डॉ. नीरज दइया का कविता-पाठ

dr neeraj daiya ka kavita-path (1)बीकानेर / राजस्थानी और हिंदी के वरिष्ठ कहानीकार-व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा ने कहा कि नीरज दइया की कविताओं में घर-परिवार और साहित्य समाज के चित्रों में निरपेक्ष भाव से सहज-सरल कवि-मन को देखा जा सकता है। वे कविता में नए प्रयोगों और सहजता-सरलता में मार्मिकता के लिए अपनी पीढ़ी में उल्लेखनीय और वरेण्य कवि के रूप में सम्मान के अधिकारी है। वे मुक्ति संस्था परिसर में आयोजिय डॉ. नीरज दइया के एकल राजस्थानी काव्य-पाठ के अवसर पर अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि मुझे जिन सृजनधर्मियों से बेहद उम्मीद रहती रही है उनमें से एक दइया का नाम मैं प्रमुखता से लेता रहा हूं।
सांस्कृतिककर्मी एवं कवि राजेंद्र जोशी ने कहा कि कविताओं में कवि का अपना अलग मुहावरा है जो राजस्थानी भाषा में ही संभव है। नीरज दइया की राजस्थानी भाषा, कविता और कवियों को लेकर जो कविताएं है उनमें सरलता-सहजता के साथ सूक्ष्मता भी देखी जा सकती है। प्रख्यात कवि-कथाकार मालचंद तिवाड़ी ने कहा कि नीरज दइया अपनी कविताओं में संवाद को लेकर कविता संभव करते हैं, संवाद के साथ-साथ प्रभावी व्यंग्य-बोध भी मोहक है परंतु कवि को चाहिए कि वह कविता के अन्य अनेक घटकों पर भी हाथ अजमाते हुए विभिन्न भंगिमाओं द्वारा राजस्थानी कविता को समृद्ध करेंगे।
कवि-कहानीकार श्रीलाल जोशी ने कहा कि कविताओं में पाठ के स्तर पर अनेक मार्मिक प्रसंग उजागर होते हैं वहीं कुछ कविताओं में भाषा के स्तर पर चूंकी खुद आलोचक हैं तो आलोचक के दृष्टिकोण से भी अपनी कविता-यात्रा को जांचते हुए इसे सतत रखने की आवश्यता बतायी। वरिष्ठ कहानीकार एवं मरवण के संपादक भंवर लाल ‘भ्रमर’ ने कहा कि यह बेहद हर्ष का विषय है कि डॉ. नीरज दइया विविध विधाओं में समानाधिकार से सृजन-परंपरा को समृद्ध करने में सक्रिय बने हुए है। वे आलोचना के क्षेत्र में जितने चर्चित हैं मैं कामना करता हूं कि उनता ही यश उनको उनकी कविता के लिए मिले। कवि-कथाकार नवनीत पाण्डे ने कहा कि जब एक रचनाकार विविध विधाओं में एक साथ सक्रिय होता है तब उस रचनाकार की केंद्रीय विधा के विषय में विर्मश किया जाना चाहिए और मुझे लगता है कि नीरज दइया के आलोचकीय रूप उनकी कविता-यात्रा को समर्थ बनाता है, वे मूलतरू अच्छे कवि ही हैं और यह होना उनकी आलोचना को संवेदनशीलता से पोषित रखता है।
कार्यक्रम में आलोचक-कवि नीरज दइया ने शीघ्र प्रकाश्य कविता-संग्रह ‘पाछो कुण आसी’ से की चयनित कविताओं में छोड़ो जावण दो, छोड़ो जावण दो, मायनो चावूं, अरदास, मिरगलां नै घोखो, म्हैं उडीकूं कविता, ना मांगजै इण पेटै कोई हिसाब, संपत, घर बाबत, थाळी अर हथाळी, थे ओळखो तो हो कविता तथा पाछो कुण आसी जैसी छोटी एवं लंबी कविताओं के साथ धीरज,प्रेम, नाटक, इंदर-धनुस, मूडै पाटी, निरायंत, ऊंठ, चालो माजी कोटगेट जैसी गद्य-कविताएं का पाठ प्रस्तुत किया।
राजेन्द्र जोशी
सचिव 9829032181

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