राजस्थान में पर्यटन की दृष्टि से खूबसूरत शहरों के अग्रणी पायदान पर स्थित हमारे जैसलमेर की लगभग प्रत्येक पुरातात्विक सम्पदा बरबस ही पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करती है । जैसाण दर्शन आने वाले पर्यटकों को जैसाण के दो स्वरूपों के दर्शन होते है-
1. पीले पत्थरों के नक्काशीदार झरोखे,सूर्य की किरण पड़ते ही स्वर्ण सा चमकता सम्पूर्ण शहर,शहर के बीचों बीच अपने निन्यानवे रक्षक रूपी बुर्जों के बीच भाटी शासकों के अदम्य साहस का गुणगान करता सोनार दुर्ग,बीच बाजार में सब्जी बेचने वाली महिलाओं द्वारा पूर्ण ग्रामीण परिवेश की झलक, बाजार में ही स्थित दीवान की हवेली,पटुवा हवेली की नक्काशी, गड़ीसर जैसा रमणीक स्थान,व्यास छतरी,बड़ाबाग़ स्थित महारावल परिवार की छतरियां आदि अनेक दृश्य आने वाले पर्यटकों को दुबारा यहाँ आने का दिल से न्यौता देते हैं ।
2. जोधपुर मार्ग से आने वाले हर पर्यटक की गाड़ी के जैसलमेर सीमा में प्रवेश करते ही मोटरसाइकिल पर तैनात लपकों द्वारा पीछा करना,पर्यटकों को कम दाम बताकर ठगना,जैसलमेर भ्रमण के दौरान क्षतिग्रस्त परकोटे के दर्शन बिना छत की हवेलियां के दर्शन, केमल सफारी के नाम पर हजारों रुपये की वसूली,भारत-पाक सीमा दिखाने के नाम पर सम में स्थित वन विभाग की कांटेदार तार दिखाना,अखे प्रोल में चांदी की चैन के बहाने किसी अन्य धातु के गहने बेचना,नाच गाने के नाम पर हजारों की ठगी,बाजार में चमड़े के सामान की जगह अन्य सामान बेचना, सम के धोरों पर विदेशी पावणो से खिच खिच,कई प्राचीन इमारतों की दीवारों के कोने गुटखे की लाल पीक से पुते हुए, यह सब दृश्य एक बार जिस पर्यटक के साथ घटित हो जाये तो क्या वो दोबारा जैसलमेर आने की हिम्मत जुटा पायेगा?
वापिस अपने घर जाकर वहां के अपने साथियों को जैसलमेर यात्रा करने की सलाह दे पायेगा?
आखिर क्यों हम इन सब चीजों को देखकर भी अनजान बने हुए है?, आखिर क्यों हम ऐसा सोचते है कि – इससे तो पुरे जैसलमेर की छवि ख़राब हो रही हमारी अकेले की थोड़े न हो रही है?
इन तमाम बातों को हमें ही सुधारना होगा, जैसलमेर किले के क्षतिग्रस्त भाग को तैयार करवाने के लिए हमे ही दबाव देना होगा, सालम सिंह की हवेली की मरम्मत के लिए प्रशासन को हमें ही कहना होगा तथा हमारे अपने जैसाण के प्राचीन सौंदर्य पर लगने वाले प्रत्येक दाग को धोने का काम हमें ही करना होगा।
आगे तो आना ही होगा, हाँ आना ही होगा.
(भूरसिंह जाम)
जैसलमेर(राजस्थान)