अंग्रेजों के जुल्म का मूक साक्षी है यह वट वृक्ष

many-freedom-fighters-hanged-in-this-banyan-treeरुड़की। देश को अंग्रेजों की कैद से आजाद हुए 64 साल बीत गए हैं, लेकिन उनके जुल्म के निशां आज भी जगह-जगह पर मौजूद है। शहर के निकटवर्ती सुनहरा गांव में मौजूद एतिहासिक वट वृक्ष वर्ष 1824 के कुंजा ताल्लुका के विद्रोह एवं अंग्रेजों के जुल्म का मूक साक्षी बना हुआ है। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाने वाले सौ से अधिक क्रांतिकारियों एवं ग्रामीणों को इस वट वृक्ष पर सरेआम फांसी दी गई।

10 मई 1857 की क्रांति को भले ही देश की आजादी की क्रांति कहा जाता हो, लेकिन अंग्रेजी गजेटियर के मुताबिक रुड़की में यह क्रांति की ज्वाला इससे पहले ही भड़क उठी थी। अक्टूबर 1824 को कुंजा ताल्लुका में राजा विजय सिंह के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ पहला युद्ध हुआ। इसमें बड़ी संख्या में लोग शहीद हुए, कुछ पकड़े गए। इन लोगों को सुनहरा स्थित इस एतिहासिक वट वृक्ष पर फांसी दे दी गई। रामपुर गांव निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय यासीन के बड़े बेटे डॉ. मौ. मतीन ने बताया कि उनके अब्बा बताया करते कि जब 1857 की क्रांति के बिगुल बजना शुरु हुआ तो सहारनपुर से ज्वाइंट मजिस्ट्रेट सर राबर्टसन ने रामपुर, कुंजा, मतलबपुर आदि गांव से ग्रामीणों को पकड़कर इस पेड़ पर सरेआम फांसी पर लटका दिया।

इसके अलावा कई क्रांतिकारियों को भी फांसी दी गई, उन्होंने यह कदम इसलिए उठाया कि लोग भयभीत हो जाए और अंग्रेजों के खिलाफ आवाज न उठा सके। ताकि रुड़की व सहारनपुर में मौजूद छावनी से फौज को दूसरे जगह भेजा जा सके। वह बताते है कि अंग्रेजों के खौफ से आसपास के गांव के लोग डरकर भाग गए। सन 1910 को शहर के लाला ललिता प्रसाद ने इस वट वृक्ष की भूमि को खरीद लिया था। उसके नाम पर ही मंत्राचरणपुर गांव बसाया गया, जो बाद में सुनहरा के नाम से जाना गया। 1947 में जब देश आजाद हुआ, तब तक इस पेड़ पर लोहे के कुंडे एवं जंजीरें लटकी हुई थी, जो कि बाद में लोगों ने धीरे-धीरे उतार लिए। जिसके निशान इस पेड़ के टहनों पांच साल पहले तक मौजूद रहे। देश की आजादी के बाद 1957 में पहली बार इस पेड़ के नीचे तत्कालीन ज्वाइंट मजिस्ट्रेट बीएस जमेल की अध्यक्षता में कार्यक्रम आयोजित कर शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय यासीन जब तक जीवित रहे, तब तक शहीद यादगार कमेटी के बैनर तले इस वट वृक्ष पर शहीदों को श्रद्धांजलि देते रहे। 1995 को उनके देहांत के बाद उनके बेटे डॉ. मोहम्मद मतीन इस कमेटी के अध्यक्ष है, और वट वृक्ष के नीचे कार्यक्रम आयोजित करते हैं।

इतिहास में भी नाम नहीं है दर्ज

रुड़की। देश के विभिन्न भागों की भांति सुनहरा के इस वट वृक्ष पर लटकाए गए उन सौ से अधिक क्रांतिकारियों एवं ग्रामीणों का कोई पता नहीं है। इतिहास में भी इन लोगों का कोई नाम दर्ज नहीं है, बस इतना जरूर है कि यह आसपास के गांवों के रहने वाले थे।

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