डॉ. छगन मोहता स्मृति व्याख्यानमाला की 17वीं कड़ी का समापन

विविधता में एकता और परिवर्तन के प्रति स्वीकार्यता
भारत की सबसे बड़ी ताकत: डॉ.पुरूषोत्तम अग्रवाल

2बीकानेर 15 अक्टुबर, 2016। ” भारत अवधारणा का बुनियादी ढंाचा भारत की विविधताओं और परिवर्तन की स्वीकार्यता के वैशिष्ट्य को समझे बिना नहीं बुना जा सकता। ÓÓ ये उद्बोधन प्रख्यात बुद्धिजीवी, राजनीतिक टिप्पणीकार, आलोचक, उपन्यासकार, संस्कृतिकर्मी और कबीर विशेषज्ञ डॉ.पुरूषोत्तम अग्रवाल ने बीकानेर प्रौढ़ शिक्षण समिति द्वारा डॉ.छगन मोहता स्मृति व्याख्यानमाला के द्वितीय दिवस, 15 अक्टुबर, 2016 को प्रौढ़ शिक्षा भवन सभागार में आयोजित द्वितीय व्याख्यान – भारत अवधारणा: व्याख्यान दो के तहत मुख्य वक्ता के रूप में व्यक्त किए।
डॉ. अग्रवाल ने भारतीय सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, साहित्यिक के विभिन्न संदर्भों के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि वैश्विक अवधारणा के अनुसार किसी राष्ट्र की अवधारणा के लिए एक स्थान, एक भाषा, एक धर्म, एक सभ्यता आदि तत्वों की जरूरत होती है और भारत तो कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर बानी की तर्ज पर पग-पग पर विविधताओं से रचा-बसा है। इसलिए यहां पर एक स्थान, एक भाषा, एक धर्म आदि के बंधनों में भारत को बांधा नहीं जा सकता। भारत अपने आप में विशिष्ट राष्ट्र है। यह एक ऐसा राष्ट्र राज्य है जिसको परिभाषित ही किया जाता है – विविधता में एकता के लिए। यह अवधारणा पूरी दूनिया के लिए एक सबक भी है, जिसे आज विश्व भर में अपनाया भी जा रहा है।
डॉ. अग्रवाल ने महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, लोहियाजी, सरदार पटेल, भीमराव अंबेडकर की विचार धारा एवं पारस्परिक विचार-मतभेदों, कराची प्रस्ताव, लाहोर कांग्रेस अधिवेशनों, भारत-इंडिया-सिंधु-आर्यावृत, हिन्दुस्तानी की कहानी आदि विभिन्न संदर्भों के हवाले से कहा कि हिन्दुस्तान की सबसे बड़ी ताकत है विविधता में एकता और परिवर्तन के प्रति स्वीकार्यता। भारतीय समाज को किसी भी रूप में कन्जरवेटिव नहीं कहा जा सकता यह एक उन्मुक्त समाज है। यहां परिवर्तन के प्रति या तो खुलापन है या उदासीनता, लेकिन परिवर्तन के प्रति आक्रामकता से भारत सदैव बचा है।भारत कल्पना-भारत अवधारणा में उसके सगुण रूपों की चर्चा की जानी चाहिए। उन्होंने कराची प्रस्ताव में समान नागरिकता, कानून के समक्ष समानता, अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा, महत्वूपर्ण उद्योग धंधों पर राज्य का नियंत्रण, बाल मजदूरी की मनाही, स्त्रियों को विकास के समान अवसर आदि व्यवस्थाएं लागू करने को भारतीय अवधारणा का केन्द्र बिन्दु बताया। हमें अपने इतिहास से उलझने की जरूरत नहीं है जो अच्छा है उसे भविष्य के लिए ग्रहण करते जाइए और मतभेदी विचारों केे तथ्यात्मक आधार के प्रति सही दृष्टि विकसित करनी चाहिए। देश के भक्ति वैविध्य पर उन्होंने भक्ति के संस्कृत, पाणिनी के संदर्भ में कहा कि भारतीय भक्ति प्रेम का दिव्य रूपांतरण है। भारत अवधारणा के मूल में हमारी भक्ति संवेदना और काव्य संवेदना व्याप्त है, जिसे हमें अंतरत:शुचिता के साथ अध्ययन और मनन करने की आवश्यकता है। हमें अपनी सांस्कृतिक शून्यता से बाहर आना होगा।
इन्होंने किया संवाद
व्याख्यानमाला के संवाद सत्र में दीपचंद सांखला, नारायण सुथार, संजय पुरोहित, अटल पुरोहित, राजेन्द्र जोशी, अविनाश गोयल, आत्माराम भाटी, डॉ.ब्रजरतन जोशी, दिलीप कुमार सहित सुधि श्रोताओं ने डॉ.पुरूषोत्तम अग्रवाल से दो-दिवसीय व्याख्यान के संदर्भ में और समसामयिक घटनाओं के संबंध में तीक्ष्ण सवाल किए जिनका डॉ.अग्रवाल ने विद्वतापूर्ण प्रत्युत्तर देकर संवाद सत्र को प्रभावी और दो-दिवसीय व्याख्यानमाला को सार्थक बना दिया।
दूसरे दिन के प्रारंभ में आगंतुकों का स्वागत करते हुए बीकानेर प्रौढ़ शिक्षण समिति के अध्यक्ष डॉ.श्रीलाल मोहता ने व्याख्यानमाला के प्रथम दिवस की प्रगति पर सारगर्भित प्रकाश डाला। साथ ही दूसरे दिन के व्याख्यान विषय का खुलासा भी किया।
यह रहे साक्षी :
सरल विशारद, दीपचंद सांखला, शुभू पटवा, मधु आचार्य, बृजरतन जोशी, श्रीलाल जोशी, शांतिप्रसाद बिस्सा, मुकेश व्यास, सुशीला ओझा, उषा मोहता, राजेन्द्र जोशी, अमित-असित गोस्वामी, अविनाश भार्गव, रामलाल सोनी, ओमप्रकाश सुथार, आनंद पुरोहित, उमाशंकर आचार्य, श्रीमोहन आचार्य, राजकुमार शर्मा, लक्ष्मीनारायण चूरा, जयदेव आचार्य, गजानंद व्यास, अरविंद ओझा, सत्यनारायण पारीक, संजय पुरोहित, जयनारायण बिस्सा, वहीदा खातून, हरिया तंवर, एकता सक्सेना, गौरीशंकर व्यास, तलत रियाज, विशन मतवाला, लूणाराम मारू, आदि सहित संस्था के कार्यकर्ताओं की प्रभावी सहभागिता रही। संस्था की ओर से आगंतुकों के प्रति आभार कोषाध्यक्ष संपत जैन ने व्यक्त किया।

ओम कुवेरा
सचिव
आचार्य उमेशा
९२१४०८३४६८

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