नई दिल्ली । 90 लाख रुपये की दलाली के मामले में पूर्व रेल मंत्री पवन बंसल से इस हफ्ते कभी भी पूछताछ हो सकती है। पूछताछ की सारी तैयारी कर ली गई है, बस उनके चंडीगढ़ से दिल्ली लौटने का इंतजार किया जा रहा है।
सीबीआइ सोमवार को रेल भवन पहुंची। वहां दो अधिकारियों से पूछताछ की और पिछले तीन साल में हुए तबादले, पदोन्नति और निविदा से संबंधित फाइलें अपने कब्जे में ले लिया। फाइलें दूसरी प्रोन्नतियों व ठेकों में हुई धांधली की दास्तां बयां कर रहे हैं। यही कारण है कि एजेंसी ने लालू यादव के कार्यकाल में 2008 (संप्रग-एक का कार्यकाल) से अब तक हुई सभी नियुक्तियों, प्रोन्नतियों व ठेकों के आवंटन को जांच के दायरे में ले लिया है। इस मामले में एक एफआइआर और दो प्रारंभिक जांच का केस दर्ज हो सकता है।
रेल घूसकांड की जांच से जुड़े सीबीआइ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि 2008 के बाद कुछ प्रोन्नतियों व ठेकों में गड़बड़ी के स्पष्ट सबूत मिले हैं। इनकी गहराई से जांच करने का फैसला किया गया है। वैसे उन्होंने यह नहीं बताया कि किस मंत्री के कार्यकाल में हुई गड़बड़ियों में जांच के लिए केस दर्ज करने का फैसला किया गया है।
दरअसल, 2008 में लालू प्रसाद रेलमंत्री थे और 2009 में संप्रग-दो में ममता बनर्जी रेलमंत्री बनीं थीं। पिछले साल सितंबर में संप्रग से समर्थन वापसी के पहले तक तृणमूल कांग्रेस के दिनेश त्रिवेदी और मुकुल राय मंत्री रहे थे। दूसरे मंत्रियों के फैसलों को जांच के दायरे में लेते हुए सीबीआइ ने बंसल के खिलाफ भी जांच तेज कर दी है। अक्टूबर में बंसल के रेलमंत्री बनने के बाद से लिए गए उनके सभी फैसलों की फाइल जांच एजेंसी ने अपने कब्जे में ले ली है। इनमें नियुक्तियों व ठेकों के दिए जाने के फैसले शामिल हैं। जांच एजेंसी को आशंका है कि महेश कुमार की प्रोन्नति की तरह बंसल के कार्यकाल में अन्य प्रोन्नतियों व ठेकों के लिए भी पैसे लिए गए होंगे।
उधर, रेल घूसकांड में गिरफ्तार वरिष्ठ अधिकारी महेश कुमार के बारे में पता चला है कि रेलवे बोर्ड का सदस्य (स्टाफ) बनाए जाने से पहले उन्होंने पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक के तौर पर आखिरी नौ दिनों में 269 करोड़ रुपये के प्रस्ताव को हरी झंडी दी थी। यह प्रस्ताव चर्च गेट से अहमदाबाद के बीच डिजिटल सुरक्षा उपकरण लगाने का था। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रस्ताव वित्त और लेखा विभाग से नहीं गुजरा था।