मुंबई। मुंबई एक तरफ देश में आरटीई अधिनियम के तहत बच्चों को शिक्षा पाने का कानूनी अधिकार है, दूसरी तरफ अनापशनाप बढ़ती हुई स्कूली फीस ने विवश अभिभावकों को सामान्य तौर पर नामुमकिन नजर आने वाले विकल्पों को भी अपनाने के लिए मजबूर कर दिया है। स्कूल जाते तीन बच्चों की ऐसी ही एक मजबूर मां ने अपने लाडलों की पढ़ाई जारी रखने के लिए निरंकुश निजी स्कूल की फीस चुकाने की खातिर तीन लाख रुपये में अपनी कोख का ही सौदा कर डाला। इस समय यह 30 वर्षीय मां आठ महीने की गर्भवती है।
बिडंबना! जन्म के बाद यह मां अपने इस अंश को पैसे के बदले विदेशी दंपति को सौंप देगी। स्कूल की फीस नहीं चुका पाने के कारण रागिनी (काल्पनिक नाम) के एक बेटे को कुछ समय पहले स्कूल से निकाल दिया गया। इसके बाद उसके सिर पर बाकी बच्चों को स्कूल से निकाले जाने की तलवार झूल रही थी। उसने कई परिचितों से मदद मांगी। उसने बैंकों के भी काफी चक्कर लगाए। हर तरफ से निराश होने के बाद रागिनी ने सरोगेट मदर बनने का फैसला किया। रागिनी के तीनों बच्चों की सालाना फीस करीब 30 हजार रुपये है। वह अपने एक बेटे की तरह बाकी दोनों बच्चों को भी स्कूल से निकाले जाते हुए नहीं देखना चाहती थी।
इसी दौरान रागिनी की एक दोस्त ने बताया कि वह अपने अंडाणु मां बनने में असमर्थ महिला को डोनेट कर दे, लेकिन इससे मिलने वाली राशि काफी कम थी। इसके कुछ समय बाद किसी ने रागिनी को सरोगेसी और अच्छे भुगतान के बारे में बताया। हालांकि, सरोगेट मदर बनने का अंतिम फैसला लेने में रागिनी को दो महीने का वक्त लगा, क्योंकि उसका पति इसके लिए तैयार नहीं था। अपने बच्चों की पढ़ाई सुचारू रखने की जिद पर अड़ी रागिनी ने आखिरकार फैसला ले ही लिया। रागिनी पढ़ाई की अहमियत को अच्छे से समझती है, क्योंकि उसके माता-पिता ने उसके छह भाइयों को तो पढ़ाना जरूरी समझा, लेकिन उसे और उसकी बहन को घर पर ही रखा। वह जानती है कि अनपढ़ व्यक्ति ताउम्र गरीबी के दलदल में ही फंसा रहता है। रागिनी का कहना है कि वह पहली बार ऐसे अनुभव से दो-चार होगी, लेकिन अपने बच्चों के लिए भी कुछ भी करने को तैयार है।
उसने कहा कि मेरा छोटा बेटा मुझसे स्कूल बैग, किताबें और यूनीफॉर्म मांगता है और मैं उससे न नहीं कह पाती। लिहाजा, जब उन्होंने मुझसे सरोगेसी के लिए पूछा तो मैंने इन्कार नहीं किया। रागिनी एक कमरे के घर में रहती है, जिसे तुरंत मरम्मत की दरकार है,उसे सिर्फ अपने बच्चों की फीस चुकाने की धुन है। डॉ. गोरल गांधी ने बताया कि सरोगेट मदर को लेकर हर अस्पताल की नीति अलग है। बच्चा लेने वाले दंपति को महिला से मिलने और बात करने की अनुमति दी जाती है। उनके मुताबिक, ज्यादातर गरीब तबके की महिलाएं ही सरोगेट मदर बनने के लिए आगे आ रही हैं।