’’ममत्व भाव में विकार नहीं होते हैं’’

06बाडमेर। जहां ममत्व का भाव है, वहां विकार नहीं होते है। ममत्व का मतलब प्रेम में लीन जो प्रभू के प्र्रेम में लीन हो जाते है उसे कोई विकार नहीं परेषान करते है। जगत मैं दो ही चीखा होती एक इंकार, दूसरा मकार शब्द ही तो है। इंकार यानि राम और मकार यानि मां इसी से ही हमारा कल्याण होता है। उसके दो रूप है। निर्गुण व सर्गुन। सुर्गण दिखाई देता है निर्गुण दिखाई नहीं देता है। लक्ष्मण दास महाराज ने देवी भागवत में कहा भक्ति के तीन रूप है सात्विक, तामसी, व राजश्री इसमें सात्विक भक्ति ही प्रधान है। सर्वे भवन्तु सुखिन इस भावना से ही भक्ति ही श्रेष्ठ है। देवी भागवत मैं चण्डमुण्ड रक्तबीज जैसे असुर उन्होनें भक्ति तो की। पर वो तामसी थी अतः आदी शक्ति के द्वारा उसका विनाष हुआ। ऐसे दुष्ये का नाष हेतु जगदम्बा अपने विभिन्न रूप धारण करती है। आज कथा प्रसंग मैं मां कालीका रूप धारण राक्षसो के वध की बड़ी सुन्दर झांकी दर्षाई गई। जिन्हें देख श्रोता भाव विभोर हो गए। ’’जब रखियो 2 सिर पर हाथ’’ भजन कमल मुंदड़ा व सवाई माली ने गाया तो श्रोता झूम झूम नाचने को विवष हो गए। तबले पर चंचल व अग्नि पर हरीष द्वारका, बैंजों पर अमृतराम व ओक्टोपैड पर हरीष चावड़ा ने संगत किया। आज महन्त लक्ष्मणदास महाराज का माल्यार्पण दुर्गाषंकर, बाबु माली, ने किया। प्रसादी का लाभ चन्द्रा देवी खत्री ने किया। आरती का लाभ श्यामदुलानी, ताराचंद रीडर ने लिया।

दुर्गाषंकर शर्मा
कथा आयोजक

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