डिप्रेशन से पीड़ित को सामाजिक संरक्षण जरूरी

बचाव के लिए जागृति व चिकित्सा आवश्यक
DSC_2771बीकानेर, 7 / 4 / 17 ( मोहन थानवी ) ।
मानसिक रोग अवसाद (डिप्रेशन) से बचाव के लिए जितना जरूरी जागृति,चिकित्सा एवं परामर्श है उतना ही परमावश्यक है पीड़ित को सामाजिक संरक्षण। इस बात को अन्य रोगों से पीड़ितों के प्रति लोगों के नजरिये से तुलनात्मक विश्लेषण करते हुए प्रसिद्ध मनोचिकित्सक व वरदान अस्पताल एवं अनुसंधान केन्द्र के संचालक डॉ.सिद्धार्थ असवाल ने कहा है उदाहरणों के साथ समझाया।

डॉ.असवाल शुक्रवार को विश्व स्वास्थ्य दिवस पर होटल हरि भवन पैलेस में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में जानकारियां साँझा कर रहे थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 7 अप्रेल 2017 को विश्व स्वास्थ्य दिवस पर अवसाद के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए अपनी थीम ’अवसाद व इसके बारे में बचाव’’रखा है।

डॉ सिद्धार्थ ने कहा कि भारत में अवसाद 1.72 से 74 प्रति एक हजार जनसंख्या में पाया जाता है, अपने जीवनकाल में महिलाओं में इनका प्रतिशत 10 से 25 प्रतिशत पुरुषों में 05-12 प्रतिशत तक होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में 36 प्रतिशत लोग अपने जीवन काल में कभी ना कभी अवसाद ग्रस्त होते है। बहुत ही कम लोग विभिन्न कारणों से मनोचिकित्सक से परामर्श ले पाते है, जिनमें एक प्रमुख कारण सामाजिक स्टीगमा है इसके अलावा लोगों की अज्ञानता, अशिक्षा,देवी-देवताओं के प्रकोप, भूतप्रेत व जादू टोना में विश्वास करना है। मनोचिकित्सक डॉ.सिद्धार्थ ने बताया कि डिप्रेशन से बचने के लिए नियमित परामर्श व उपचार आवश्यक है। सकारात्मक सोच, ध्यान व योग,संतुलित आहार,नियमित रूप से पर्याप्त नींद, अपने प्रियजनों से अपने विचारों के बारे में चर्चा एवं सहयोग, झाड़ा-फूंक व अंध विश्वास से बचना, सही समय पर मनोरोग विशेषज्ञ से परामर्श व उपचार लेना आवश्यक है।

यह करना है बहुत जरूरी :-

डिप्रेशन वाले व्यक्ति को ठीक रखने के लिए उनके परिजन व रिश्तेदारों को भी मरीज से भावनात्मक रूप से सहज-समझ, सहनशीलता, प्यार और प्रोत्साहन से वार्ता करनी चाहिए तथा मनोचिकित्सक से उपचार करवाना चाहिए। रोगी को बीमारी का बहाना करने अथवा आलस दिखाने का दोष न दें रोगी को उसके व्यवहार के लिए उसकी आलोचना या उस पर दोषारोपण नहीं करें। उसकी अनुभूतियों का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए अपितु सच्चाई इंगित करते हुए आशा की किरण दिखाएं। रोगी से कोई भीऎसी बात नहीं करें या कहें जो व्यक्ति के आत्मचरित्र को खराब करें, अपितु उसे प्रोत्साहन करने के साथ-साथ उसे अनुभूत कराएं कि रिश्तेदारों मित्राेंं एवं समाज में उसका योगदान महत्वपूर्ण है। उसके किसी भी अनहोनी करने को अनदेखा नहीं करें, उसके परिवारजन अथवा चिकित्सक को शीघ्र इसकी सूचना दें।

फोटो साभार : फोटो जर्नलिस्ट श्री आर सी सिरोही

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