नई दिल्ली । जनहित की सरकारी योजनाओं का सीधे प्रचार-प्रसार न कर सत्ता में काबिज सरकार जिस तरह अपने गुणगान के लिए सरकारी विज्ञापनों का इस्तेमाल करते हैं, इसे लोकायुक्त अदालत ने गलत प्रचलन करार दिया है।
लोकायुक्त जस्टिस मनमोहन सरीन का मानना है कि मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने गत विधानसभा चुनाव से पूर्व ऐसा ही किया जो पूरी तरह जनता के पैसे का दुरुपयोग है। बुधवार को जस्टिस सरीन ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से सिफारिश की है कि शीला दीक्षित को चेतावनी दें कि वह सरकारी फंड का बेजा इस्तेमाल अपने स्वार्थ के लिए न करें।
1 नवंबर 2008 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव से पूर्व सरकारी विज्ञापन के मद में निर्धारित फंड तकरीबन 11 करोड़ का जिस तरह मुख्यमंत्री ने अपने व अपनी कांग्रेस पार्टी के लिए खर्च किया है, इस पर लोकायुक्त ने राष्ट्रपति को भेजी सिफारिश में इस राशि को भी सरकारी खजाने में जमा कराने की बात कही है। अदालत ने अपने आदेश में साफ कहा है कि उक्त रकम शीला दीक्षित स्वयं या फिर उनकी पार्टी से वसूली जाए।
पेश मामले में प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने लोकायुक्त अदालत में शिकायत दर्ज कराई थी कि मुख्यमंत्री ने गत विधानसभा चुनाव से पूर्व सरकारी विज्ञापनों का इस्तेमाल जमकर अपना गुणगान कराने के लिए किया। यहां तक की 29 जून 2009 को एक राष्ट्रीय अखबार में तत्कालीन सूचना एवं प्रचार निदेशालय के प्रमुख द्वारा लिखा गया आलेख भी एक तरह से प्रायोजित था। उसे मुख्यमंत्री ने अपने पक्ष में प्रकाशित कराया था। अदालत में जब मामले की सुनवाई हुई तब उस आरोप को भी सही पाया गया। इतना ही नहीं, चुनाव से चंद महीने पहले जिस तरह जहां-तहां सरकारी विज्ञापनों की बाढ़ आ गई थी, यह भी एक रिकॉर्ड था। नवंबर 2004 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव से पूर्व सरकारी विज्ञापन में साल भर में सरकार ने चार करोड़ रुपये खर्च किए थे। वहीं पांच साल बाद हुए चुनाव के दौरान पांच गुणा से भी ज्यादा खर्च हो गया। दिल्ली सरकार ने वर्ष 2008-09 में सरकारी विज्ञापन के मद में 22 करोड़ 56 लाख रुपये लुटा दिए। ‘बदल रही है दिल्ली, परिवर्तन की डोर टूटे न, डोंट स्टॉप क्लीन दिल्ली, ग्रीन दिल्ली’ आदि दर्जनों स्लोगन युक्त विज्ञापनों से महानगर पटा हुआ दिखाई दे रहा था। इससे दिल्ली सरकार ने जनता के समक्ष सिर्फ अपनी पार्टी की छवि बेहतर बनाने के रूप में प्रयोग किया।