लखनऊ। उत्तर प्रदेश ग्राम्य सहकारी विकास बैंक में आइएएस अफसरों, बसपा सरकार के मंत्रियों और सहकारिता विभाग के अफसरों के बहू-बेटे-बेटियों को नौकरी पूर्व सहकारिता मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा के कहने पर दी गई।
अपने चहेतों के परिवारीजन को नौकरी दिलाने के लिए कुशवाहा ने तत्कालीन प्रबंध निदेशक नवलकिशोर के सिर पर हाथ रखा था। हद तो यह हो गयी कि नवलकिशोर ने अभ्यर्थियों की कापियां जांचने की जिम्मेदारी संचालक मंडल को ही सौंप दी थी। ग्राम्य सहकारी बैंक में हुए घोटाले की जांच कर रहे कोआपरेटिव सेल की एसआइबी को कई अहम सुराग मिले हैं। संचालक मंडल ने नियमों की अनदेखी कर कापियां जांची।
एसआइबी ने संचालक मंडल के दो सदस्यों से भी पुख्ता जानकारी हासिल की है। इनमें एक सदस्य एसआइबी की ओर से गवाह बनने को भी तैयार है। बैंक में घोटाले और मनमानी का आलम यह था कि उच्च न्यायालय के आदेश के मुताबिक तत्कालीन प्रबंध निदेशक नवलकिशोर को नीतिगत निर्णय लेने का अधिकार नहीं था, लेकिन उन्होंने 99 कर्मचारियों की भर्ती की।
इस भर्ती में पूर्व आइएएस अधिकारी अमल कुमार वर्मा के बेटे और पूर्व आइएएस रामबोध मौर्या की बेटी के अलावा लैकफेड घोटाले में सलाखों के पीछे कैद पूर्व एमडी बीपी सिंह के बेटे को भी बैंक में नौकरी दी गयी थी। दिलचस्प यह कि कर्मचारियों के चयन में उनकी कापियों को जांचने का काम संचालक मंडल को सौंप दिया गया। संचालक मंडल मंत्री के इशारे पर बना था और इसमें सदस्य भी पिछली सरकार के चहेते ही बनाये गये थे। एसआइबी पिछले कार्यकाल में संचालक मंडल के सदस्य रहे एके शुक्ला, एएम निगम, बीपी सिंह, आरके वर्मा, हृदय राम चौरसिया, राजीव लोचन शर्मा, आरके श्रीवास्तव और राजमणि पांडेय की भूमिका की भी पड़ताल कर रही है। इनमें कई लोग दूसरे मामलों में भी दागी हैं।
एसआइबी संचालक मंडल के इन सदस्यों और पूर्व मंत्रियों के संबंधों के साथ ही उन 99 कर्मचारियों से भी इनके रिश्तों की पड़ताल कर रही है। एसआइबी का कहना है कि जांच पूरी होने के बाद कई और चेहरे बेनकाब होंगे।