ग्रह उग्र, मांगलिक कार्य वर्जित

रविवार को होलाष्टक लगने के साथ ही मांगलिक कार्य वर्जित हो गए हैं। शास्त्रों के अनुसार फाल्गुन शुक्ल-पक्ष की अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक का होलाष्टक का समय अशुभ मना गया है।
विद्वजनों के अनुसार ज्योतिष ग्रंथों में होलाष्टक के आठ दिन सभी मांगलिक कार्य वर्जित माने गए हैं। इस दौरान शुभ कार्य करने पर अपशकुन की आशंका रहती है। होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य वर्जित रहने के धार्मिक व ज्योतिष दोनों कारण बताए जाते हैं। ज्योतिष के अनुसार अष्टमी को चंद्रमा, नवम को सूर्य, दशमी को शनि,एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी का बुध, चतुर्दशी को मंगल तथा पूर्णिमा को राहु उग्र रूप लिए होते हैं। ऐसे में मनुष्य का दिमाग अपने सुखद व दुखद आशंकाओं से ग्रसित हो जाता है। चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को अष्ठ ग्रहों की नकारात्मक शक्ति के खत्म होने पर रंग-अबीर-गुलाल आदि से सह मनोभावों की अभिव्यक्ति प्रदर्शित की जाती है। होली पर भगवान कृष्ण गोपियों के साथ आठ दिन तक खेले व भगवान ने धुलंडी के दिन रंगों में सने कपड़ों को को अग्नि के हवाले कर दिया। ऐसे दृष्टांतों से बनी लोकमान्यता है कि तब से ही यह पर्व आठ दिनों तक मनाया जाता है।
जोशी परिवार नहीं लगाते छौंक –
होली की उमंग के साथ ही एक ओर जहां घरों में विभिन्न प्रकार के पकवानों की तैयारियां शुरू हो गई, वहीं पुष्करणा समाज की जोशी जाति वाले घरों में होलाष्टक लगने के साथ ही छौंक लगाने पर प्रतिबंध लग गया।
जोशी जाति में होलाष्टक शुरू होते ही सब्जियों सहित छौंक वाले सभी पकवान धुलंडी तक वर्जित रहेंगे। ऐसे में इस जाति वाले घरों में धुलंडी तक छौंक वाले व्यंजन-पकवान नहीं बन पाएंगे। इतना ही नहीं घरों में कपड़ों पर प्रेस करते वक्त भी यह ध्यान रखा जाता है कपड़े गीले होने पर छौंक की आवाज न आ जाए। छौंक पर प्रतिबंध के चलते कई घरों में जहां कच्ची दाल व बिना छौंक वाली सब्जियां बनेगी तो कई घरों में संगे-संबंधियों व रिश्तेदारों के यहां से विभिन्न प्रकार के पकवान आएंगे। सदियों पहले होली के दिन घटी एक अप्रिय घटना के बाद इस जाति वाले घरों में शुरू हुआ छौंक नहीं लगने का दौर लगातार जारी है।
जोशी परिवारों के बुजुर्गों के अनुसार जोशी जाति के लोग होली दहन में काम आने वाली किसी भी सामग्री के हाथ तक नहीं लगाते। होली की परिक्रमा (ढूंढणा) नहीं करते। इतना ही नहीं इस जाति के लोग होली दहन की पहली लपट भी नहीं देखते। होलिका दहन के अंगारों पर दूसरों लोगों के घरों से आए पापड़ सेक कर व प्रसाद लेकर सतीमाता के मंदिर जाकर भूलचूक के लिए माफी मांगी जाती है। समाज के कई लोग अपने घर की दहलीज पर भी नारियल फोड़कर, प्रसाद चढ़ाते हैं और सतीमाता का ध्यान करने के बाद अपने घर में छौंक से बनने वाली सब्जी, पूडिय़ां तलना आदि कार्य किए जाते हैं।
इस जाति में सदियों पहले यह परंपरा कब शुरू हुई यह बताना तो मुश्किल है लेकिन होलाष्टक में छौंक नहीं लगाने के नियम का पालन कठोरता के साथ किया जाता है। बुजुर्ग बताते हैं कि यह नियम तोडऩे पर समाज में कई अनिष्ठ घटनाएं भी हुई है। यही कारण है कि घरों में लड़कों की शादी होने के साथ नई दुल्हन को भी छौंक नहीं लगाने के नियम का पालन समाज द्वारा करवाया जाता है।
यह है किवदंती
जोशी परिवार के पुत्र व बहू होलिका दहन के समय परिक्रमा (ढूंढणा) कर रही थी। महिला के अपने पति के साथ ढूंढणा करते वक्त ही पति होली अग्नि में गिर गया और उसकी मौत हो गई। इस हादसे से व्याकुल पत्नी ने भी इसी होली की अग्नि में छलांग लगाकर अपनी जान दे दी और सती हो गई। समाज में इसी वर्ष के बाद जोशी जाति में होलाष्टक लगने से धुलंडी के दिन तक छौंक नहीं लगाया जाता।
होली दहन से पहले न रंग, न पिचकारी
रंगों के त्योहार होली में जब छोटे-छोटे बच्चे पिचकारियों के साथ गली-गली में अठखेलिया करते नजर आते जब जोशी परिवार के बच्चे केवल उन्हें देखकर ही खुश होते है। इसका कारण भी इसी प्रतिबंध से जुड़ा है। समाज के लोग होलाष्टक लगने से लेकर होली दहन तक नए कपड़े भी नहीं पहनते। जोशी जाति वाले परिवारों के लिए रंग और पिचकारी अगर कोई जाति वाले दिलवाते है तो वह वर्जित नहीं माना जाता।
ऐसे टूटेगा यह प्रतिबंध
जोशी जाति में छौंक पर प्रतिबंध हट भी सकता है। समाज के बुजुर्ग लोगों का कहना है कि जोशी जाति में कही भी होली दहन के वक्त किसी के घर में पुत्र का जन्म होता है, और वह परिवार सती माता के प्रसाद करने बाद इस जाति वाले लोगों को भोजन करवाता है तो यह प्रतिबंध खत्म हो सकता है। बहरहाल सदियों पुरानी यह परंपरा चलती आ रही है।
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सत्ता चोर संभालण लाग्या, ताबे लाग्यो खाय,
कोयला-चारा खाय लिया, फिर भी भूख न जाय…
व्यासों के चौक में मंचित होने वाली जमनादास कल्ला की रम्मत में ऐसे खयालों सेे केन्द्र सरकार पर कटाक्ष किए जाते हैं। होलाष्टक लगने के साथ शहर के विभिन्न मोहल्लों में रम्मतों का दौर शुरू हो जाता है। रम्मतों का आगाज नत्थूसर गेट के अंदर मंचित फक्कड़ दाता की रम्मत से होता है। शहर में इन रम्मतों में जहां शृंगार रस के माध्यम से दर्शकों का मनोरंजन होता है वहीं वीर रस के माध्यम से रम्मत का मूल संदेश भी दिया जाता रहा है। रावळी, चौमासा और ख्याल के पद रम्मतों को परवान चढ़ाते हैं।
व्यासों के चौक में आयोजित होने वाली जमनादास कल्ला की रम्मत में ख्याल के माध्यम से देश के वर्तमान हालात पर कटाक्ष होते हैं। रम्मतों का दौर होली के दिन सुबह तक जारी रहता है। नत्थूसर गेट के अंदर फक्कड़दाता की रम्मत, आचार्य चौक में वीर रस की रम्मत अमर सिंह राठौड़, मरुनायक चौक में शृंगार रस की हेड़ाऊ मेहरी, कीकाणी व्यासों के चौक में उस्ताद जमनादास कल्ला की स्वांग मेहरी, बिस्सों के चौक में भक्त पूर्ण मल, भट्ड़ों के चौक में उस्ताद फागुजी व्यास की स्वांग मेहरी, बारह गुवाड़ चौक में उस्ताद आशाराम जागा की नौटंकी शहजादी, बारहगुवाड़ में ही उस्ताद दासी महाराज की स्वांग मेहरी व सूरदासानी पुरोहितों की हेड़ाऊ मेहरी रम्मतों का मंचन बीकानेर की होली की परम्परा का अभिन्न अंग बना हुआ है।
जनता रौवे राशन नै, अै खली लूट मचाय, देश में बढ़ रहयो भ्रष्टाचार,
मिलयोड़ी आ सरकार, चारु खोनी खाय रया, लेवे नहीं डकार…
सरीखे ख्याल से केन्द्र की सत्ता पर कटाक्ष को तैयार टेरिये तो साथ में चौमासा के पदों के माध्यम से प्रेम रस धार प्रवाहित करने को आतुर रम्मत कलाकार।
बिलमायों क्या परदेशों, कोमणगारी, गिण-गिण मैं काढूं
रातड्यां सारी बीकाणे बरसे चौमासा भारी…
सरीखें चौमासा से प्रेम का वर्णन समां बांध देता है।
फक्कड़दाता की रम्मत-ः यह रम्मत नत्थूसर गेट के अंदर गणेश के प्रवेश के साथ शुरू होती है। रम्मत में जाट-जाटणी व बोहरा-बोहरी के संवाद लोगों को बांधे रखते हैं। खाकी के प्रवेश और ख्याल-चौमासे के पद रम्मत को परवान चढ़ाते हैं।
भक्त पूर्ण मल की रम्मत का मंचन बिस्सों के चौक में होता है। रम्मत में पंजाब के राजा शंख पति की कथा है। राजा अधिक उम्र और पत्नी होने के बाद भी फिर स्वयंवर से पत्नी लाता है। अन्य महल में रह रही पत्नी का दिल जब राजा की पहली पत्नी के पुत्र पर आ जाता है तब पुत्र द्वारा इस संबंध से इनकार करने पर रानी राजा को शिकायत करती है। राजा उसे मरवा कर जंगल में फेंक देता है। जंगल से गुजर रहे गुरु गौरख नाथ उसे वापस जीवित कर देते हैं।
हड़ाऊ मेहरी रम्मत: प्रेम रस पर आधारित यह रम्मत मरु नायक चौक में मंचित की जाती है ।
रम्मत में रानी अपने प्रीतम को रिझाने का प्रयास करती है। इसके लिए वह कभी मीठे संवाद बोलती है तो कभी चुहलबाजी करती है। रूठने व मनाने की कवायद दोनों में रात भर चलती है। प्रेम रस से भरे रानी के संवाद दर्शकों रोमांचित करते हैं। रम्मत का श्रीगणेश हंस चढ़ी मां आई भवानी सबकी करे साय… के गायन से होता है। नगाड़ों की ताल-और संगीत की लय और मेहरी के संवाद लोगों को रात भर बांधे रखने में हमेशा सफल रहते हैं।
स्वांग मेहरी रम्मत: जमना दास कल्ला की यह रम्मत कीकाणी व्यासों के चौक में मंचित होती रही है। रम्मत में प्रति वर्ष ख्याल के पद व चौमासे नए तैयार किए जाते हैं। रियासत काल के कवि बछराज व्यास रचित ख्याल आज भी प्रासंगिक है। रम्मत के चौमासा गीत भी प्रासंगिक बने हुए हैं। स्वांग मेहरी के के माध्यम से ख्याल के रूप में हालात पर कटाक्ष के साथ ही चौमासा गीतों के जरिए नायक विरह में बैठी नायिका की व्यथा को उजागर करते हैं।
नौटंकी शहजादी: यह रम्मत बारह गुवाड़ चौक में मंचित की जाती है। रम्मत में जाट-जाटणी, बोहरा-बोहरी, खाकी पात्र अखाड़े में पहुंचते हैं व पारंपरिक गीत-नृत्यों के माध्यम से अच्छे जमाने व सभी के सुख-शांति व समृद्धि की कामना करते हैं। संवाद, गीत व दोहों, चोबेला, छहबोला, गजल, नृत्य आदि से लोगों को मनोरंजन तो होता ही है साथ में संदेश भी प्रेषित होता है। खाकी के मंच पर पहुंचते ही रम्मत में एकबारगी उपस्थित लोगों में उत्साह का संचार होता है।
स्वांग मेहरी: यह रम्मत बारह गुवाड़ चौक में मंचित की जाती है। रम्मत में शादी के बाद पणिहारी का पति कमाने चला जाता है। जब वह वापस आता है तो अपनी पत्नी को पहचान नहीं पाता। एक बार जब पत्नी को पानी भरते देखता है और उसके पहनी हुई अंगूठी से अपनी पत्नी की पहचान करता है। रम्मत में चौमासा के माध्यम से दोनों का वर्णन किया जाता है। वहीं ख्याल के माध्यम से राजनीति पर कटाक्ष भी होते हैं।
स्वांग मेहरी: यह रम्मत भट्ड़ों के चौक में भी मंचित होती है। रम्मत में विदेश नौकरी करने गए अपने बालम को स्वदेश बुलाने के पद है। चौमासा मे धन जोबन कुण सूनो छोड़े, पढ़ प्रीतम अफसाना, बरस रया पानी पर पानी आया नया जमाना, बालम घर आना…के माध्यम से प्रेम का वर्णन किया जाता है।
अमरसिंह राठौड़: यह रम्मत आचार्यों के चौक में लोगों के भारी जमावड़े के बीच मंचित होती रही है। रम्मत में विवाह के लिए अमरसिंह राठौड़ बादशाह से छुट्टी लेकर जाता है। निर्धारित समय में वापस नहीं लौटने पर सलावत खान अमरसिंह की शिकायत करता है। राजा उसे बुलावा भेजता है तो हाड़ी रानी उसे रोकने का प्रयास करती है। अमरसिंह दरबार में जाकर सलावत को मार देता है। बादशाह डरकर छिप जाता है। रानी बादशाह को ताने देती है। अमरसिंह की हत्या उसका साला धोखे से कर देता है। इसका बदला रामसिंह लेता है।
हड़ाऊ मेहरी: यह रम्मत बारहगुवाड़ चौक में मंचित होती है। प्रेम रस पर आधारित इस रम्मत में हड़ाऊ को घोड़ों का शौक होता है। हड़ाऊ नौकरी करने बाहर जाना चाहता है तो मेहरी उसे प्रेम के पद चौमासा से रोकने का प्रयास करती है।
– मोहन थानवी
82 सार्दुल कालोनी बीकानेर
मो 9460001255