निष्पक्ष नही हो रहा अनुसंधान
फ़िरोज़ खान बारां, ( राजस्थान ) 07 जुलाई। गत 25 जून 2016 को मेरे भाई सोनू गोयल निवासी देवरी की जघन्य हत्या कर दी गई थी, जिसकी प्राथमिकी रिपोर्ट मेरे द्वारा राजकीय चिकित्सालय, बारां में रात्रि 10.30 बजे उसी दिन दे दी गई थी। पुलिस ने नामजद अपराधियों विरेन्द्र सिंह सिकरवार, नरेष सिकरवार, बल्लू उर्फ बृजपाल सिंह, कलूआ उर्फ इन्द्रपाल, बंटी उर्फ महेन्द्रपाल, राघव, गौरव तथा 5-6 अन्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जांच कार्यवाही प्रारंभ की परंतु राजनैतिक दबाव के कारण पुलिस द्वारा कोई कार्यवाही नही करने के कारण मैं अपने मृत भाई के पार्थिव शरीर को लेकर राजकीय चिकित्सालय बारां पर 8 दिन तक रहा। मेरे द्वारा जब पुलिस अधिकारियों द्वारा किए जा रहे अनुंसधान पर कोई भरोसा नही रहा तथा उनके द्वारा राजनैतिक दबाव के कारण जो कार्यवाही की जा रही थी वह केवल मुल्जिमान को बचाने के लिए की जा रही थी न कि अपराधियों को पकड़ने के लिए। इसी कारण मैंने एक प्रार्थना पत्र माननीय अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्टेªट शाहबाद को इस आषय की दी थी कि पुलिसथाना कस्बाथाना की ओर से प्रकरण में अनुसंधान अधिकारी व थानेदार श्री उमेष मेनारिया, पुलिस महानिरीक्षक कोटा रेंज, जिला पुलिस अधीक्षक श्री दुष्टदमन सिंह नामजद अभियुक्तगणों को सरकार के प्रभाव में बचाने का पूर्ण प्रयास कर रहे है और अपराधियों को संरक्षण दे रखा है। पुलिस द्वारा जो अनुसंधान किया जा रहा है उसमें घटना के 7 दिन गुजर जाने के पश्चात भी प्राथमिकी रिपोर्ट में नामजद अपराधियों में से केवल एक अभियुक्त के अतिरिक्त अन्य को गिरफ्तार नहीं किया गया है। यह प्रार्थना पत्र पेष होने तक मुझ स्वंय प्रार्थी के बयान नही लिए गए। इस प्रकरण में मेरे द्वारा श्री दुष्टदमन सिंह जिला पुलिस अधीक्षक बारां के भाजपा जिलाध्यक्ष श्री नरेष सिंह सिकरवार के साथ संबंध न्यायालय के सामने रखे। इन सभी तथ्यों पर न्यायालय ने मेरे प्रार्थना पत्र पर अनुसंधान पत्रावली न्यायालय में तलब कर पुलिस महानिरीक्षक कोटा को निर्देष देकर न्यायालय में तलब किया। मेरे अभिभाषक श्री रितेष भारद्वाज तथा अपर लोक अभियोजक की बहस सुनने के बाद इस केस डायरी का गहनता पूर्वक अवलोकन कर माननीय न्यायालय अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्टेªट शाहबाद द्वारा दिनांक 06 जुलाई 2016 को अपने आदेष में न्यायिक राय दी, जहां अनुसंधान को पक्षपात पूर्ण माना है जो निम्नानुसार है:-
‘‘उपरोक्त सभी पक्षों की बहस सुनने एवं मनन करने के पश्चात प्रार्थना पत्र का सूक्ष्मता से अवलोकन किया गया। प्रार्थना पत्र में वर्णित तथ्यों एवं पुलिस अधीक्षक, सांसद राजस्थान सरकार, मुख्यमंत्री सभी पर खुलेआम आरोप लगाया गया है। यह तथ्य भी स्पष्ट है कि इस प्रकरण का अनुसंधान सीधे जिला पुलिस अधीक्षक बारां के निर्देषन में किया जा रहा है। केस डायरी में संलग्न उनके नोटस है। यह तथ्य भी निर्विवाद है कि जघन्य हत्या हुई है मृतक के 20-25 गंभीर व सामान्य चोटे है जिसमें उनके द्वारा जो हथियार प्रयुक्त किए हुए होंगे, इस संभावना से इंकार नही किया जा सकता है। नामजद अभियुक्तगण की प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज है। प्रथम सूचना दर्ज विलम्ब से नही हुई है इसके बावजूद भी हत्या जैसे जघन्य अपराध में समय पर गवाहान के बयान धारा 164 दण्ड प्रक्रिया संहिता, नामजद मुलजिमान से पूछतार, गिरफ्तारषुदा मुलजिमान से आज तक एक लाठी और एक मोबाइल बरामद करना, धारा 27 साक्ष्य अधिनियम की उत्तला अन्य मुलजिमान को दिये जाने पर बरामदगी की कार्यवाही नही करना, जघन्य हत्या जैसे अपराध में एक ब इंस्पेक्टर जैसे रैंक के आदमी से अनुसंधान कराना, जबकि मामला जन आंदोलन का रूप ले चुका था, जघन्य हत्या जैसे अपराध मेें पुलिस अधीक्षक बारां पर मुलजिमान के संबंध में खुलेआम आरोप-प्रत्यारोप के अपने सीधे निर्देषन में सब इंस्पेक्टर रैंक के व्यक्ति से अनुसंधान कराना, परिवादी के बयान सात दिन बाद लिये जाना, अन्य गवाहान के बयान नही लिये जाना जघन्य हत्या जैसे अपराध में घटनास्थल का नक्षा मौका बनाते समय खून आलूदा मिट्टी व अन्य तकनीकी अनुसंधान नपहीं किया जाना, धीमी गति का अनुसंधान किया जाना, घटना की रिपोर्ट मिल जाने पर भी परियादी पक्ष से संपर्क नहीं करना, मृतक के बारे में सूचना प्राप्त नही करना ये सभी तथ्य जो मेरे सामने आये हैइस प्रकार के जघन्य हत्या जैसे अपराध में इस प्रकार से उपरोक्त अनुसंधान किया जा रहा है, निष्पक्ष अनुसंधान किये जाने की श्रेणी में नही माना जा सकता है। निष्पक्ष अनुसंधान भी इस प्रतिपादित सिद्वान्त पर आधारित है कि न्याय केवल सुनाना नही चाहिए बल्कि दिखना चाहिए। मेरा यह मानना है कि जब जिला पुलिस अधीक्षक बारां जैसे उच्चाधिकारी पर मुलजिमान के बचाने, संरक्षण देने जैसे आरोप लग गये हो और उस स्थिति में स्वयं जिला पुलिस अधीक्षक द्वारा अपने निर्देषन में एक सब इंस्पेक्टर रेंक के अधिकारी से जांच करवाना न केवल विधि के प्रावधानों का खुला उल्लघंनहै बल्कि नैतिक स्तर पर भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए। इस बात की पुष्टि पत्रावली में संलग्न समाचारों की प्रतियों से एवं जिला पुलिस अधीक्षक बारां द्वारा अपने निर्देषन में की जा रही जांच की नोटिंग से साबित है। जब अनुसंधान लंबित हो तो अनुसंधान के संबंध में कम से कम मुलजिमान को व्यक्तिगत रूप से किसी प्रकार का पक्ष व विपक्ष में व्यक्तव्य देना भी उचित नही है। केवल मात्र अनुसंधान अधिकारी के द्वारा यह कह देना कि निष्पक्ष जांच हो रही है, निष्पक्ष जांच करवाई जा रही है। निष्पक्षतः परिवादी पक्ष अनुसंधान/जांच में सहयोग नहीं दे रहा है। केवल कह देने मात्र से वह अपने दायित्व व जिम्मेदारी से विमुक्त नही माना जा सकता है। विधि में उनका प्रावधान है कि यदि फरियादी अपने बयान नहीं दे तो उसे नोटिस देना चाहिए, समय पर गवाहान के बयान लेने चाहिए। अनुसंधान में अपराध से संबंधित पक्ष व विपक्ष से पूछताछ करनी चाहिए, उसकी नोटिंग बनानी चाहिए। गिरफ्तारशुदा व्यक्तियों से भी गहनता से अनुंसधान करना चाहिए, ताकि अन्य मुलजिमान की सही जानकारी प्राप्त हो सके। नामजद व्यक्तियों के व्यक्तियों से अनुसंधान एवं पूछताछ करनी चाहिए इसमें किसी प्रकार से भयभीत या प्रभावित नही होना चाहिए। वह व्यक्ति कितना भी स्तर का प्रभावषाली क्योें न हो। मामले की गंभीरता को देखते हुए अनुसंधान सम्यक गति पूर्णरूपेण होना चाहिये जिससे परिवादी पक्ष आमजन में यह संदेष जावे कि निष्पक्ष जांच हो रही है परंतु केस डायरी के अवलोकन से, प्रार्थना पत्र पर दिये गये चारों पक्षों के तर्को से मेरे सामने आये तथ्यों से ऐसा प्रतीत नहीं होता है कि इस प्रकरण का अनुसंधान निष्पक्ष, बिना प्रभावित हुए किया जा रहा हो। ऐसा पुलिस केस डायरी के तथ्यों, प्रार्थना पत्र पर दिए गए चारों पक्षों के तर्को से पुष्टिकारक साबित नही होता है कि विधिक दृष्टि से इस न्यायालय को निष्पक्ष जांच/अनुसंधान कराये जाने का क्षेत्राधिकार प्राप्त है। इस प्रकार न्यायिक दृष्टांत रामलाल बनाम स्टेट आॅफ 2013 सीआरएलआर (राज0) 11 एस बी किम्रि. मिस. पीटीषन नं. 2725 आॅफ 2012 दिनांक 6.11.2012 में स्पष्ट किया गया है। अतः उपरोक्त विवेचन व विष्लेषण के आधार पर प्रार्थी/फरियादी का प्रार्थना पत्र आंषिक रूप से स्वीकार करते हुए एफआईआर संख्या 89/16 पुलिस थाना कस्बाथाना में सीबीआई जांच किये जाने का निवेदन अस्वीकार किया जाता है परंतु प्रकरण की निष्पक्ष जांच के संबंध में जो उपरोक्त विवेचन किया गया है वह निष्पक्षता से नहीं करवाने के कारण पुलिस डायरेक्टर जनरल आॅफ पुलिस, जयपुर (डीजीपी) को आदेष दिया जाता है कि एफआईआर संख्या 89/16 पुुलिसथाना कस्बाथाना का अनुसंधान सीआईडी, सीबी से करावें। आईजी कोटा रेंज कोटा के प्रतिनिधि को इस आदेष के साथ एक प्रति उन्हें वास्ते उचित कार्यवाही हेतु दी जावे। एक प्रति वास्ते आवष्यक कार्यवाही पुलिस अधीक्षक बारां को भी दी जावे। अनुसंधान अधिकारी/एपीपी/परिवादी के अधिवक्ता को नोटेट कराया जावे। प्रार्थना पत्र निस्तारित होकर बाद तकमील रिमाण्ड पेपर प्रथम सूचना रिपोट्र के साथ संलग्न हो।‘‘