दमोह। 16 वर्षीय सृष्टि तिवारी, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड मध्यप्रदेश की कला समूह परीक्षा में शीर्ष स्थान। 500 में से 481 नंबर। समग्र मेरिट सूची में चौथा स्थान। फिर भी ऐसा क्या है जो सृष्टि को सलाम करने का मन करता है। जी हां, उसने दृष्टिहीन होने के बावजूद भी कामयाबी के इस मुकाम को अपनी मेहनत और लग्न के बल पर छुआ है।
मध्य प्रदेश की दमोह निवासी सृष्टि ने 10वीं की बोर्ड परीक्षा में भी दृष्टि बाधित संवर्ग में शीर्ष स्थान हासिल किया था। पढ़ाई और संगीत सुनने में रूचि रखने वाली सृष्टि अपनी सफलता से खुश हैं और आगे भी यह सिलसिला जारी रखना चाहती है। 5वीं कक्षा के बाद नाना-नानी के पास रहकर पढ़ाई कर रही सृष्टि को उनका काफी साथ मिला है। वह कहती है कि उसके जैसे हर जरूरतमंद को इसी तरह का प्यार मिले तो वह भी बेहतर नतीजे दे सकता है। शारीरिक समस्या सफलता में बाधक नहीं बन सकती। सृष्टि की मां सुनीता तिवारी गृहिणी और पिता सुनील तिवारी सरकारी कर्मचारी है। उसके नाना-नानी वीरेंद्र और पुष्पा बताते हैं कि सृष्टि का पढ़ाई पर विशेष जोर रहता है और नातिन को पढ़ाने में उन्हें सुख की अनुभूति होती है।
एक तरफ जहां नाना-नानी सृष्टि की सुविधाओं का ख्याल रखते हैं, वहीं मामा सुधीर व संजय नोट्स बनाते हैं। इन नोट्स को पढ़कर नाना-नानी सुनाते हैं। वे कहते हैं कि सृष्टि की खूबी है कि वह एक बार जिस बात को सुन लेती है उसे कभी भूलती नहीं है। यही कारण है कि उसे जो भी अध्याय सुनाया गया, उसे वह याद रहा और परीक्षा में उसी के मुताबिक नतीजा आया है। शिक्षा विभाग द्वारा परीक्षा के दौरान उसकी कॉपी लिखने के लिए सहायक उपलब्ध कराया गया था।
सृष्टि को जन्म के बाद ही मोतियाबिंद हो गया था। 11 बार आपेरशन हुआ, परंतु उसकी आंखों की रोशनी में कोई सुधार नहीं हुआ। लेकिन सृष्टि ने इस बाध्यता को अपनी पढ़ाई की राह का रोड़ा नहीं बनने दिया। उसको मिली कई स्कॉलरशिप और सर्टिफिकेट उसकी कामयाबी की गाथा को बयान करते हैं।