवध के नवाब गयासुद्दीन हैदर बहादर के सबसे तेज तर्रार वजीर आजम (प्रधानमंत्री) नवाब आगामीर मौतमुद्दौला जैगम जंग बहादर थे। वह अंग्रेजों से नफरत करते थे। इसका पता चलने पर अंग्रेजों ने अवध के नवाब पर दबाव बनाकर जंग बहादर को नौकरी से हटवा दिया। इसके बाद जंग बहादर ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
यूं रहा बहादुरी का सफर
1810 में जंग बहादर अवध से कानपुर आए। उस समय जूही में दो बहनें छोटी जूई और बड़ी जूई भी अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में जुटी थीं। इन्हीं दोनों बहनों के नाम पर जूही का नाम पड़ा। जंग बहादर इनके साथ अंग्रेजों के खिलाफ योजना बनाने लगे। 1815 में वह जूही से नवाबगंज पहुंचे। जहां आज गंगा बैराज है, वहां से जिलाधिकारी के बंगले तक गंगा के किनारे-किनारे, सूटरगंज, खलासी लाइन की जमीन जंग बहादर ने खरीद ली। उन्होंने ग्वालटोली में 16 एकड़ में बनी बख्शीग्रांट कोठी (जो आज मकबरा है) खरीद ली। नवाब ने रानी लक्ष्मीबाई, तात्याटोपे, बिरहाना रोड की अजीजनबाई से संपर्क साधा और फिर ग्वालटोली से बिठूर तक सुरंग बनाई। 1830 तक यहां अंग्रेजों के खिलाफ योजनाएं बनती रहीं।
अंग्रेजों ने ऐसे किया धोखा
नवाब के छठी पीढ़ी के रफीक अली खान ने बताया कि 1831 में नवाब को अंग्रेजों ने एक अहम मीटिंग करने के नाम पर ब्रिटेन बुलाया। इधर अंग्रेजी फौज ने ग्वालटोली किले पर हमला कर उसे जला दिया। नवाब की गैर मौजूदगी में उनके पुत्र निजामुद्दीन दौला बहादर बाकर अली खान के पास किले की कमान थी। अंग्रेजों ने सारी जमीन पर कब्जा कर लिया और बाकर अली खान को गोली मारने का आदेश दिया। इस फरमान के बाद बाकर बचने के लिए फैजाबाद चले गए। नवाब आगामीर मौतमुद्दौला जैगम जंग बहादर ब्रिटेन से ग्वालटोली वापस आए तो सब उजड़ चुका था। नवाब ने 1832 में इस किले को वक्फ कर दिया। कुछ समय बाद ही उनका इंतकाल हो गया, जिनका मकबरा इसी महल में है।
उजड़ा महल संजोये यादें
आज इस उजड़े महल में सिर्फ जला किला, रोती दीवारें, बंद हो चुकी सुरंग, मजबूत दरवाजे, खिड़कियां शेष हैं। इस किले को मकबरा नवाब आगामीर के नाम से जाना जाता है। अब यहां मोहर्रम, चहेल्लुम में मजलिस, मातम होता है।