जयपुर, राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश विरेन्द्र सिंह सराधना ने श्रम न्यायालय अजमेर के आदेश को निरस्त करते हुए प्रार्थी रामचन्द्र माली के सेवा समाप्ति आदेश को औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25 एफ का उल्लंघन मानते हुए निरस्त करने के आदेश दिये तथा प्रार्थी को सेवा में बहाली के बदले 75,000/- रूपये क्षतिपूर्ति की राशि 4 सप्ताह में देने के आदेश दिये तथा चार सप्ताह में उक्त आदेश की पालना नहीं करने पर 12 प्रतिशत ब्याज की राशि लेबर कोर्ट के निर्णय की दिनांक 18-6-1997 से देने के आदेश दिये। उल्लेखनीय है कि प्रार्थी ने बैंक ऑफ बडौदा की ग्राम-कीरव, जिला अजमेर में दिनांक 21-5-1992 से 22-11-1993 तक बिना किसी व्यवधान के कार्य किया तथा प्रार्थी को मौखिक आदेश से सेवा से हटा दिया गया। प्रार्थी ने उक्त आदेश को श्रम न्यायालय अजमेर के समक्ष चुनौती दी। बैंक की तरफ से यह तर्क दिया गया कि प्रार्थी की नियुक्ति तदर्थ रूप से की गई थी तथा उसकी नियुक्ति में कोई विज्ञापन जारी नहीं किया गया था ऐसी स्थिति में उसे पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है तथा ऐसे मामले में औद्योगिक विवाद अधिनियम की पालना आवश्यक नहीं है। श्रम न्यायालय अजमेर द्वारा प्रार्थी का आवेदन यह कहते हुए खारिज कर दिया कि प्रार्थी ने 240 दिन से अधिक कार्य किया है। परन्तु उसकी नियुक्ति बिना विधिक प्रक्रिया अपनाये की गई है, अतः उसे पद पर बने रहने का अधिकार नहीं है ऐसे में औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25 एफ की पालना करना आवश्यक नहीे है। प्रार्थी ने उक्त आदेश को उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी। प्रार्थी के वकील डी. पी. शर्मा का तर्क था कि प्रार्थी की सेवा समाप्ति से पूर्व औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25 एफ की पालना नहीं की गई है। अतः प्रार्थी के सम्बन्ध में सेवा समाप्ति आदेश मनमाना एवम् विधि विरूद्ध है। प्रार्थी पुनः सेवा में सभी परिलाभो सहित बहाल होने का हकदार है। मामले की सुनवाई के पश्चात् न्यायालय ने आदेश पारित किया कि विपक्षी बैंक के द्वारा औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25 एफ की पालना नही की गई है, इस कारण सेवा समाप्ति आदेश अवैध है तथा सेवा में बहाली के बदले माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुरूप न्यायालय ने क्षतिपूर्ति के रूप में 75,000/- रूपये की राशि 4 सप्ताह में देने तथा आदेश की पालना नहीं करने पर प्रार्थी को 12 प्रतिशत ब्याज की राशि लेवर कोर्ट के निर्णय की दिनांक 18-6-1997 से देने के आदेश दिये।