आतंक का खूनी खेल खेलने वाले पीते हैं महंगा मिनरल वाटर

india-will-not-scare-of-naxal-attack-presidentनई दिल्ली। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के काफिले पर हुए नक्सली हमले ने राज्य से केंद्र तक सबको हिलाकर रख दिया है। जहां एक ओर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हमले में मारे गए लोगों के लिए कहा कि उनकी कुर्बानी बेकार नहीं जाएगी, वहीं राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई से देश डरने वाला नहीं है।

मुखर्जी ने कहा कि वे इस निर्मम घटना से बेहद दुखी हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह की घटना दोबारा न हो इस बात पर जोर दिया जाएगा। ये एक लोकतांत्रिक राष्ट्र है यहां हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है। सरकार को देश के नागरिकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी उठानी होगी। उन्होंने अधिकारियों से अपील की है कि जल्द से जल्द गुनाहगारों को सजा दें।

वहीं, हमले के बाद कांग्रेस नेता शिव नारायण ने पूरी घटना को अपनी जुबानी बयां किया।

तस्वीरों की जुबानी दहशत की कहानी

हम लोग रैली करके गाड़ियों के काफिले के साथ लौट रहे थे। मेरे आगे दो गाड़ियां और चल रही थीं। करीब पांच बजे अचानक जोर का धमाका हुआ। चारों ओर धूल और धुआं था। जब तक हम लोग कुछ समझ पाते, गोलियों की बौछार होने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई सेना हमला कर रही हो। चारों ओर से गोलियां बरस रही थीं। मैं जैसे-तैसे गाड़ी से बाहर निकला। मुझे गोली लग चुकी थी, फिर भी मैं गाड़ी की आड़ में सड़क पर लेट गया। मेरे बगल में ही महेंद्र कर्मा और कुछ और लोग भी लेटे हुए थे।

शुक्ल के पैर छुए और खुद को गोली मार ली

इनमें कुछ घायल भी थे। थोड़ी ही देर में करीब 70-80 नक्सलियों का एक दस्ता गाड़ियों के पास आ गया। वे यह देख रहे थे कि जमीन पर पड़े लोगों में कौन जिंदा है और कौन नहीं? जिंदा लोगों को जमीन पर पेट के बल लेटने और सिर न उठाने को कहा जा रहा था। सिर उठाने वालों को गोली मारी जा रही थी। वे माओवाद जिंदाबाद के नारे लगाने के साथ गालियां भी बक रहे थे। कुछ की भाषा हमें नहीं समझ आ रही थी। शायद वे तेलुगु बोल रहे थे। बचने की कोई संभावना न देख हम बोले, सरेंडर कर रहे हैं।

साल भर पहले भी इस वजह से चर्चा में था सुकमा

इस पर उन्होंने कहा कि हमारे साथ जंगल में चलो। वे हमें अंदर ले गए। वे जान गए थे कि हमारे साथ महेंद्र कर्मा भी हैं, फिर भी उन्होंने एक बार फिर पूछा कि कर्मा कौन है? कर्मा जी ने बिना किसी हिचकिचाहट कहा, मैं हूं कर्मा। उन्होंने यह भी कहा कि बाकी सबको छोड़ दो, लेकिन उन्होंने हम सबको लेट जाने को कहा और फिर कर्मा जी को गोलियों से छलनी कर दिया। मुझे लगता है कि उन्हें 70-80 गोलियां मारी गई होंगी। हम लोगों को लगा कि अब हमारी भी बारी है।

पटेल का सरपंच से प्रदेश अध्यक्ष तक का सफर

मैंने कहा कि आखिर हमें क्यों मार रहे हो? मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता हूं और डॉक्टर भी हूं। मैंने बस्तर में भी काम किया है। इस पर उन्होंने कहा कि यह पहले बताना चाहिए था। मैंने पानी मांगा तो हिमालयन वाटर की बोतल से मुझे थोड़ा पानी दिया गया। मैंने गौर किया कि इस ब्रांड का पानी तो आमतौर पर हवाई अड्डों पर काफी महंगी दर पर मिलता है। ज्यादातर नक्सली 20-25 साल के बीच के थे। उनमें सें कुछ लड़कियां भी थीं। उनके कमांडर ने मेरे पैर से खून बहता देखकर एक नक्सली लड़की से कहा कि डॉक्टर साहब को इंजेक्शन लगा दो। उसने मुझे दो इंजेक्शन लगाए। कुछ देर बाद उन्होंने हम लोगों को जाने दिया।

गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में शनिवार को कांग्रेस पार्टी के काफिले पर हुआ नक्सली हमला इतना जबरदस्त था कि काफिले में मौजूद सुरक्षा गार्ड एकदम असहाय दिखे। हालांकि, वे जितना लड़ सकते थे, बहादुरी से उतना लड़े।

वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल का सुरक्षा गार्ड भी आखिरी दम तक बहादुरी से लड़ता रहा और जब उसकी गोली खत्म हो गई तो उसने शुक्ल का पैर छूकर माफी मांगी और अंतिम गोली खुद को मार ली। शुक्ल की सुरक्षा में तैनात गार्ड ने उन्हें नक्सलियों से बचाने के लिए जान लड़ा दी। लेकिन थोड़ी ही देर में उसकी गोलियां खत्म हो गई। जब उसने देखा कि उसके पास अंतिम गोली बची है और अब वह अपना फर्ज निभाने के लिए और कुछ नहीं कर सकता तो विद्याचरण शुक्ल से उनकी सुरक्षा नहीं कर पाने कि लिए पैर छूकर माफी मांगी और अपने पास बची आखिरी गोली खुद को मार ली। अब तक नक्सलियों की गोली से शुक्ल घायल हो चुके थे।

बाकी नेताओं की सुरक्षा में तैनात जवानों ने भी नक्सलियों से लोहा लेते हुए जवाबी फायरिंग की, लेकिन नक्सलियों की संख्या, उनकी तैयारी और भारी मात्रा में हथियार के मुकाबले वे उनपर काबू नहीं कर सके।

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