नई दिल्ली। आखिरकार समाजवादी पार्टी ने भी संप्रग सरकार से किनारा कर ही लिया, लेकिन बसपा का मोह सरकार से कतई कम नहीं हुआ है। यही वजह है कि जहां सपा घोटालों व भ्रष्टाचार से दागदार सरकार के जश्न में उसके साथ खड़े होने की हिम्मत नहीं जुटा सकी, वहीं बसपा ने उसके रात्रिभोज में शामिल होकर हाजिरी तो लगा दी, लेकिन जश्न के मंच से परहेज किया।
संप्रग सरकार महज एक ही साल में सपा की नजर में कहां पहुंच गई है? अंदाजा लगाया जा सकता है। बुधवार को सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव व पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव दिल्ली में ही मौजूद थे, लेकिन प्रधानमंत्री के निवास पर आयोजित संप्रग के सालाना जलसे में झांकना भी मुनासिब नहीं समझा। हालाकि, सरकार के रणनीतिकार मंगलवार से ही उन्हें जलसे में आने के लिए मनाने में लगे थे। बुधवार को भी यह सिलसिला जारी रहा। कांग्रेस व सरकार के रणनीतिकार दिनभर यह शिगूफा छोड़ने से बाज नहीं आए कि शाम को सपा और बसपा दोनों की ही नुमाइंदगी होगी। लेकिन शाम को वहां सिर्फ बसपा के सतीशचंद्र मिश्र व ब्रजेश पाठक ही नजर आए।
दरअसल, बसपा अर्से से इस कोशिश में जुटी है कि किस तरह सपा संप्रग से दूरी बनाए और वह सरकार के और नजदीक जाए। संप्रग के सालाना जलसे में उसे यह मौका मिल भी गया। सरकार के साथ खड़े होने के पीछे बसपा की लोकसभा चुनाव को समय से पहले न होने देने की भी रणनीति शामिल है। बसपा सूत्रों का कहना है कि चुनाव जितनी देर में होगा, सपा को उत्तर प्रदेश में उतना ही नुकसान होगा। हालांकि, सूत्रों की मानें तो सतीश और ब्रजेश को भी शाम तक यह जानकारी नहीं थी कि उन्हें जश्न में जाना है या नहीं। देर शाम बसपा प्रमुख के निर्देश के बाद ही वे प्रधानमंत्री निवास पहुंचे।
उधर, सपा का मानना है कि बड़े-बड़े घपलों व भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी सरकार के साथ खड़े होने का मतलब अपनी राजनीतिक हत्या कराना है। पार्टी को लग रहा है कि देश में जो राजनीतिक हालात बन रहे हैं, उससे संप्रग सरकार की मुश्किलें दिनोंदिन और बढ़नी हैं। दूसरी बात यह कि लोकसभा चुनाव जब भी होंगे, कांग्रेस उसके निशाने पर होगी। ऐसे में चुनाव से कुछ महीने पहले ही उसी सरकार के सालाना जलसे में शामिल होकर उसके गुणगान का संदेश वे नहीं दे सकते थे। गौरतलब है कि संप्रग के पिछले साल के जलसे सपा प्रमुख मुलायम पूरे जोश से शामिल हुए थे, जिसकी बड़ी चर्चा हुई थी।