नई दिल्ली [राजकिशोर]। एक दशक से भी ज्यादा अरसे से उत्तर प्रदेश में हाशिए पर जा चुके दोनों प्रमुख राष्ट्रीय दलों कांग्रेस और भाजपा को इस लोकसभा चुनाव में खासी उम्मीदें हैं। खास बात है कि दोनों की इस उम्मीद के केंद्र में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। भाजपा को मोदी के करिश्मे पर भरोसा है तो कांग्रेस की उम्मीदें मुख्य रूप से मोदी के विरोध में धु्रवीकरण की संभावनाओं पर टिकी हुई हैं। इसीलिए, कांग्रेस ने सपा व बसपा के बजाय सीधे भाजपा खासतौर से मोदी के खिलाफ आक्रामक अभियान की रणनीति बनाई है।
जवाब में भाजपा समाजवादी पार्टी और कांग्रेस दोनों को मुस्लिम तुष्टीकरण के मुद्दे पर निशाने पर लेगी। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में 22 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया था। मगर विधानसभा चुनावों में यह प्रदर्शन नहीं दोहरा सकी। अब राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश की कमान कर्नाटक में पार्टी की विजय के सूत्रधार रहे कांग्रेस महासचिव मधुसूदन मिस्त्री को सौंपी है। मिस्त्री लंबे अरसे से उत्तर प्रदेश में ही काम कर रहे थे।
मिस्त्री की पहली कोशिश है कि इन चुनावों में मुख्यतौर से भाजपा को ही निशाने पर लिया जाए। सूत्रों के मुताबिक, टिकट वितरण में उत्तर प्रदेश के सामाजिक समीकरणों का ध्यान रखने के साथ-साथ केंद्र में नरेंद्र मोदी ही होंगे। कांग्रेस का पूरा अभियान इसी संदेश के इर्द-गिर्द घूमेगा कि अगर भाजपा यानी नरेंद्र मोदी को रोकना है तो कांग्रेस ही विकल्प है। सपा या बसपा उसका विकल्प नहीं हो सकते।
कांग्रेस के प्रबंधक मान रहे हैं कि 2009 की तरह यदि यह फार्मूला कारगर हुआ तो ही वह अपने पुराने आंकड़े को बचा सकती है। भाजपा के निशाने पर कांग्रेस और सपा दोनों समान रूप से होंगी। भाजपा के उत्तर प्रदेश के प्रभारी महासचिव अमित शाह भी मिस्त्री की तरह गुजरात से हैं। संकेत हैं कि टिकट वितरण में शाह नरेंद्र मोदी की तरह ही गुजरात फार्मूला लागू कर सकते हैं। सामाजिक समीकरणों के साथ युवा चेहरे लाने के साथ-साथ मुस्लिम तुष्टीकरण ही भाजपा का मुख्य मुद्दा होगा।
साथ ही विकास के तरसते उत्तर प्रदेश की इस छिपे दर्द को भी भाजपा मोदी के चेहरे के सामने नया सपना दिखाएगी। इसकी काट के लिए मिस्त्री उत्तर प्रदेश में गुजरात का भ्रष्टाचार और विकास की अधूरी तस्वीर दिखाएंगे।