बसुकेदार [अमित ठाकुर]। शुक्र है केदारनाथसे बचकर आए सभी यात्री यहां से सुरक्षित निकल गए, वरना सड़क को देखकर तो दिल बैठ जाता है। ऐन वक्त पर हजारों लोगों की जान बचाने वाले 70 किलोमीटर लंबे गुप्तकाशी-मयालीमार्ग पर सफर करते हुए रूह कांप उठती है।
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दरअसल, केदारनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग क्षतिग्रस्त होने के बाद सेना ने तो किसी तरह मरम्मत कर इस वैकल्पिक रास्ते को आने-जाने लायक बना दिया, लेकिन जिस लोक निर्माण विभाग पर इसकी जिम्मेदारी थी, उसे निर्माण के तीस साल बाद भी इस ओर झांकने की याद तक नहीं आई।
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केदारघाटी में बरपे कहर पर किसी का वश नहीं था, लेकिन जो हमारे वश में था, उस पर कितने खरे उतरे, इसकी परत उधड़ने लगी हैं। गुप्तकाशी-मयाली मार्ग इसका उदाहरण भर है। केदारनाथ में बचाव अभियान के दौरान फंसे यात्रियों को हेलीकाप्टर से गुप्तकाशी लाया गया तो कुछ को पैदल ही गौरीकुंड से सोनप्रयाग होते हुए गुप्काशी। यहां से वाहनों में बिठाकर यात्रियों को टिहरी के रास्ते गुप्तकाशी भेजा गया।
वर्ष 1982 में तैयार की गई सड़क पर इसके बाद कभी मरम्मत के नाम पर पैचवर्क तक नहीं हुआ। तकरीबन 45 गांवों की लाइफलाइन कही जाने वाली यह सड़क हर कदम पर जिंदगी का इम्तेहान लेती प्रतीत होती है। जगह-जगह पहाड़ों से बरसते पत्थर और बारिश से फूटे झरनों से पूरी सड़क छलनी-छलनी है। इस सड़क पर प्रतिदिन वाहन चलाने वाले विक्रम संचालक कहते हैं कि ‘साहब पहाड़ के रास्तों पर यूं तो जिंदगी का भरोसा नहीं, लेकिन यहां तो जान हथेली पर समझो।’
बसुकेदार के रहने वाले भानुप्रकाश भट्ट, विजयपाल भंडारी कहते हैं रास्ता ठीक होता तो स्थिति कुछ और ही होती। दूसरी ओर लोक निर्माण विभाग (खंड रुद्रप्रयाग) के अधिशासी अभियंता अरुण पांडे कहते हैं ‘इस मार्ग की मरम्मत के लिए अभी प्राक्कलन ही तैयार नहीं हो पाया है।’ साफ है कि ऐसे में जिंदगी बाबा केदार के हाथ में ही समझो।