क्षमा से बड़ा भूषण कोई नहीं
इस मौके पर साध्वी रमिला कंवर ने कहा कि क्षमा से बड़ा भूषण कोई नहीं होता। जो दूसरे को जीते वो वीर होता है और जो अपने आपको जीते वो महावीर होता है। तपस्या और व्रत अपने आपको जीतने का उपाय है। यह लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। इससे मानव जीवन सफल होता है।
साध्वी सुशिला कंवर ने कहा कि मनुष्य समाज में सबके साथ, सबके बीच अपना जीवनयापन करता है। इस जीवन यात्रा में जाने अनजाने पारस्परिक विचारों में तालमेल के अभाव में दूरियां बढ़ जाती हैं। लेकिन जब व्यक्ति का विवेक जग जाता है, तब उसकी समझ में आता है कि हर टक्कर अर्थात अस्पष्टता का वातावरण लौटकर वापस हमें ही उपेक्षा का शिकार करता हैं। विवेक के अभाव में व्यक्ति ईट के बदले पत्थर के सिद्धांत पर चलता हैं।
प्रेरणा मानकर उससे लाभ उठाते हुए आगे के लिए सावधान हो जाए, तो निश्चित ही उसे अपने जीवन में सामाजिक उपेक्षा का शिकार नहीं होना पड़ेगा। लेकिन ऐसा तभी होगा, जब व्यक्ति को अपनी गलती का अहसास हो जाए। साध्वी समीक्षाश्री ने कहा कि मानवीय चेतना में देवत्व का विकास गलती न दोहराने के निर्णय की दृढ़ता से होता हैं। इसलिए प्रतिवर्ष यह दिन अपने आप में महत्वपूर्ण होता है। श्रावक संघ के देवेंद्र सिंह व अनिल लोढ़ा ने आभार ज्ञापित किया।
