भारतीय पहलवान सुशील कुमार लंदन ने ओलंपिक में 66 किलोग्राम वर्ग की फ्री स्टाईल कुश्ती में क्वाटर फाइनल में प्रवेश कर लिया है. उन्होंने बीजिंग ओलंपिक में स्वर्ण पदक विजेता रहे तुर्की के रमजान शाहीन को पछाड़ा.
इस जीत के साथ सुशील कुमार ने करोड़ों भारतीयों की स्वर्ण पदक की उम्मीदों को परवान चढ़ा दिया है. लंदन ओलंपिक में पहलवान सुशील कुमार भारत के लिए पदक की अंतिम आशा हैं. सिर्फ आम भारतीयों की ही नहीं सुशील के कंधों पर अपने गुरु सतपाल की उम्मीदों का बोझ भी है.
सुशील कुमार के साथ लंदन ओलंपिक में भारत के लिए पदक की अंतिम आशा जुड़ी हुई है. करोड़ों भारतीयों को लग रहा है कि क्या सुशील सोने का वो तमगा भारत के लिए ला पाएगें जो अब तक एक छलावे सा है.
उम्मीद के कारण
चार साल पहले बीजिंग ओलंपिक में पहलवान सुशील कुमार का कांस्य पदक भारतीय कुश्ती में चमक डालने के लिए काफी साबित हुआ था.
यकीनन सुशील पर इस बार सिर्फ करोड़ों भारतीयों की उम्मीदों का ही भार नहीं होगा. उनके जहन में अपने गुरु सतपाल के गुरुजी का सपना भी है. सपना किसी भारतीय पहलवान के गले में ओलंपिक का गोल्ड मेडल देखने का है.
ओलंपिक रवाना होने से पहले बीबीसी से बातचीत में सुशील ने कहा था, “मै अपने गुरू के गुरुजी का सपना पूरा करने में कोई कसर नहीं छोडूंगा. खुद मेरे गुरु सतपाल सालों से ओलंपिक में पदक का सपना देखते आए हैं. इस बार भी उन्होंने हमें तैयार करने के लिए दिन-रात एक कर दिए हैं. ”
एक बार गुरु हनुमान ने कहा था कि उनकी आत्मा को तभी शांति मिलेगी जब कोई भारतीय पहलवान ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतेगा. सतपाल ने भी कई मौकों पर अफसोस जताया था कि वह अपने गुरुजी का सपना पूरा नहीं कर पाए.
जबरदस्त ट्रेनिंग
सुशील ने बताया कि ओलंपिक के लिए उन्होंने जबरदस्त ट्रेनिंग की है.
गुरू सतपाल ही सुशील की ट्रेनिंग का पूरा कार्यक्रम तैयार करते हैं. ट्रेनिंग को कई सत्र में बांटा गया था.
सुशील ने ने ओलंपिक के पहले कहा था कि “उन्होंने कहा कि उन पर कोई दबाव नहीं है. क्योंकि दबाव में रह कर वे अच्छा नहीं कर पाएंगे. लेकिन उनकी कोशिश अपना सौ फीसदी प्रदर्शन करने की रहेगी.”
सुशील को हर मुकाबले के पहले उनके कोच ट्रेनिंग में बताते हैं कि प्रतिद्वंद्वी पहलवान के खिलाफ कैसी तैयारी करनी है. उन्हें उनके वीडियो दिखा कर उनकी कमजोरियों और मजबूती के बारे में बता कर रणनीति तैयार करते हैं. ”
चोट आम बात
सुशील को चोटिल होने के कारण क्वालिफाई करने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा. बीजिंग ओलंपिक से भी वह कंधे पर नीले निशान से साथ लौटे थे. सुशील का मानना है कि मौजूदा कुश्ती में चोटिल होना अब आम बात है.
सुशील ने बताया, “कुश्ती में अब बॉक्सिंग से भी ज्यादा चोटिल होने का खतरा है. क्योंकि बॉक्सिंग में आजकल टच के प्वाइंट हैं. अगर आप ध्यान से देखेंगे तो जो पहलवान विक्ट्री स्टैंड पर खडे़ होते हैं, अधिकतर के कहीं न कहीं चोट दिखाई देती है. लेकिन पहलवान इसका भी आनंद उठाते हैं क्योंकि यह कुश्ती का हिस्सा है.”
सुशील ने इस साल अप्रैल में चीन के शहर तियुआन में वर्ल्ड क्वालिफाई टूर्नामेंट में 66 किलोग्राम भार वर्ग का गोल्ड मेडल जीत कर लंदन ओलंपिक का टिकट हासिल किया था.