नई दिल्ली । मुगल बादशाह शाहजहां मुमताज महल की तरह अन्य बेगमों को भी बेइंतहा प्यार करते थे। यह बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि उन्होंने बेगम एजुनिशा को बतौर प्यार की निशानी शीशमहल भेंट किया था। वर्ष 1653 में निर्मित और शालामार गांव में स्थित यह शीशमहल आज जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। आज हालात ऐसे हो गए हैं कि यहां से कीमती पत्थर तक चोरी हो गए हैं। यह इलाका शालीमार बाग विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है।
वर्षो से सरकारी उपेक्षा का शिकार शीशमहल की दशा सुधारने के लिए वर्ष 2011 में भारतीय पुरातत्व विभाग ने योजना तैयार की थी। इसके तहत शीशमहल के बगीचों के साथ महल को भी संवारा जाना था। 15 लाख रुपये की लागत से चारदीवारी के निर्माण के बाद यह योजना आगे नहीं बढ़ सकी। योजना को पूरा करने के लिए पुरातत्व विभाग को केंद्र से बाकी का फंड ही नहीं मिला। महल की दीवारें व गुंबद क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। ऐतिहासिक कुआं भी पूरी तरह से सूख चुका है और इसमें पत्थर ही पत्थर भरे हैं। पुरातत्व विभाग ने महल की खुदाई कर पत्थर निर्मित सिंहासन को भी वर्षो पहले यहां से हटा दिया था। सिंहासन को उस जगह की मरम्मत करने के इरादे से कुछ समय के लिए हटाया गया था। सिंहासन को जिस जगह पर फिर रखा गया वहां से वह कब गायब हो गया, इसकी जानकारी किसी को भी नहीं है।
महल की देखरेख के लिए केवल एक कर्मचारी है : ग्राम विकास सभा के अध्यक्ष डीसी सैनी ने बताया कि महल में शाही स्नान के लिए तालाब एवं बुर्ज (शाही स्नान के बाद कपड़े बदलने का स्थान) का जीर्णोद्धार होना था। इसके लिए कीमती पत्थर मंगाए गए थे, जोकि चोरी हो गए हैं।
पुरातत्व विभाग द्वारा यहां से हटाए गए प्राचीन पत्थरों की भी चोरी हो रही है। ग्राम विकास सभा के सदस्य हरिराम सैनी ने बताया कि कीमती पत्थरों के चोरी के संबंध में पुलिस ने मामला तक दर्ज नहीं किया। महल की देखरेख के लिए एक कर्मचारी है। वह शाम होते ही चला जाता है। ऐसे में महल की सुरक्षा के कोई विशेष प्रबंध नहीं हैं। उन्होंने बताया कि यहां अक्सर विदेशी पर्यटक आते थे, लेकिन महल की जीर्ण-शीर्ण हालत के चलते उनका भी आना बंद हो गया है।
खूबसूरती में चार चांद लगाता था हमाम
मुगल बादशाह शीशमहल में कभी दरबार लगाते थे। महल की दीवारों पर सुंदर नक्काशी, हस्तकला, शिल्पकारी व चित्रकारी हुई थी। इसके धुंधले निशान यहां आज भी देखे जा सकते हैं। यहां पर एक हाथीखाना और बगीचा भी था। महल का निर्माण लाल और भूरे रंग के पत्थरों से किया गया था। यहां हमाम में कभी 25 फव्वारे थे, जोकि इसकी खूबसूरती बढ़ाने के साथ हमाम को भी भरते थे।
औरंगजेब की ताजपोशी का गवाह है शीशमहल
शाहजहां के बेटे औरंगजेब को यह शीशमहल इतना पसंद था कि उसने अपनी ताजपोशी के लिए इसे ही चुना था। शीशमहल में शाहजहां गर्मियों में अपनी बेगमों के साथ यहां रहने आते थे। इसके बाद औरंगजेब ने भी इसे पसंदीदा आरमगाह के रूप में विकसित किया। औरंगजेब ने लालकिले से शीशमहल तक गुप्त रूप से आने-जाने के लिए 20 किलोमीटर लंबी सुरंग बनवाई थी। वर्षो पहले ही सुरंग जमीन में धंसकर तहस-नहस हो गई। आज यहां पर केवल वह जगह ही शेष है, जो कभी सुरंग का प्रवेश द्वार हुआ करती थी।