गरीबों को नहीं मिलता भारत में न्याय: शैलेष गांधी

saileshमुंबई। ‘देरी से मिला न्याय नहीं है’, ये बात देश भर की जेलों में बंद उन हजारों कैदियों पर लागू होती है जो अदालतों में अपने मामले की सुनवाई का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन वह समय नहीं आ रहा है, क्योंकि न तो वे अमीर हैं और न ही प्रभावशाली। यह कहना है भारत के पूर्व सूचना आयुक्त शैलेष गांधी का।

गांधी ने शनिवार को मिड-डे से विशेष बातचीत में कहा, हमारे देश में न्यायिक प्रक्रिया बेहद लंबी है, इसी कारण प्रभावशाली या अमीर अपराधी अधिकतर दंडित नहीं होते हैं। दूसरी ओर गरीब आरोपी सुनवाई के दौरान ही जेल में सड़ता रहता है। भारत उन शीर्ष दस देशों में शामिल है जहां जेलों में बंद 70 फीसद अब तक दोषी सिद्ध नहीं हुए हैं। बावजूद इसके समयबद्ध न्याय कभी भी भारत के एजेंडे में नहीं रहा क्योंकि शायद हम यह मान चुके हैं कि इसे पाया नहीं जा सकता।

गांधी ने कहा, संविधान का अनुच्छेद 14 सभी नागरिकों को समान अधिकार देता है, लेकिन अदालतों के मामलों में वास्तव में ऐसा होता नहीं है। हालांकि, सरकारी वकील रोहिणी सलियान की राय इससे जुदा है। वह कहती हैं, ट्रायल कोर्ट में मामलों के लंबित होने का मूल कारण यह है कि अदालत में रोजाना 40 मामले सूचीबद्ध होते हैं, लेकिन जिरह के कारण सिर्फ तीन या चार पर ही सुनवाई हो पाती है। इसका हल पूछने पर वह बोलीं, समय के साथ पंजीकृत अपराधों की संख्या में खासी बढ़ोत्तरी हुई है, लेकिन ट्रायल कोर्टो की संख्या बहुत कम है। लंबित मामलों के लिए अधिक ट्रायल कोर्टो की जरूरत है।

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