बरेली। केदारनाथ और हेमकुंड साहिब के कपाट खुलवाने के लिए गौरीकुंड गई सेना की 883 एनिमल ट्रांसपोर्ट बटालियन की टीम रविवार को उत्तराखंड से सुरक्षित लौट आई। टीम पांच मई को बरेली से रवाना हुई थी।
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एनिमल ट्रांसपोर्ट बटालियन की यह टीम रविवार सुबह बरेली पहुंची। टीम का निर्देशन नायब सूबेदार आरएस गुजर कर रहे थे। बकौल गुजर, 14/15 जून की रात जब बारिश शुरू हुई तो नदी की धार बढ़ने लगी। हम लोगों को गंभीरता का आभास होने लगा।
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16 जून की सुबह पानी काफी बढ़ गया तो हम लोग आसपास के लोगों को लेकर ऊपर चढ़ गए। हमारा सारा सामान नीचे ही छूट गया।
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16 जून की शाम को हम राशन आदि लेने के इरादे से नीचे की ओर बढ़े तो देखा कि हमारा बेस कैंप बह चुका था। यह जगह मुंड कटिया थी, जहां पर भगवान शिव ने गणेश जी का सिर काटा था। हमारा राशन-पानी पड़ोस की एक बिल्डिंग में था, उसके चारों ओर पानी था। लग रहा था बिल्डिंग किसी भी वक्त जमींदोज हो जाएगी, तो हम लोग उसमें नहीं गए। अंदेशा सही साबित हुआ और अगले दिन वह बिल्डिंग भी पानी में बह गई।
16 जून को ही हम लोग पहाड़ों पर चढ़ गए थे और सारा राशन तबाही की भेंट चढ़ चुका था। 17 जून की सुबह लगभग दो सौ फिट की ऊंचाई से बादल फटा और फिर सब कुछ तहस-नहस हो गया। जो भी सामने आया, पानी की तेज धार उसे बहा ले गई। ऊपर आ जाने की वजह से हम सुरक्षित बच गए और हमारे साथ ही ऊपर आए लोग भी। लेकिन अब भूख अपना असर दिखाने लगी थी। 19 जून तक हमें कुछ भी खाने को नहीं मिला। लेकिन सौभाग्य से 19 जून को ही सेना के लोगों ने हमे खोज निकाला और हेलीकॉप्टर से खाने-पीने का सामान गिराया गया। उससे हमारी और अन्य लोगों की जान बची।
तीन दिन में 125 किमी चले पैदल
इसके बाद निकलने की योजना बनाई तो दूसरी मुसीबत मुंह फैलाए तैयार खड़ी थी। सोनप्रयाग का पुल टूट चुका था। इसके बाद 19 जून से पैदल सफर शुरू किया। दुर्गम पहाड़ियों और टूटे हुए रास्तों से होते हुए तीन दिन बाद हम लोग रुद्रप्रयाग जिले के गांव कैला पहुंचे। हमारा यह सफर 125 किमी.का था। इसके बाद वहां से 25 जून को सेना की गाड़ी मिली और रविवार को बरेली पहुंच गए।
बनारस की महिला की बचाई जान
रास्ते में पड़े नाले में बनारस निवासी खुशबू नाम की महिला मिली। उसके कपड़े फट चुके थे तो हम लोगों ने अपना ट्रैक सूट दिया और कैला गांव ले आए। महिला की बेटी नमत श्री और पति कमलेश त्रासदी के शिकार होकर लापता थे।