कोलकाता। घोटालों की वजह से धवस्त हो चुके सारधा चिट फंड के दो चैनलों को अधिग्रहण करने की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की कोशिशों को कानूनी धक्का लग सकता है। वाममोर्चा ने जहां उनकी नीयत पर सवाल उठाया है, वहीं केंद्र सरकार ने अधिग्रहण की कोशिश का तकनीकी और वैधानिक आधार पर विरोध किया है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने शुक्रवार को सवाल उठाया कि वर्तमान लाइसेंस कानूनों के मद्देनजर कोई सरकार किसी भी चैनल का अधिग्रहण कैसे कर सकती है? यह निर्णय विवाद बढ़ाने वाला है।
दूसरी ओर टेलीकॉम ऑथोरिटी ऑफ इंडिया (ट्राइ) के नियमानुसार कोई भी राज्य सरकार टीवी चैनल नहीं चला सकती, क्योंकि, संसद में कानून पारित कर प्रसार भारती गठित की गई है, जो एक स्वायत्त संस्था है। बृहस्पतिवार को मुख्यमंत्री ने चिट फंड घोटाले की आंच से बंद हो गए सारधा समूह के दो चैनलों सारधा म्यूजिक व सारधा न्यूज के सभी 168 कर्मचारियों का अधिग्रहण करने एवं प्रक्रिया पूरी नहीं होने तक मुख्यमंत्री राहत कोष से प्रतिमाह 16 हजार रुपये बतौर अनुदान देने की घोषणा की है।
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक मुख्यमंत्री का चैनलों के अधिग्रहण की दिशा में यह पहला कदम है। वाममोर्चा मुख्यमंत्री के इस कदम की कड़ी आलोचना कर रहा है। विरोधी दल के नेता सूर्यकांत मिश्र ने इसे वित्तीय दबाव के बीच सरकारी धन की बरबादी कहा है। मिश्र ने पूछा कि घोटाले में फंसी किसी फर्जी चिट फंड कंपनी के चैनलों का कोई सरकार कैसे अधिग्रहण कर सकती है। यह कहां की नैतिकता है। विरोधी दल इस बारे में सरकार की नीयत पर भी सवाल खड़ा करते हुए जानना चाहते हैं कि सारधा के मीडिया समूह के सिर्फ दो चैनलों पर सरकार क्यों मेहरबानी दिखा रही है, जबकि इसी समूह के अेंतर्गत 13 चैनल व समाचार पत्र बंद हो चुके हैं। डा. मिश्र ने पूछा कि सारधा समूह के बंद हो गए अन्य मीडिया प्रतिष्ठानों के हजारों बेरोजगार कर्मचारियों पर ममता बनर्जी क्या अपनी ममता दिखाएंगी? जिन दोनों चैनलों के अधिग्रहण की तृणमूल सरकार ने घोषणा की है, उसे सारधा समूह के मुखिया सुदीप्त सेन ने 2011 में खरीदा था। गत अप्रैल में घोटाले के उजागर होने के कुछ दिन पूर्व ही मीडिया प्रतिष्ठान के सभी चैनलों व समाचार पत्रों को बंद करने की घोषणा की गई थी।