“जश्ने आज़ादी “काव्य गोष्ठी का एहतमाम

bikaner samacharबीकानेर-13 अगस्त
रविवार को पर्यटन लेखक संघ और महफिले अदब के साप्ताहिक अदबी कार्यक्रम की 279 वीं कड़ी में “जश्ने आज़ादी “काव्य गोष्ठी का एहतमाम किया गया जिसमें हिंदी,हिंदी और राजस्थानी के युवा व वरिष्ठ कवियों ने देशप्रेम से रंगी रचनाएँ सूना कर वाह वाही लूटी।
होटल मरुधर हेरिटेज में आयोजित इस गरिमामय कार्यक्रम की सदारत करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार श्रीलाल मोहता ने आज़ादी के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि इसके लिए हज़ारों लोगों ने क़ुर्बानियाँ दी हैं।
मेहमान ख़ुसूसी वरिष्ठ साहित्यकार सरल विशारद ने कहा कि आज़ादी एक खूबसूरत ने’मत है।हमें इसकी हिफाज़त करनी चाहिए।
इस अवसर आयोजित काव्यगोष्ठी ने रचनाकारों ने देशभक्ति के फूल खिलाये।
वरिष्ठ कवि व गीतकार सरदार अली परिहार ने सिपाही की अज़मत बयान करता हुआ गीत सुना कर सभी के दिलों में जोश भर दिया-
सिपाही देश रो धणी
ओ धरती माँ रो ऋणी
माथै रै मुकुट री जड़ी
हीरे री चीळकती अणी
आयोजक संस्था के डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी के शे’र भी ख़ूब सराहे गए-
नाम को भी अब ग़ुलामी की घुटन बाक़ी नहीं
” ये ज़मीं आज़ाद है ये आस्मां आज़ाद है”
मोहनलाल जांगीड़ का गीत भी पसंद किया गया-
देश की जो बाधक दीवारें हैं उनको तोड़ डालो
हठ करती जवाँ नदी हो तो उसको मोड़ डालो
शायर असद अली असद ने इंसानों को ना बांटने की सलाह दी-
आदमी को मज़हबों में बाँटना अच्छा नहीं
नफरतों का इस तरह ये सिलिसिला अच्छा नहीं
रहमान बादशाह ने “मेरा वतन”गीत तरन्नुम से सुना कर कार्यक्रम को उरूज बख्शा-
इस धरती पर है जन्म लिया इसपे ही मर जाएंगे
मरते मरते नाम वतन का हम कर जायेंगे
जोश हमारा देख कर सब ही हैरान हैं
मेरा वतन प्यारा ये हिंदुस्तान है
युवा कवि राजेश मोहता की कविता को सामाईन ने दाद से नवाज़ा-
घनी रात बहुत अँधेरा है
वक़्त ने सब तरह से घेरा है
ये वक़्त है भीड़ का बाजार का
सच आदमी का यहाँ बहुत अकेला है
प्रमोद शर्मा ने”रौशनी के लिए मैं बिजलियों से लड़ा”, डॉ जगदीशदान बारहठ ने “भारत वर्ष महान”,डॉ ब्रह्मराम चौधरी ने “अम्न की हवाएं”,कान्ता चाडा ने”हिन्द देश सदा आज़ाद रहे”,डॉ तुलसीराम मोदी ने “तिरंगा”, शाहबाज़ हुसैन ने “कोई इलज़ाम तो चरागों पर रख दिया जाए”,रफीक बेजिगर ने “चमन से फ़ूल तोडना तो आसान है” तथा शकील अंसारी व यश तंवर ने रचनाएँ सुना कर माहोल में देशप्रेम भर दिया।
प्रारम्भ में एड भगवतीप्रसाद पारीक ने स्वतन्त्रता आंदोलन की महत्ता पर रौशनी डाली।संचलन का ज़िम्मा डॉ ज़िया उल हसन क़ादरी ने निभाया।

error: Content is protected !!